हम आभार व्यक्त करना सीख लें तो मन से कई तरह के भार उतर सकते हैं। घर और स्कूल से हमें ऐसे सारे संस्कार मिलते तो हैं लेकिन हम शत-प्रतिशत पालन तो कर नहीं पाते उल्टे बड़े होने पर खिल्ली उड़ाने से भी नहीं चूकते। ईश्वरीय सत्ता को हम सहजता से स्वीकार नहीं पाते लेकिन यह आसानी से मान लेते हैं कि कोई शक्ति है तो सही। बड़ा खतरा टल जाए तो इसी अदृश्य शक्ति को याद करते हैं लेकिन चौबीस घंटे आराम से बीत जाने पर हम उस शक्ति का आभार व्यक्त करना भूल जाते हैं। पांच मिनट की इस प्रार्थना से हमारे अगले चौबीस घंटे आराम से गुजर सकते हैं।
अभी कुछ दोस्तों के साथ एक समारोह में भाग लिया। रात अधिक हो जाने के कारण आयोजकों ने सबके रुकने की व्यवस्था भी फटाफट कर दी। देर तक गप्पे लगाने के बाद सभी दोस्तों ने सोने की तैयारी करते हुए लाइट ऑफ करने के साथ ही कंबल खींचा और एक दूसरे से गुडनाइट कर ली। बाकी दोस्त तो आंखें मूंद चुके थे। कुछ के खर्राटे भी शुरू हो गए थे।गुडनाइट कर चुका एक दोस्त फिर भी जाग रहा था, पलंग पर आंखें बंद किए बैठा था और मन ही मन कु छ बुदबुदा रहा था। पहले मैंने सोचा उससे इस संबंध में पूछ लूं। फिर ध्यान आया कि हमारी बातचीत से बाकी लोगों की नींद में खलल पड़ सकता है, लिहाजा तय किया कि सुबह बात करूं गा। सुबह नाश्ते पर फिर सारे दोस्त एक साथ मिले। मैंने उस दोस्त से पूछा रात में किसे याद कर रहा था।
उसने बताया कि बचपन से यह आदत है कि सोने से पहले बीते 24 घंटों के लिए भगवान के प्रति आभार व्यक्त करता हंू कि आपकी कृपा से आज का दिन मेरे लिए आपका दिया अनमोल उपहार साबित हुआ। इसके साथ ही अपने परिजनों, रिश्तेदारों, और उनके रिश्तेदारों तथा इन सब के चिर परिचितों की बेहतरी के लिए प्रार्थना करने के साथ ही यदि हमारे कोई दुश्मन हैं तो उनके मन में कटुता के बदले करुणा के भाव पैदा करने की कामना करता हूं। चौबीस घंटों के दौरान अंजाने में मेरे किसी कार्य, किसी बात से किसी का दिल दुखा हो तो उसके लिए क्षमा भी मांगता हूं।
जाहिर है कि कुछ दोस्तों ने उसका मजाक उड़ाया तो कुछ ने सवाल किया कि जो हमारे दुश्मन हैं उनक ी बेहतरी की कामना करना तो पागलपन है। उसने कुछ प्रश्नों के जवाब दिए, कुछ मामलों में निरुत्तर हो गया। नाश्ता खत्म होने के साथ ही चर्चा भी खत्म हो गई। साथी लोग सामान समेटने के साथ ही रवानगी की तैयार में लग गए। जिनका ईश्वर नाम की सत्ता में विश्वास नहीं है उनके लिए इस तरह की प्रार्थना पागलपन हो सकती है। जो ईश्वर में विश्वास करते हैं वे भी इसे मेरा धर्म, तेरा धर्म की नजर से देखने के साथ ही अपने तरीके से समीक्षा भी कर सकते हैं।
मुझे अपने उस मित्र की इस आदत में जो अच्छी बात लगी वह है आभार का भाव। ईश्वर किसी ने देखा नहीं, प्रकृति के रूप में मिली सौगात को भी कई लोग ईश्वरीय उपहार मानने में संकोच करते हैं। पर यह भी तो सच है कि प्रकृति की ही तरह घर, परिवार, समाज के लोग बिना किसी स्वार्थ के हमारे काम आते हैं। आपस की चर्चा में हम ऐसे मददगारों को ईश्वर के समान मानने में संकोच नहीं करते। ऐसे मददगारों का ही हम आभार व्यक्त करना याद नहीं रखते तो हर रात सोने से पहले उस सर्वशक्तिमान क ा आस्था के साथ आभार व्यक्त करना तो दूर की बात है। दोस्त से हुई चर्चा के बाद से मैंने तो सोने से पहले का अपना यह नियमित क्रम बना लिया है। बाकी लाभ मिले न मिले दिन भर के तनाव से इस पांच मिनट की प्रार्थना का इतना फायदा तो है कि नींद बड़े सुकून से आती है। जो हमारे काम आएं, हम यदि उनका अहसान नहीं भी उतार पाएं तो आभार तो व्यक्त कर ही सकते हैं, ऐसा करने पर हम छोटे तो नहीं होंगे लेकिन सामने वाले की नजर में बड़े जरूर हो जाएंगे। हममें आभार व्यक्त करने के संस्कार हैं तो फिर प्रकृति और उस अंजान शक्ति के प्रति श्रद्धा और आभार भाव रखने में भी हर्ज नहीं होना चाहिए। कहा भी तो है जब हम किसी के लिए प्रार्थना करते हैं तो ईश्वर उन लोगों पर अपनी कृपा करता है। जब हम सुखी और प्रसन्न हों तो यह कतई न मानें कि यह हमारी प्रार्थना का फल है। यह मानकर चलें कि किसी ने हमारे लिए भी प्रार्थना की है। अपशब्दों में यदि हमें आगबबूला करने की ताकत है तो आभार या प्रार्थना के भाव में मन को निर्मल, भारमुक्त करने का जादू क्यों नहीं हो सकता।
Behad khubsurat hai apki likhavat.apke is lekh ko padh kr mann ko sach mai ek sukoon sa mila,kunki usi samay hmne b ankaein band krke us ParamPita ka dhanyavad vayakt kiya aur aj se ise apne nityejivan ka ek niyamit karam banane ka nishchye kiya hai.apke is lekh mai ek line sach mai hirday saparshi hai,"kisi ka Aabhaar vayakt krne se hm chhote to nhi honge pr samne vale ki najar mai bade jarur ho jaenge "
ReplyDeleteBehad khubsurat hai apki likhavat.apke is lekh ko padh kr mann ko sach mai ek sukoon sa mila,kunki usi samay hmne b ankaein band krke us ParamPita ka dhanyavad vayakt kiya aur aj se ise apne nityejivan ka ek niyamit karam banane ka nishchye kiya hai.apke is lekh mai ek line sach mai hirday saparshi hai,"kisi ka Aabhaar vayakt krne se hm chhote to nhi honge pr samne vale ki najar mai bade jarur ho jaenge "
ReplyDeleteबहुत अच्छी सीख - धन्यवाद
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