राजेन्द्र जोशी
देहरादून । भारतीय जनता पार्टी ने केंद्रीय स्तर से भले ही उत्तराखंड के प्रभारी का दायित्व थावर चंद गहलोत को सौंप दिया हो। केंद्र के इस निर्णय से सूबे के भाजपा के नेताओं ने प्रदेश सह प्रभारी से उनका पिंड छुडाये जाने पर खुशी जाहिर की है। मामला चाहे खंडूडी सरकार का रहा हो अथवा वर्तमान निशंक सरकार का। चर्चाओं के अनुसार प्रदेश सह प्रभारी ने इन दोनों नेताओं की साख पर बट्टा लगाने पर कोई कोर-कसर नहीं छोडी। मामला चाहे ऋषिकेश के चर्चित स्टर्डिया कैमिकल फैक्ट्री के पुर्नजीवन का रहा हो अथवा जल विद्युत परियोजनाओं के आवंटन सहित काशीपुर के प्राग फार्म का। चर्चाओं के अनुसार भाजपा के प्रदेश सह प्रभारी इन सभी मामलों में जहां प्रत्यक्ष रूप से जुडे रहे वहीं कुछ मामलों में उन्होंने अपनी पत्नी वंदना जैन व मां सहित अपने मित्रों तक को लाभ पहुंचाने की कोशिश की।
सूत्रों की मानें तो पूर्व प्रदेश सह प्रभारी उत्तराखंड राज्य का पूर्ण प्रभार लेने के लिए ऐडी-चोटी का जोर लगाये हुए थे। लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेताओं तक जब उनका काला चिट्ठा पहुंचा तो उन्होंने भी अपने हाथ पीछे खींच लिये। इसे भाजपा आलाकमान के दूरदर्शी निर्णय के रूप में भी देखा जा रहा है। भाजपा के वर्ग का मानना है कि खांटी आरएसएस कैडर आये थावर चंद गहलोत के आने से प्रदेश भाजपा में चल रही गुटबाजी को जहां विराम लगेगा वहीं केंद्र के इस निर्णय को भाजपा के लोग तरूप के पत्ते के रूप में भी देख रहे हैं। इस वर्ग का कहना है कि कंेंद्र ने प्रदेश में दलित कार्ड खेलकर इसे भाजपा की 2012 की तैयारी भी माना जा सकता है। वहीं सूबे के दो बडे़ नेताओं को तमिलनाडू और झारखंड की जिम्मेदारी सौंप कर प्रदेश में चल रही गुटबाजी को भी खत्म करने का काम किया है। जहां एक ओर पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य सभा सांसद भगत सिंह कोश्यारी को झारखंड की जिम्मेदारी दी है तो वहीं पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूडी को तमिलनाडू का दायित्व दिया गया।
भाई साहब शायद आप भाजपा की और निशंक की नौकरी करते हैं | मैंने हमेशा आपको इनके ही गुण गाते देखा है | जबकि देश में और भी बहुत से मुद्दे हैं गुण गाने के लिए |
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