वहीँ दूसरी और देश के एक गांव के करीब 2000 किसान इच्छा मृत्यु की इजाजत मांग रहे थे, वहीं 6600 मीट्रिक टन अनाज गोदाम के अभाव में सड़ रहा था। ऐसी विकट स्थिति में देश की करीब सवा करोड़ आबादी की चिन्ता छोड़ सांसद अपने वेतन-भत्तों के लिए कोहराम मचाए हुए थे।
आखिरकार, संसद को अपनी ससुराल समझने वाले देश के इन माननीयों की जिद को पूरी करते हुए केंद्र सरकार ने हमारे माननीय सांसदों का वेतन 16 हजार से बढ़ाकर 50 हजार कर दिया गया। वेतन के अलावा सांसदों को मिलने वाले भत्तों और पेंशन में भी बढोतरी कर दी गई है। रिटायर होने के बाद भी उन्हें किसी तरह की परेशानी ना हो इसका भी पूरा इंतजाम कर दिया गया है. सांसदों की पेंशन को भी 8 हजार से बढाकर 20 हजार कर दिया गया है।
देश को चलने वाले जनता के द्वारा चुने गए सांसदों का दैनिक भत्ता एक हजार रूपए से बढाकर 2 हजार रूपए कर दिया गया है। जो की एक आम भारतीय की मासिक आमदनी के बराबर है। सांसदों को प्रतिमाह मिलने वाले 20,000 रुपए संसदीय क्षेत्र भत्ता और 20,000 रुपए कार्यालय भत्तों को दोगुना भी किया गया था.
देश की जनता पर बेशक महगाई डायन का पहरा कसता जा रहा हो लेकिन सांसदों को आने-जाने में मंहगाई का असर महसूस न हो, इसके लिए यात्रा भत्ता एक लाख रूपए से बढ़ाकर 4 लाख रूपए सालाना कर दिया गया है। इसके साथ मिलने की लिस्ट बहुत लम्बी है, लेकिन इतना मिलने के बाद भी देश की जनता की समस्याओं को ताक पर रखने वालेसांसद संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं और अपनी गरीबी का रोना रो रहे हैं।
आंकड़ों के अनुसार, सांसदों में 315 करोड़पति हैं और उनमें से सबसे ज्यादा 146 कांग्रेस के हैं। ज्ञान, चरित्र, एकता वाली भाजपा के 59 सांसद करोड़पति हैं। समाजवादी पार्टी के 14 सांसद करोड़ का आंकड़ा पार कर चुके हैं। दलित और गरीबों की पार्टी कही जाने वाली बहुजन समाज पार्टी के 13 सांसद करोड़पति हैं। द्रविड़ मुनेत्र कडगम के सभी 13 सांसद करोड़पति हैं। कांग्रेस में प्रति सांसद औसत संपत्ति छह करोड़ है, जबकि भाजपा में साढ़े तीन करोड़ है। देश के सारे सांसदों को मिला लिया जाए, तो कुछ को छोड़ कर सबके पास कम से कम साढ़े चार करोड़ रुपए की नकदी या संपत्तियां तो हैं ही। यह जानकारी किसी जासूस ने नहीं निकाली, अपितु खुद सांसदों ने चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार इस संपत्ति का खुलासा किया है।
सरकार द्वारा गठित सेन गुप्ता समिति के अनुसार, देश में 78 प्रतिशत लोग दिन भर में बीस रुपए से भी कम में गुजारा करते हैं। यूएनडीपी की एक रिपोर्ट के अनसार, देश के आठ राज्य ऐसे हैं, जहां 42 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। भारत के बारे मै विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के कई क्षेत्रों में गरीबी की स्थित अफ्रीका से भी खराब है।
इंडिया को सबसे अधिक प्रधानमंत्री देने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 70 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। अभी देश के सांसदों को यह भी नहीं पता कि देश में कितने गरीब है।
सवाल तो यह भी उठते हैं कि..........
- भारत की तुलना किन अर्थो में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, सिंगापुर और संयुक्त राज्य अमेरीका से की जा सकती है?
- क्या इन देशों में भी भारत की तरह गरीबी, अशिक्षा, भुखमरी, बेरोजगारी और कुपोषण है?
- जिन देशों के सांसदों का वेतन भारत के सांसदों के वेतन से कई गुना अधिक है, वे देश पिछड़े और अविकसित नहीं हैं।
सदन में तमाम बहसों और हल्ला-हंगामों के बावजूद महंगाई घट नहीं रही है और सांसद अपनी तीन गुना वेतन वृद्धि से संतुष्ट नहीं हैं।
सांसद अक्सर देश में गरीबी रेखा की बात करते हैं, लेकिन खुद को अमीर बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। महीने का खर्चा प्रति सांसद साढ़े तीन लाख रुपए हो गया है, मगर सांसदों को संतोष नहीं है , उन्हें तो और चाहिए।
सांसदों का यह भी कहना है कि अगर बेहतर सुविधाए मिलेंगी और अधिक वेतन मिलेगा, तो ज्यादा प्रतिभाशाली लोग राजनीति में आएंगे। यह अपने आप में अच्छा-खासा मजाक हैं। सिर्फ लोकसभा के 162 सांसदों पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं, जिनमें से 76 पर तो हत्या, चोरी और अपहरण जैसे गंभीर मामले चल रहे हैं। इन्हीं आंकड़ों के अनुसार, चौंदहवीं लोकसभा में 128 सांसदों पर आपराधिक मामले थे, जिनमें से 58 पर गंभीर अपराध दर्ज थे। जाहिर है कि प्रतिभाशाली नहीं, आपराधिक लोग संसद में बढ़ रहे हैं और उन्हें फिर भी पगार ज्यादा चाहिए।
pls send ur comment
Anuj Sharma
anujprincek@gmail.com
थू-थू, थू-थू, थू-थू, थू।
ReplyDeleteमाननीय हैं या डाकू?
मुंह पर तो जनसेवा है.
किन्तु बगल में है चाकू॥