9.8.10

मेरी गोवर्धन यात्रा

बीते शनिवार को मुझे गोवर्धन यात्रा पर जाने का मौका मिला। मैं अपने पिताजी और उनके कुछ मित्रों के साथ गया था। मेरे पिताजी कभी कभी वहां जाते है। लेकिन मैं अपने जीवन में पहली बार वहां गया था। पिता जी के एक मित्र जिनका नाम नरेंद्र वर्मा है वो हर शनिवार को गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते है। उनकी भक्ति और शक्ति को मैं तब समझा जब मैनें स्वंय गिरीराज जी की परिक्रमा की। नंगे पांव 21 किमी यात्रा करना मामूली बात नहीं है। इससे पहले मैंने श्री वैष्णों देवी की पैदल यात्रा पिछले वर्ष की थी। जब हमने गोवर्धन महाराज का अभिषेक कर यात्रा शुरू की तो हमारे मन में जरा भी डर अथवा शंका नहीं थी कि हमे इस यात्रा में कोई परेशानी नहीं होगी। हम 6 लोग थे। हमने वहां गोवर्धन पर्वत की शिला को स्पर्श किया और महसूस किया कि इसी शिला को भगवान श्री कृष्ण ने उठाया था। उसके बाद हम उस स्थान पर पहुंचे जहां एक योगी निरंतर भगवान के जप में तल्लीन थे। हमने वहां बैठकर उनके उठने की प्रतिक्षा की। वो योगी शायद हमारे मन को समझ गये। फिर वो जप को विराम देकर प्रसाद की पोटली लाये और हमे दे दी। फिर बगैर कुछ बोले पुनः वापस उसी स्थान पर बैठ कर जप शुरू कर दिया। पिताजी की इच्छा दान करने की हुई तो बाबा ने इशारे से कुछ भी लेने से इन्कार कर दिया। उसके बाद हम और आगे गये जहां हमने लुक-लुक दाऊ जी मन्दिर के दर्शन किये। बताया जाता है कि उस स्थान से भगवान के बड़े भाई दाऊ जी ने कृष्ण जी की रास लीला को छुप कर देखा था। तभी से उस स्थान का नाम लुक-लुक दाऊ जी मन्दिर पड़ गया। जो भी कोई गिरिराज जी परिक्रमा करता है उस मन्दिर के दर्शन जरूर करता है। फिर हम थोड़ा और आगे बढ़े। मन में राधे राधे का जप करते हुए हमने करीब 10 किमी का रास्ता पार किया तब रात हो गई। तब हमने मोबाईल के टार्च से आगे का रास्ता तय किया। हमारे अंकल नरेन्द्र वर्मा कुछ दान के लिए वस्त्र लाये थे। जो उन्होंने उस मन्दिर के पंडितो को भेठ किया जो वर्ष 2004 से भगवान का निरंतर कीर्तन कर रहे थे। मुझे उन लोगो को देख कर लगा कि भक्ति ऐसी होती है। हम जिस रास्ते पर चल रहे थे वहां ऐसे भी भक्त थे जो लेट लेट कर परिक्रमा कर रहे थे। उनकी आस्था की शक्ति ने मेरे पांव में चुभ रही कंकड़ियों को बर्दाश्त करने की ताकत प्रदान की। मैं उनसे पूछा कि आप ये यात्रा कितने समय में पूरा कर लेंगे तो उन्होंने कहा कि लगभग 6 दिनों मे हम इस यात्रा को पूरा कर लेंगे। चलते चलते हम राधा कुंड पहुंते हमने वहां पांव धोये और थोड़ा विश्राम किया। उसके बाद हम एक चाय की दुकान पर गये जहां हमने 5 रूपये का आनंद लिया। फिर हमने यात्रा शुरू की। लगभग पौने 6 घंटे की यात्रा के बाद हम मानसी गंगा पर पहुंचे फिर हमने वहां ठंडे शीतल जल से अपने पांव धोये। उसके बाद फिर यात्रा शुरू कर दी। थोड़ी ही देर में हमने 21 किमी की यात्रा पूरी कर दी। मन में कौंध रही अंकल नरेन्द्र वर्मा के हौंसले की वो बात ना चाहते हुऐ भी मेरे मन से निकल गई। अंकल आप की हिम्मत और भक्ति को मानना पड़ेगा। आप इतनी कठोर यात्रा हर सप्ताह पूरी करते है। तब उन्होंने सारा श्रेय भगवान को अर्पित किया ये तो सब कन्हैया जी प्रेरणा करा रही है वो ही मुझे शक्ति और हौसला दे रहे है। तब हम सबने वहां से प्रसाद खरीदा और उसके बाद यात्रा पूर्ण की। भगवान को धन्यवाद देकर फिर हम सबने अपने घर की ओर प्रस्थान किया।

जय गिरीराज महाराज...

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