निशंक पर हो रहे हैं अब प्रायोजित हमले
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पिछले दिनों उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक ने राज्य के युवाओं के लिए राज्य में समुह ग के पदों के साथ-साथ कई दूसरे पदो की घोषाणा की ताकि उत्तराखंड के युवाओं को उन्हीं के राज्य में रोजगार प्राप्त हो। इसके बाद पंद्रह अगस्त से ठीक पहले मुख्यमंत्री ने उत्तराखंड के सभी चिहि्नत राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में दस फीसदी का क्षैतिज आरक्षण की परिधि में लाने का निर्णय लिया। इससे पहले अभी तक जेल जाने वाले आंदोलनकारियों को ही इस दायरे में रखा गया था। राज्य में सबसे ज्यादा दिनों तक सत्ता में रही कांग्रेस सरकार जो नहीं कर पायी थी। निशंक ने वह एक झटके में कर दिखाया,जिससे बौखला कर कांग्रेस के नेता अब निशंक के खिलाफ प्रायोजित हमले करने लगे है।
जहां तक राज्य आंदोलनकारियों की बात हैं ने तो सरकार ने पूर्ण विकलांग आंदोलनकारियों को प्रतिमाह दस हजार की पेंशन सम्मान रूप में दिए जाने का फैसला भी लिया है। सरकार ने अब जो आदेश जारी किया है। उसमें आंदोलनकारियों की नियुक्ति के संबंध में जारी पूर्व शासनादेश को संशोधित कर दिया गया है। पूर्व में राज्य आंदोलन के दौरन सात दिन की अवधि से कम जेल जाने वाले आंदोलनकारियों को भी राजकीय सेवा में अधिकतम पचास साल की आयु तक नियुक्ति दिए जाने व चयन में पांच फीसदी का अधिमान दिए जाने की सुविधा थी। साथ ही दस अगस्त 2011 तक के लिए इन आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण की सुविधा प्रदान की गई थी।
सरकार ने यह भी निर्णय लिया हैं कि राज्य आंदोलन में भाग लेने के कारण जो आंदोलनकारी चलने फिरने में असमर्थ हो गए हैं उन्हें अब दस हजार रुपये प्रतिमाह पेंशन मिलेगी। यह सम्मान उन्हीं को मिलेगा,जिन्हें कोई अन्य पेंशन अन्य श्रोत से नहीं मिल रही है। सरकार के इस फैसले के बाद राज्य आंदोलनकारियों को खुशी के लहर दौड़ पड़ी हैं। आंदोलनकारियों का कहना हैं कि डॉ.निशंक ने निश्चित तौर पर आंदोलनकारियों के हित में यह काम किया है। जिसके लिए राज्य आंदोलनकारी उनका धन्यवाद करते है
दूसरी तरफ सरकार के इन प्रोत्साहित कार्य को देखकर विपक्षि दल घबरा गए हैं,बौखला गए है। और उन्होंने उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पर मीडिया और नीजी तौर पर प्रायोजित हमले करने शुरू कर दिए है। इसी कडी में डॉ.निशंक पर लगे ताजे आरोपों को देखा जा रहा है। जिसके बारे में नैनिताल हाईकोर्ट कड़ी आलोचना करते हुए कहां हैं कि यह याचिका दायर कर कोर्ट को बरगलाने की कोशिश गयी है। जिस महिला ने डॉ.निशंक पर इस तरह के आरोप लगाए, उसका खुद का पूर्ववर्ती इतिहास क्या है, ऐसे में डा0 निशंक पर आरोप लगाने वाले किसी के हाथ की कठपुतली बन कर हमले करने की कोशिश की है। इसी तरह की घटनाओं के बारे में आम लोगों का कहना हैं कि, ऐसे लोगों को समाज से दूर रखा जाना चाहिए और उनके खिलाफ कडी कार्यवाही अमल में लायी जानी चाहिए।
दरअसल पिछले दिनों श्रीमती रूचि छेत्री ने डॉ.निशंक पर आरोप लगाते हुए। कांग्रेस के एक बड़े नेता की हाथ की कठपुतली बनते हुए नैनीताल हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इस दायर सनसनीखेज़ वृत याचिका को विस्तृत सुनवाई के बाद उच्च न्यायलय ने खारिज कर दिया. इस याचिका की पैरवी के लिये उत्तराखंड के महाधिवक्ता एस एन भाबुलकर हाई कोर्ट में पेश है जबकि अपर महाधिवक्ता अमन सिन्हा दिल्ली से मामले में बहस के लिये खास तौर से दिल्ली से आये थे। सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति बी एस वर्मा ने इस मामले में प्रस्तुत उनके तर्कों से सहमत होते हुए उनके रुख का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि इससे पहले विभिन्न चरणों में इसी तरह की याचिकाएं दायर की गयी हैं और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए वैसे ही एक मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश की गयी है. उन्होने इस टिप्पणी के साथ रिट याचिका खारिज कर दी और साथ ही याचिककर्ता पर पाँच हजार रुपये का लागत जुरमाना भी लगाया। इससे साफ जाहिर हो जाता हैं कि इस तरह के लोग डॉ.निशंक की छवि को किसी तरह धुमिल करना चाहते है। यही नहीं अब तो विपक्ष के कुछ बड़े नेता इतने गिर गए हैं कि उन्होंने मुख्यमंत्री को किसी भी किमत पर बदनाम करने के लिए कुछ छुट भैया पत्रकारों और मुख्यमंत्री के आस-पास घुमने वाले,कुछ विपक्ष के हाथों बिक चुके मुख्यमंत्री के अपने ही बैमान लोगो को खरीदना शुरू कर दिया है। ताकि कहीं से भी कोई लू-पोल मिले और वह डॉं.निशंक को अच्छा काम करने से रोक कर ऐसे मामलों में उलझा दें। इन विपक्ष के कर्णधारों ने डॉ.निशंक के खिलाफ प्रयोजित हमले करने भी शुरू कर दिए है। लेकिन विपक्ष यह कैसे भूल जाता हैं कि डॉ.निशंक इन प्रयोजित हमलों से घबराने वालों में से नहीं है। वह विकास पुरूष के नाम से धीरे-धीरे अपनी छापा राज्य के जनमानस के मानसपटल पर छोड़ते जा रहे है। जिसका नतिजा यकीनन आने वाले समय में विपक्ष के सामने होगा और इनके प्रयोजकों के सामने भी।
- जगमोहन 'आज़ाद'
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