18.8.10

खद्दरधारियों सावधान, चुनाव फिर आएंगें

             भूखे को रोटी, नंगे को लंगोटी तथा गरीब के सर पर अपना छप्पर ठीक ऐसा ही वादा केन्द्र की मनमोहन और प्रदेश की गहलोत सरकार ने सत्ता सँभालने से पूर्व अपने घोषणा-पत्र के जरिये मतदाताओं से किया था| लेकिन, सत्ता हासिल होने के बाद सारे वादे काफूर हो गए |  हम हिन्दुस्तानी मतदाता भी अजीब होते हैं जो खद्दरधारी इन तथाकथित गांधीवादियों के चक्रव्यूह में ऐसे फंसते हैं कि निकाले नहीं निकलते| यही कारण है कि चुनाव के दिन सबसे पहले पहुँच जाते हैं मताधिकार का प्रयोग करने इस आशा के साथ कि अबकी कोई अजूबा होगा और गरीबों का मसीहा चुनाव जीतकर आएगा और सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन परिणाम फिर सोच के विपरीत| चुनाव के नतीजों के साथ ही ये तथाकथित नेता गिरगिट की तरह रंग बदल लेते हैं| चुनाव से पहले हाथ जोड़े मतदाताओं के सामने आनेवाले नेता  जीतने के बाद यही कहते हैं कि अब तो पांच साल तुम्हारी छाती पर मूंग दलेंगे| यही वजह है की महंगाई कुर्सी-दर-कुर्सी बढ़ती जा रही है| अब तो बढ़ती महंगाई  ने लोगों का जीने का हौसला ही पस्त कर दिया है|
            रोटी, कपड़ा और मकान जीवन की मूलभूत आवश्यकता है परन्तु, कितनों को खुले आसमान के नीचे भूखे पेट सोना पड़ता है इनकी किसी को फ़िक्र नहीं है| खाद्य सामग्री की बढ़ती कीमतों से तो सभी प्रभावित होते हैं लेकिन पेट्रोल और डीजल की बढती कीमतों से गरीब अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है| बेशक, उसके पास वाहन नहीं किन्तु इनकी कीमत बढ़ने से मालभाड़ा बढ़ता है और अन्य चीजों के  मूल्य स्वतः  ही बढ़ जाते हैं| वैसे भी गरीब को रोटी पकाना भी भारी पड़ रहा है| दालों और सब्जियों की बढ़ती कीमतों ने भोजन का जायका तो पहले ही बिगाड़ दिया | दालें खरीदना और पकाना तो अब स्टेटस सिम्बल बन गया है| रही-सही कसर पूरी कर दी ईंधन की बढती कीमतों ने| रसोई गेस और गरीबों के ईंधन केरोसिन की बढती कीमतों से जनता की कमर दोहरी होती जा रही है|  
केन्द्र सरकार भले ही इसके लिए किसी को भी जिम्मेदार ठहराए किन्तु चुनाव हमेशा के लिए नहीं हुआ| इन खद्दरधारियों को सावधान हो जाना चाहिए कि समय पूरा होने पर जब वे फिर जनता से रूबरू होंगे तो उन्हें क्या मुंह दिखाएंगें और जनता से इन्हें क्या जवाब मिलेगा| इसके लिए इन्हें अभी से चिंतन करना शुरू कर देना चाहिए | लेकिन इन्हें चिंतन करने की शायद जरूरत भी नहीं है| क्योंकि चिंतन तो वो करता है जिसके शर्म होती है| इन नेताओं को शर्म तो आती नहीं| फिर से किसी मजबूरी का दामन थाम ये मतदाताओं के सामने उनको बरगलाने पहुँच जाएँगे|
विविध भत्ते व आलीशान बंगलों में रहने वाले तथा वातानुकूलित कारों में घूमनेवाले नेताओं को शायद गरीबों के दर्द का अहसास नहीं है| क्योंकि गरीबी की पीड़ा का अनुभव वही कर सकता है जिसने इसको समीप से महसूस किया है| हमारे नेता स्वयं को जमीन से जुड़ा हुआ बताते हैं लेकिन चुनाव होने तक, जीतने के बाद तो वे जमीन से कट जाते हैं और आसमान को छूने लग जाते हैं| महंगाई अभी रुकी नहीं है और आने वाले समय में ये महंगाई अपने साथ कई और परेशानियां लेकर आएगी उनका सामना करने के लिए सभी हिंदुस्तानियों को अभी से तैयार रहने की आवश्यकता है| देश में बढती महंगाई पर आमिर खान की फिल्म पीपली लाइव का गीत महंगाई डायन खाए जात है तो समयानुकूल है ही लेकिन   किसी कवि की निम्न पंक्तियाँ भी एकदम सटीक जान पड़ती है-
महंगाई दिन-दिन बढे ज्यूँ बान्दर री पूंछ,
रहणी मुश्किल है अठे बड़ा-बड़ा री मूंछ,
बड़ा बड़ा री मूंछ नाज को टोटो खासी,
रोसी भूखो लाल दूध सपनो हो जासी,
सांची कहूँ आपने होवगा न घी का दर्शण, 
लूखा खातां रोट लागली आंख्यां बरसण,
केन्द्र और प्रदेश सरकार में काबिज मंत्री और उनके आकाओं को समय रहते इस पर प्रभावी अंकुश लगाने की जरूरत है वरना जनता जनार्दन को पलटते समय भी नहीं लगता| कहीं वर्तमान सत्ताधारियों को अगले चुनावों के बाद ऐसा न कहना पड़े-
यह चुनाव भी अभूतपूर्व है
कल तुम भूतपूर्व थे और
आज हम भूतपूर्व हैं






3 comments:

  1. राजनेताओं का झूठ बयां करती समयानुकूल पोस्ट| राजकुमारजी इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई| भविष्य में भी ऐसी बेबाक टिप्पणियां लिखते रहें|
    प्रीति सिंह

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  2. आपने आम आदमी के मन की भड़ास बयान की है , लेकिन एक बात ध्यान देने की है कि कोई भी राजनितिक दल देश को इन हालातों से उबारने में सक्षम नहीं दीखता, जिस तरह रेगिस्तान में मरीचिका के धोखे में कोई भी प्राणी भटकता रहता है वही हाल आज के भारतीय का है | चाहे वह किसी भी पार्टी को समर्थन करता हो, उसे पता होता है कि; इस पार्टी वाले भी कुछ नहीं कर सकते फिर भी वह उनके द्वारा बनायीं मरीचिका में फंसता है और अपनी हैसियत के अनुसार लालच में उलझ कर उन्हें ही वोट दे देता है | चाहे भूखे नंगे हों या आवश्यकता से अधिक का भोग करने वाले, सबका यही हाल है | इसमें साधारण आदमी जो वास्तविक वोटर होता है उसका कुछ वस नहीं चलता | क्योंकि सभी राजनितिक दलों की वैसी ही स्थिति है जैसे एक नागनाथ है तो दूसरा सांपनाथ, कोई भेड़िया है तो कोई शेर | इसलिए इस व्यवस्था में तो कुछ नहीं हो सकता, हाँ ; वर्तमान में एक आशा की किरण स्वामी रामदेव जी ने भारत स्वाभिमान आन्दोलन के नाम से दिखाई है जिसमे सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन का संकल्प लिया गया है और पुरे देश में इसके लिए जनजागरण अभियान और सदस्यता अभियान छेड़ा हुआ है | २०१४ में इसीसे कुछ उम्मीद है | आप भी देखा कीजिये सुबह आस्था चैनल पर ५ से ७-३० तक उनके दर्शन(विचार) का प्रसारण |

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