वर्तमान में जिम्मेदारियों से झुके भाई के कन्धों को बहन का रचनात्मक सहयोग और समर्पण मिलने लगा तो दूसरी ओर भाई ने बहन के प्रति अपने लगाव और स्नेह को अत्यधिक मुखर स्वर दिया | देखने और सुनने में यह बेहद सकारात्मक और सुखद लगता है, किन्तु इसका नकारात्मक पहलू यह है कि अब वह आस्था, वचनबद्धता और एक-दूसरे के लिए कुछ भी कर गुजरने का जज्बा देखने को नहीं मिलता | आज का भाई अपनी बहन के लिए करता सबकुछ है लेकिन उसका ब्यौरा भी अपने पास सुरक्षित रखता है और वक्त पड़ने पर उसने कब-कब और क्या-क्या किया, यह बताने से भी परहेज नहीं करता है |
धीरे-धीरे तस्वीर बदलती जा रही है| समय चक्र ने हमारे सामाजिक ढांचे और घरेलू व्यवस्था को बदल-सा दिया है | माना कि आज की बहनें पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन कुशलतापूर्वक कर सकती हैं, वे सक्षम हैं, सफल हैं और भाइयों से ज्यादा संवेदनशील भी हैं लेकिन इसके कारण रक्षाबंधन में रक्षा के वचन को ही भाई-बहन रिप्लेस कर दें ये कहां की समझदारी है? पहले एक सामाजिक व्यवस्था थी कि भाई, पिता की विरासत को संभालेगा और बहन को जीवन पर्यंत उस विरासत का कुछ अंश उपहारस्वरूप देता रहेगा, किन्तु कानून के दखल ने भाई और बहन के इस मानसिक ताने-बाने को उधेड़ दिया है| अब भाई की सोच यह हो गयी की बहन भी पिता की विरासत में बराबर की अधिकारिणी है तो फिर कैसा उपहार |
“अब पहले जैसी बात नहीं, अब तो दीदी को भी धनवान भाई चाहिए, अब दीदी बदल गयी है, अब भाई वो प्रेम नहीं देते, मैं ही हर बार भैया के क्यों जाऊं या बड़े भैया के यहां जाना अच्छा लगता है” - ये ऐसे जुमले हैं जो बहन-भाई अकेले में अक्सर प्रयोग करते हैं लेकिन ऐसा कहना ठीक नहीं, क्योंकि आपसी सौहार्द्र और वचनबद्धता पर टिके इस रिश्ते को आर्थिक आधार पर आंकना इस पर्व की तौहीन करना है | इस रिश्ते का मूल आधार प्रेम और समर्पण है, इसलिए इस रिश्ते में केवल प्रेम और स्नेह की मांग होनी चाहिए क्योंकि प्रत्येक रिश्ते की तरह इसमें भी इनपुट और आउटपुट का फार्मूला लागू होता है | यदि भाई या बहन एक-दूसरे के जीवन में प्रेम, अनुराग और लगाव को इन्वेस्ट करेंगे तो कोई कारण नहीं कि बदले में तिरस्कार मिले | हां, एक बात और कि बहनें भाभी से भी उतना ही प्रेम और लगाव रखें जितना कि भाई से रखती हैं| क्योंकि भाई के मन में बहन के प्रति लगातार प्रेम बनाए रखने में भाभी का बहुत बड़ा हाथ होता है | भाइयों को भी चाहिए कि वो यदि बहन शादीसुदा है तो बहन के जीवन-साथी का भी उतना ही सम्मान करें जितना कि वे बहन का करते हैं|
इसलिए हमारा रक्षाबंधन का यह पर्व मनाना तभी सार्थक होगा जब हम इस पर्व को मन में किसी प्रकार का बोझ न रखते हुए पूर्ण मनोभाव, आस्था और कर्म से उत्साहपूर्वक मनाएं | कुछ पल चैन और सुकून के निकालकर भाई-बहन एक-दूसरे के साथ बैठें और मन की बात करें इससे मन भी हल्का होगा और मन में कोई गिला-शिकवा है तो वह भी दूर होगा | जरा विचार करें कि यह रिश्ता आपके जन्म के साथ शुरू हुआ था और वर्तमान में आपके पास भाई-बहन के रूप में ही माता-पिता के जीवंत निशान मौजूद हैं इसलिए उन्हें आर्थिक आधार पर वर्गीकृत कर यूं ही मत मिटाइये | यदि इस सोच के साथ सभी बहनें और भाई इस त्यौहार को मनाएंगे तो कोई कारण नहीं कि इस मधुर रिश्ते में कड़वाहट घुले और दूरियां बढे |
राजकुमार शर्मा,
जयपुर|
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