15.8.10

विपक्ष हमारी कामयाबियों को पचा नहीं पा रहा है - 'निशंक'
-----------------------------------------------------------------
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल 'निशंक' पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में जीएसटी पर आयोजित बैठक में शामिल होने आए थे। केंद्र की इस प्रस्तावित कर प्रणाली जीएसटी का मुख्यमंत्री ने विरोध किया है। मुख्यमंत्री का कहना था कि इससे राज्यो की स्वायत्ता खत्म हो जाएगी। राज्यों का अपनी वित्तीय आवश्यकताओं के अनुरूप टैक्स लगाने व उसे कम या अधिक करने का अधिकार समाप्त हो जाएगा।
दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का हालिया उत्तराखंड दौरा सियासी गलियारों में गाहे-बगाहे 'उपजायी' जा रही सारी राजनीतिक अटकलों को विराम दे गया। एक अच्छे नितृत्व करने के लिए गडकरी ने जहां मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक की पीठ थपथपायी,वहीं राज्य में 2012 के आम चुनावों की कमान डॉ.निशंक के हाथों ही सौंपे जाने का ऐलान भी किया। इससे कांग्रेस समेत सारा विरोधी खेमा तो पस्त पड़ा ही,सरकार ओर संगठन में नई स्फूर्ति का संचार भी हुआ। शीर्ष नेतृत्व की इस पहल से उत्साहित डॉ.निशंक आसन्न 'चुनौती' को एक बेहतरीन अवसर में बदलने को जुट गए है।
जहां तक जीएसटी की बात हैं तो डॉ.निशंक ने इसका विरोध किया है। वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी से मिलने के बात हमने उनसे खारतौर पर राज्य के सर्वागीण विकास के कई पहलुओं पर बातचीत की यहां प्रस्तुत है,इसी बातचीत के मुख्य अंश- जगमोहन 'आज़ाद'
1- निशंक जी आप केंद्र की प्रस्तावित कर प्रणाली जीएसटी का विरोध आखिर क्यों कर रहे है?
- देखिए! हमारा केंद्र से यह कहना हैं कि इस प्रणाली से राज्यो की स्वायत्ता खत्म हो जाएगी। राज्यों का अपनी वित्तीय आवश्यकताओ के अनुरूप टैक्स लगाने व उसे कम या अधिक करने का अधिकार समाप्त हो जाएगा। विशेष श्रेणी का राज्य होने के चलते उत्तराखंड को जीएसटी प्रणाली मे उत्तर पूर्वी राज्यो के समान ही सहूलियत दी जानी चाहिए। हमने केंद्र की प्रस्तावित कर प्रणाली जीएसटी की कमियों की ओर ध्यान आकर्षित करते उन्हें बताया है कि पहले से ही राज्यो के पास वित्तीय संसाधन अपर्याप्त है, जीएसटी के लागू होने से राज्य सरकारे पूरी तरह से केंद्र पर निर्भर हो जाएंगी। केंद्र सरकार राज्यो को होने वाले नुकसान की भरपाई पांच वर्ष तक करने की बात कह रही है। जबकि पांच वर्ष बाद भी हानि मे रहने वाले राज्यो को केंद्र किस रूप मे क्षतिपूर्ति करेगा, यह स्पष्ट नही है। वैसे भी वैट से होने वाले नुकसान की भरपाई केंद्र अभी तक नही कर पाया है। हमने इस मामले में केंद्र सरकार से जीएसटी के क्रियान्वयन का स्पष्ट रोडमैप राज्यो के समक्ष रखने की मांग की ही साथ ही हमने केंद्र सरकार से यह जानना चाहा हैं कि अगले वर्ष एक अप्रैल से प्रस्तावित जीएसटी को किस प्रकार लागू किया जाएगा व आर्थिक दृष्टि से कमजोर राज्यो को किस प्रकार सहायता दी जाएगी पहले यह स्पष्ट किया जाएं। यही नहीं एल्कोहलिक पेय, पेट्रोलियम पदार्थ एवं तंबाकू उत्पादो पर आरोपित होने वाला बिक्री कर जीएसटी प्रणाली मे किस प्रकार समाहित होगा।
2-आपको केंद्रीय नेतृत्व ने आगामी चुनाव,आपके नेतृत्व में ही लड़ने की घोषणा कर दी है। इसके लिए क्या कार्य-योजना बना रहे है आप?
- सर्वप्रथम,मेरी पार्टी ने मुझ पर इतना बड़ा भरोसा जताया है,इसके लिए में बहुत-बहुत आभारी हूं। साथ ही मैं आश्वस्त करता हूं,कि पार्टी ,सरकार व समस्त उत्तराखंडी जनमानस के आत्मीय सहयोग व मार्गदर्शन से इस विश्वास पर मैं अवश्य खरा उतरूंगा। उत्तराखंड राज्य के समग्र विकास की परिकल्पना को साकार करना,छोर के आखिरी व्यक्ति के होंठो तक मुस्कान पहुंचाना ही हमारी सरकार और हमारी पार्टी की प्राथमिकता रही है। इसी विचार को लेकर माननीय अटल जी के नेतृत्व में सन् 2000 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने उत्तराखंड राज्य की घोषणा की थी। मुझे बड़ी खुशी हैं कि हमने इस दिशा में अपनी वचनबद्धता को साबित किया है और अब तक हमारी सरकार इस दिशा में कई उपलब्धियां अर्जित कर चुकी है। ये सब हमारी कार्ययोजना का ही हिस्सा है। हमारी कामयाबियों का सबसे बड़ा सबूत है विरोधियों की बौखलाहट। दरअसल विपक्ष हमारी कामयाबियों को पचा नहीं पा रहा है।
आज विकास में हम देश के 28 राज्यों में तीसरे स्थान पर हैं। केंद्रीय वित्त आयोग ने हमारे प्रयासों को सराहा है और इसलिए एक हजार करोड़ की प्रोत्साहन राशि हमारे राज्य को अनुमोदित की है। राज्य की प्रति व्यक्ति आय जो राज्य गठन के समय 14 हजार वार्षिक थी,बढ़कर आज लगभग तीन गुना हो गई है। यह देश का पहला राज्य है जिसने केंद्रीय कर्मियों की तरह सबसे पहले अपने राज्य कर्मियों को छठे वेतनमान का लाभ दिया है। दुनिया के अब तक के सबसे बड़े आयोजन कुम्भ का सफल संचालन राज्य की बढ़िया व्यवस्था और कुशल प्रबंधन का ही पिरचायक है। यह हमारे सफल नियोजन का ही परिणाम है कि केंद्रीय योजना आयोग ने हमारे बजट प्रस्ताव को पूरा का पूरा मंजूर कर लिया। जो अपने आप में ऐतिहासिक है। हमने पहली बार पहाड़ के लिए भी विशेष आर्थिक नीति बनाते हुए उसे व्यावहारिक धरातल पर उतारना शुरू कर दिया है। सुविधाएं व रोजगार के अवसर बढ़ाकर पलायन रोकना हमारी प्राथमिकता है। उद्योंग बढ़ाने के साथ-साथ औद्योगिक निवेशकों को हमने सामाजिक जिम्मेदारी से भी बांधा है। इस तरह यहां लगने वाले उद्योग अब स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण के साथ-साथ रोजगार भी देंगे। प्रशिक्षण अवधि के दौरान युवाओं को साढ़े पांच हजार रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति भी मिलेगी। पंतनगर स्थित सिडकुल के अंतर्गत पहल के प्रथम चरण का शुभारंभ कर दिया गया है। एन.आई.टी,आई.आई.एम जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थान हम यहां खोलने जा रहे हैं। प्रदेश को पर्यटन,ऊर्जा,आयुर्वेद के साथ-साथ शैक्षिक हब के रूप में विकसित किया जा रहा है। राज्य के विकास के लिए हमने अगले बीस सालों का पूरा खाका ब्लू-प्रिंट,विजन-2020 तैयार किया है। हमने राज्य को देश का आदर्श बनाने का बीड़ा उठाया हैं पर इस के लिए केंद्र सरकार का समुचित सहयोग भी अपेक्षित है।
3- केंद्र से किस तरह के अपेक्षित सहयोग की आप बात कर रहे हैं?-
- मैं केंद्र से राज्य के हक-हकूक दिलाने की बात कर रहा हूं। विशेष राज्य को मिलने वाली संवैधानिक सहूलियतों की बात कर रहा हूं। आखिर उत्तराखंड एक नवोदित राज्य है,वह भी विकट भौगोलिक परिस्थितियों वाला। आप इसकी तुलना एक सामान्य राज्य से क्यों करते हैं? यह भी तो हमारे 11 हिमालयी राज्यों में एक है। अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से लगा होने के कारण सामरिक दृष्टि से उतना ही संवेदनशील है। इसलिए जो रियायतें,जो सुविधाएं आप पूर्वोत्तर राज्यों को दे रहे हैं,जम्मू-कश्मीर को दे रहे हैं,वह हमें भी दीजिए। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि देश सेवा में आज हम सबसे आगे हैं,पर सुविधाओं में हमें सबसे पीछे धकेल दिया गया है। हम कोई भीख नहीं मांग रहे हैं,अपना हक मांग रहे है। लेकिन इसमें राजनीति क्यों?दोरही नती क्यों?
4- कैसी राजनीति? इसे विस्तार से समझाएगें?
- बिल्कुल। भारत सरकार सिक्किम में पैकयोंग के लिए 325 करोड़.अरुणाचल प्रदेश में ईटानगर के लिए 550 करोड़,नागालैण्ड में चेथू कोहिमा हेतु 660 करोड़ रुपए,तीन ग्रीन फील्ड हवाई अड्डों के निर्माण हेतु शत-प्रतिशत अवस्थापना अनुदान के रूप में दे रही है। हमारा कहना है कि हमारे यहां नैनी-सैनी(पिथौरागढ़),चिन्यालीसौड़(उत्तरकाशी) व गौचर (चमोली) भी तो ऐसे ही संवेदनशील अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास है। यहां के लिए यह सुविधा क्यों नहीं दी जा रही। बॉर्डर एरिया डेवेलपमेंट प्लान के तहत राज्य में चार पर्वतीय व एक मैदानी सीमान्त जिले के सिर्फ 9 विकास खण्डों को ही लिया जा रहा है। जिसमें लगभग 7 प्रतिशत आबादी ही लाभान्वित हो पा रही है। जबकि दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण चिन्हित सीमान्त विकास खण्डों के विकास हेतु अन्य विकास खंड़ों को जोड़ना अपरिहार्य है।
आंकडे इस बात के गवाह हैं कि विशेष राज्य का दर्जा पाए अन्य राज्यों की तुलना में उत्तराखंड को पिछले वर्षों में प्रति व्यक्ति अनुदान सबसे कम दिया गया हैं,साथ ही सकल घरेलू उत्पाद के सपेक्ष प्राप्त अनुदान का प्रतिशत भी सबसे कम है। यही नहीं इन पिछले तीन सालों में तो हमारा खाद्यान्न कोटा भी घटा दिया गया है। एपीएल योजना के तहत जहां लगभग 36 हजार मीट्रिक टन गेहूं की जरुरत है वह घटाकर 15 हजार कर दिया गया है। इसी तरह चावल की जरुरत है लगभग 27 हजार मीट्रिक टन,लेकिन मिल रहा है सिर्फ ढाई मीट्रिक टन। मिट्टी तेल भी 12 हजार किलोलीटर प्रतिमाह की जगह 9 हजार किलोलीटर कर दिया गया है। चीनी भी आधे से कम मिल पा रही है। ताज्जुब तो यह है कि इतिहास में ऐसा उदाहरण शायद ही नहीं मिले कि केंद्र द्वारा पूर्व में दी गई सुविधा को निर्धारित समय से पहले ही छीन लिया गया हो।
5- सुविधाएं छीन लेने से आपका मतलब?
- मेरा मतलब है,आपने खाद्यान्न कोटा घटा दिया,हम बर्दाश्त कर गए। सूखा राहत,पेंशन फंड,रेलवे नेटवर्क से लेकर तमाम जरूरी सुविधाओं की अनदेखी की गई,हम कुछ नहीं बोले। एम्स की अभी तक कोई सुध नहीं ली जा रही है। उत्तराखंड को 2001-02 में विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था। पूर्वोत्तर राज्यों की तरह आर्थिक सहायता भी मीली पर सिर्फ कहने भर की। पूरे राज्य को छोड़ अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगे चार पर्वतीय व एक मैदानी जिले के मात्र नौ ब्लॉकों को शामिल कर खाना पूरी करना दुर्भाग्य पूर्ण है। इसी क्रम में राज्य को जनवरी 2003 में विशेष औद्योगिक प्रोत्साहन पैकेज दिया गया जो 2013 तक तय था। लेकिन इसे छीनकर मार्च 2010 में खत्म कर दिया गया। यह नवोदित राज्य के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसा अन्याय क्यों? अरे साहब आप दीजिए मत,लेकिन छीनिए तो नहीं। एक ओर उत्तराखंड और हिमाचल को 10 वर्ष के लिए मिला औद्योगिक पैकेज छीन लिया गया हैं वही दूसरी ओर पूर्वोतर राज्यों को सन् 1997 से मिले औद्योगिक पैकेज की अवधि पहले सन् 2007 और फिर 2007 से भी बढ़ाकर सन् 2017 तक कर दिया गया। इस प्रकार पूर्वोत्तर राज्यों को 20 वर्ष के लिए और हामरे राज्य को 10 वर्ष से भी घटाकर मात्र 7 वर्ष कर दिया गया। जबकि हम दोनों राज्यों की परिस्थितियों भी कमोवेश पूर्वोत्तर राज्यों के समान ही है। इसे आप अन्याय नहीं तो क्या कहेंगे?
6- तो इस चुनौती से अब आप कैसे निपटने जा रहे है?
- निःसंदेह केंद्र के इस रवैये से हमारे प्रयासों को बड़ा झटका लगा है। जो समय,जो उर्जा हम आगे बढ़ने में लगाते वह अब इन चुनौतियों से निपटने में लग रही है। लेकिन फिर भी हम दृढ़ता से आगे बढ़ रहे है। यह हमारी प्रतिबद्धता का ही प्रतिफल है कि कांग्रेस ने पूरे पांच वर्षों में जितना पूंजी निवेश किया हमारी सरकार ने उतना अकेले 2009-10 में ही कर दिखाया है। पर हमें आगे आशंका है कि केंद्र के इस रवैये से राज्य में होने वाले प्रस्तावित औद्योगिक निवेश रूपए 32 हजार 630 करोड़ और साथ मे लगभग 2 लाख 64 हजार लोगों का रोजगार गंभीर रुप से प्रभावित हो सकता है। इसलिए राज्य में औद्योगिक माहौल बना रहे इसके लिए हम आगे भी केंद्र पर दबाव बनाए हुए हैं।
7- आपने इस दिशा में जो मुहिम छेड़ रखी है। अपने स्तर से भी आप निरंतर लगे है। कई बार दिल्ली में केंद्र सरकार के समक्ष आपने अपनी बाते रखी हैं,इस बावत कितनी बार व्यक्तिगत संपर्क कर चुके होंगे आप और क्या हासिल हुआ?
- राज्य हित के लिए हम अंतिम क्षण तक कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगे। औद्योगिक पैकेज के लिए मैं प्रधानमंत्री जी से लेकर केंद्रीय मंत्रीगणों व अन्य से 27 जून को मुख्यमंत्री पद सभालने के बाद व्यक्तिगत तकरीबन दर्जन बार संपर्क कर चुका हूं। सर्वप्रथम 7 जुलाई 2009 को मैने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। 4 अगस्त को दिल्ली प्रवास के दौरान भाजपा के शीर्ष नेताओं समेत पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के समक्ष भी यह मामला रखा। 26 अक्टूबर को मैने पुनःप्रधानमंत्री जी को पत्र भेजा। 14 नवंबर को मैं दिल्ली में केंद्रीय उद्योग व वाणिज्य मंत्री आनंदशर्मा जी से मिला। 24 दिसंबर को प्रदेश के माननीय सांसदों के साथ प्रधानमंत्री जी से भेंट हेतु अनुरोध पत्र भेजा। 19 जनवरी को मैं माननीय सांसदों के साथ प्रधानमंत्री जी से मिला। 23 मार्च को हमने विधानसभा में संकल्प पारित किया। 28 मार्च को संकल्प की प्रति के साथ पुनःप्रधानमंत्री जी को अनुरोध पत्र भेजा। 29 मार्च को प्रदेश मंत्रिमंडल के साथ दिल्ली में प्रधानमंत्री जी से भेंट की इसके अतिरिक्त मैने व धूमल साहब ने इसी मुद्दे पर शिमला में बैठकर संयुक्त अनुरोध पत्र प्रधानमंत्री जी को भेजा।
25 मई को पुनः प्रधानमंत्री जी को ज्ञापन भेजा। 19 जून को पंतनगर विवि के दीक्षान्त समारोह के अवसर पर फिर अनुरोध पत्र प्रधानमंत्री जी को दिया। 6 जुलाई को चंडीगढ़ में केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में उत्तर क्षेत्र को राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक के दौरान उन्हें भी अनुरोध पत्र दिया। 7 जुलाई को पूर्व उप प्रधानमंत्री और हमारे वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी जी,लोकसभा में नेता विपक्ष श्रीमती सुषमा स्वराज जी,राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष श्री अरुण जेटली जी और हिमाचल के मुख्यमंत्री प्रो.प्रेम कुमार धूमल जी के साथ प्रधानमंत्री जी से दिल्ली में भेंट कर औद्योगिक पैकेज सीमा बढ़ाने की पुरजोर मांग की और यह सिलसिला तब तक जारी रहेगा।
8- आपकी सरकार ने उत्तराखंड के युवाओं के लिए समूह 'ग' में नौकरी के भी द्वार खोल दिए हैं। इस बारे में आपका क्या कहना है?
- यह एक ऐतिहासिक कदम हैं। सरकारी सेवा में नौकरियों का इतना बड़ा अवसर हमारी सरकार की बड़ी उपलब्धि है। लोक सेवा आयोग से अधीनस्थ पदों को बाहर करना। भर्ती सीमा में पांच वर्ष की छूट देना तथा परीक्षा में स्थानीय विषयों एवं संदर्भों को प्रमुखता से शामिल करने से बेशक नौकरी के अवसर बढ़े हैं। इसमें भी ग्रामीण युवा इसका फायदा ज्यादा उठा सकेगा। क्योंकि चयन परीक्षा में अधिकांश प्रश्न स्थानीय परिवेश पर आधारित होंगे। ग्रामीण प्रतिभा प्रखर है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि हमारे दूर दराज के गांवों के युवा भी इस अवसर का लाभ उठा पाएंगे।
आईटीआई को तकनीकी शिक्षा के अंतर्गत शामिल करने से सारी तकनीकी शिक्षा एक ही छतरी के नची आ जायेगी। जिससे आईटीआई प्राप्त युवा भी आसानी से उच्च तकनीकी शिक्षा हासिल कर सकेंगे। उनके पाठ्यक्रम को नए जमाने की मांग के अनुरुप नवीन रूप में परिष्कृत किया जा रहा है।
9- पहाड़ की महिलाओं को पहाड़ के विकास में मील का पत्थर माना जाता है। क्या आपकी सरकार ने इस मील के पत्थर के कल्याण के कुछ विशेष प्रयास कर रही है?
- सरकार द्वारा पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू करना एक क्रांतिकारी कदम है। इससे महिलाओं की सामाजिक व राजनैतिक भागीदारी में उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं। उत्तराखंड की वीरांगना तीलू रौतेली के नाम से विशिष्ट क्षेत्रों में कार्य करने वाली प्रत्येक जनपद से एक-एक महिला को प्रतिवर्ष तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। इसके अंतर्गत सम्मानित महिला को दस हजार रूपए की धनराशि तथा सम्मान पत्र प्रदान किया जाता है। प्रदेश के अति दुर्गम क्षेत्र की गरीब महिलाओं के निःशुल्क गैस संयोजन देने की योजना प्रारम्भ की गई है। पहाड़ में महिलाओं का अमूमन पूरा दिन चारा-पत्तियों की व्यवस्था में ही लग जाता है। सरकार ने उन्हें इस बोझ से मुक्ति दिलाने के लिए प्रत्येक विकास खण्ड में चारा विकास योजना लागू की है। इसके अतिरिक्त महिला सशक्तिकरण हेतु हमारी सरकार ने 1500 करोड़ के जेण्डर बजट की भी प्रावधान किया है। साथ ही हम महिलाओं के लिए कई ऐसी कल्याणकारी योजनाएं चला रहे हैं,जिसके माध्यम से पहाड़ की महिलाएं अपनी जीवन यात्रा को सुफल बना सकें।
10- पलायन की समस्या आज भी वैसे ही बनी हैं,जैसे पहले थी। विशेषकर यहां के युवाओं के बारे में कहा जाएं तो। क्या आपकी सरकार इस दिशा में भी कुछ कर रही है?
- पहाड़ से पलायन की समस्या के प्रति सकराक वास्तव में गंभीर है। हमारी सरकार उत्तराखंड के युवाओं को शिक्षा-रोजगार प्राप्त करने के प्रति दृढ़ इच्छा रखती है। शैक्षिक गुणवत्ता के उच्च स्तर को प्राप्त करने हेतु सरकार ने कई अभिनव प्रायस किए हैं,और कर भी रहे है। विद्यालयों,शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के उत्साहवर्द्धन के लिए शैलेश मटियानी राज्य शिक्षक पुरस्कार प्रारम्भ किया गया है। सरकार सपनों की उड़ान एवं देवभूमि मुस्कान योजना से गरीब एवं मेधावी बच्चों में पढ़ने के प्रति रूचि बढ़ने का कार्य कर रही है। पूर्ववर्ती सरकार की बी.टी.सी. परीक्षा विवाद में घिर गई थी,उसे वर्तमान सरकार ने शांतिपूर्वक ढंग से सम्पन्न कराया है। राज्य स्थापना के बाद पहली बार सभी जनपदों के डायटों में भावी प्राथमिक शिक्षक नई पाठ्यचर्चा के साथ सुचारू रूप में बी.टी.सी. प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।
आज़ाद जी,मैं आपको बताना चाहूंगा की उत्तराखंड देश का ऐसा पहला राज्य है,जहां आई.आई.टी,आई.आई.एम, एम्स,एन.आई.टी,पैट्रोलियम विश्वविद्यालय,विधि विश्वविद्यालय,आयुर्वेद विश्वविद्यालय तथा संस्कृति विश्विद्यालय जैसे अंतराष्ट्रीय स्तर के सारे संस्थानों की स्थापना की गई हैं। निश्चित रूप से आने वाले समय में उत्तराखंड न सिर्फ विश्व स्तरीय शिक्षा केंद्र के रुप में उभरेगा,बल्कि विश्व गुरु के रुप में प्रतिष्ठित भी होगा। यह उपलब्धि हमारे गौरवमयी इतिहास को पुनःजीवंत करेगी,बल्कि जब इन तमाम संस्थाओं के शिक्षित होकर हमारे युवा निकलेगें तो निश्चित तौर पर पलायन पर अंकुश लगेगा,इसके साथ ही भविष्य में सरकार रोजगार के कई अवसर राज्य में लाने वाली है,जिसका फायाद निश्चित तौर पर हमारे युवाओं को मिलेगा। इसके साथ ही युवाओं के लिए जड़ी-बूटी उत्पादन,दोहन का विशेष कार्यक्रम बनाया गया है और अभी तक 18 हजार किसानों (विशेषकर युवा)को इस योजना से जोड़ा जा चुका है।
11- अगर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बीच परिसंपत्तियों के बंटवारे संबंधी मामले की बात करें, इस दिशा में आपकी सरकार ने अभी तक क्या कदम उठाएं हैं?
- इस मामले पर दोनों राज्यों के बीच विगत दस साल से चला आ रहा गतिरोध टूटा है। उत्तराखंड के भीतर ही तमाम सिंचाई परियोजनाएं जो यू.पी के अधीन ही चली आ रही थी,वह राज्य को सौंपे जाने पर सहमति बन गई है। इस विषय में कार्य प्रगति पर है। साथ ही उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री जी से वार्ता कर 4000 पुलिस कार्मिकों के पदों का हस्तांतरण करवाकर राज्य में चार हजार नई पुलिस भर्ती और यू.पी के मेडिकल कॉलेजों में पी.जी. के लिए 80 सीटों का रास्ता भी खुल गया है। यही नहीं यू.पी.सरकार से राष्ट्रीय राजमार्गों के लिए जमीन के बावत भी सहमति बन गई है। इसलिए हम कह सकते है कि इस दिशा में हम जल्द से जल्द सारे मामले आपसी सहमति से सुलझा लेंगे जिसका राज्य के लोगों को ही लाभ मिलेगा।
12- कुम्भ 2010 के सफल आयोजन ने उत्तराखंड को विश्व मंच पर ला खड़ा किया है। इसका श्रेय आप किसे देगें?
- यह महाकुम्भ विश्व के इतिहास अब तक का सबसे बड़ा आयोजन साबित हुआ है अतः राज्य को यह गौरव दिलवाने वाली अपने राज्य की जनता को,पुलिस-प्रशासन और मीडिया को इसका श्रेय जाता है। निश्चित तौर पर कुंभ 2010 का सफलतापूर्वक आयोजन करना सरकार की विशिष्ट उपलब्धि रही है। जनवरी से अप्रैल 2010 तक लगभग 100 देशों के 8 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं का जन सैलाब देश-दुनिया के कोने-कोने से हरिद्वार में स्नान हेतु आया और हमने इस देवभूमि की अतिथि देवो भवः की परम्परा को बखूबी निर्वाह करते हुए उन्हें खुशी-खुशी विदा किया। एक नवोदित राज्य के लिए निःसंदेह यह बड़ी उपलब्धि है। इसकी चतुर्दिक सराहना भी हुई। राष्ट्रीय एवं विश्व स्तर पर कई प्रसिद्ध हस्तियों एवं संस्थाओं ने कुम्भ के सफल आयोजन की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। शिकागो बिजनेस स्कूल के विशेषज्ञों की टीम ने तो इसे विश्व की सबसे बड़ी मैनेजमेंट एक्सरसाइज ही नाम दे डाला और इस विराट आयोजन पर शोध करने व अमेरिकी विश्व विद्यालयों में कुम्भ प्रबंधन को पढ़ाए जाने की भी बात कही है।
13- आपकी सरकार द्वारा हाल ही में पतित-पावनी गंगा की निर्मलता एवं अविरलता बनाए रखने के लिए गंगा संरक्षण परियोजना 'स्पर्श गंगा' अभियान शुरु किया है। जिसके लिए हेमा मालनी को 'स्पर्श गंगा अभियान' का ब्रांड एम्बेस्डर बनाया गया है। विपक्ष का कहना हैं कि यह अभियान सरकार द्वारा फिजुल खर्चीं का अभियान है?
- आप लोगों के खुद देखा। मीडिया में टीवी चैनलों से लेकर अख़बारों तक में दिखाया गया की हमने पतित-पावनी गंगा की निर्मलता को अविरल बनाए रखने के लिए। जो स्पर्श गंगा अभियान चलाया है। उसका उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पूरे के मंचों पर भी स्वागत किया गया। क्योंकि जब जब पतित-पावनी गंगा निर्मलता के साथ बहेगी,तब हमारे भविष्य का विकास भी होगा।
जहां तक विपक्ष या दूसकी पार्टियों का इस अभियान पर सवाल उठाने की बात हैं, तो मेरा मानना हैं कि इनकी अपनी कोई उपलब्धि या इनमें कुछ कर दिखाने की कुव्वत तो है नहीं। इसलिए सरकार के हर सफल कार्यों से बौखलाकर वह विरोध पर उतर आती है और खिसियाकर जनता को गुमराह करने में लगे है। मेरी सलाह है कि ये लोग सरकार के अच्छे कार्यों की आलोचना के बजाय प्रशंसा करना भी सीखे। हमारे इस अभिनव प्रयास की चहुंओर प्रशंसा हो रही है। हम पूरी दुनिया को इस अभियान से जोड़ना चाहते है।
14-ग्रामीण क्षेत्रों की बात करे तो आज भी उत्तराखंड के कई गांव ऐसे हैं,जहां पर जीने के लिए मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। इस दिशा में आपकी सरकार क्या कर रही है?
- निश्चित तौर पर मैं आपकी बात से सहमत हूं। आज भी हमारे यहां कई गांव ऐसे है। जिन्हें सरकार द्वार दी जाने वाली सुविधाएं वास्तविक रूप में नहीं मिल पा रही है। हमें इस क्षेत्र में यकीनन काम कर रहे हैं और मुझे विश्वास हैं कि हम ऐसे क्षेत्रों में जल्द से जल्द पहुंचने का प्रयास करेगें। हमारा सपना उत्तराखंड को देश का आदर्श राज्य बनाने का है। इसके लिए हमें गांवों को समृद्ध करना होगा। अटल आदर्श ग्राम योजना इसी उद्देश्य से शुरू की गई है। इसके अंतर्गत प्रथम चरण में 670 न्याय पंचायत मुख्यालयों को एक संतुलित मॉडल विकास केंद्र यानी आर्दश गांव के रूप में विकसित किया जा रहा है। ये केंद्र संपूर्ण न्याय पंचायत के लिए एक प्रमुख संसाधन केंद्र की तरह कार्य करेगें। इन केंद्र में मूलभूत अवस्थापना सुविधाओं तथा ग्रामीण बाजार की उपलब्धता से युक्त रहेगें। शिक्षा,स्वास्थ्य,पेयजल,विद्युत संपर्क मार्ग के साथ ही बालिका छात्रावास,मोबाइल,बैंकिंग इण्टरनेट,पशु सेवा केंद्र,चारा बैंक,उद्यान सचल केंद्र,कृषि उपज संग्रहण एवं विपणन केंद्र के संचालन की सुविधाएं इन केंद्रों में मुख्यतयः हम जल्द से जल्द उपलब्ध कराने का पूरा प्रयास कर रहे हैं और मुझे उम्मीद है इसमें हमें जल्द ही कामयाबी मिलेगी। मुख्यमंत्री ग्राम संयोजन योजना के माध्यम से 250 की जनसंख्या तक के सभी गांवों को सड़क मार्ग से जोड़ने की हमारी सरकार ने बीड़ा उठाया है।
15- निशंक जी आप स्वयं एक पत्रकार-लेखक भी है। लेकिन उत्तराखंड के लेखक-पत्रकारों और लोक-संस्कृतिकर्मीयों की बात की जाएं तो अभी तक इनके लिए एक अकादमी का गठन सरकार नहीं कर पायी है?
- हम इस ओर तेजी से अग्रसर है। प्रदेश में भाषा संस्थान,हिन्दी अकादमी तथा संस्कृति-कला परिषद का गठन इसी प्रयास का प्रतिफल हैं। प्रदेश के साहित्यकारों,कवियों,कलाकारों को विविध स्तर पर सुविधाओं का प्राविधान किया गया है। उनकी कृतियों का प्रकाशन,दुर्लभ पांडुलिपियों,छाया चित्रों का संरक्षण,लोक-कलाकारों के मानदेय एवं दैनिक भत्तों की दरों को पहले से दुगना किया गया है। ऋषिकेश में हिमालयन म्यूजियम स्थापित किया जाना प्रस्तावित है। रेंजर्स कॉलेज परिसर देहरादून में ललित कला अकादमी की स्थापना के लिए किए गए प्रयास महत्वपूर्ण हैं।
16- निशंक जी! आपको क्या लगता है कि मुख्यमंत्री के रुप में आपकी एक वर्ष की यात्रा में आप पहाड़ के जनमानस की अपेक्षाओं पर खरा उतर पाएं है?
- यद्यपि एक वर्ष का कार्यकाल किसी की योग्यता मापने के लिए कतई पर्याप्त नहीं माना जा सकता है तथापि मैं कहना चाहूंगा की हमारी सरकार प्रदेश के आखिरी छोर और अंतिम व्यक्ति तक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ यथाशीघ्र पहुंचाने हेतु प्रतिबद्ध है। हमने गांवों को बुनियादी सुविधाओं से संतृप्त करने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए हमने अटल आदर्श ग्राम योजना शुरु की है। अटल आदर्श गांव जो राज्य के 670 केंद्रों पर होगा,प्रदेश के हर न्याय पंचायत मुख्यालय में एक ऐसा अभिनव केंद्र होगा,जो संपूर्ण ग्रामीण क्षेत्र के संर्वागीण समुचित विकास का मूल आधार सावित होगा।
पर्वतीय क्षेत्रों के लिए पहली बार विशेष औद्योगिक नीति बनाई गई है। जिसके अंतर्गत अब तक लगभग दो सौ करोड़ का पूंजी निवेश किया जा चुका है। पहाड़ में वहीं के अनुरुप उपलब्ध संसाधनों से उद्योग स्थापित कर स्वरोजगार को बढ़ावा दिया जा रहा है। यहां के युवाओं को हम विशेष प्रशिक्षण की भी व्यवस्था कर रहे है। वीर चंद्र गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना के अंतर्गत युवकों को अधिकाधिक स्वरोजागार देने की सरकार की कोशिश है। जहां तक पहाड़ के जनमानस की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की आपने बात की तो यह तो आने वाले समय में राज्य की जनता स्वयं तय करेगी की हमने विकास के धरातल पर क्या काम किए है? योजनाओं को धरातल पर उतारने में थोड़ा समय तो लहता ही है। हम पहाड़ की विकास यात्रा को कहां तक लेकर गए है,या ले जा रहे है? इस विषय में जनता को ही निर्णय लेना है। जिसका समय बहुत जल्दी आने वाला हैं,इसे हम आप सभी देखेगें।
- जगमोहन 'आज़ाद'

No comments:

Post a Comment