18.8.10


ग़ज़ल

हम उनको नादां
समझाने की भूल कर गए.
वो हमारी जीस्ते-तरक्की१ में 
तन के शूल बन गए.
 ये बात वो एक रात 
मयखाने में कबूल कर गए.
तब हमें ये इल्म हुआ 
किसे हम अपना रसूल२ कर गए.
मेरा इरफ़ान३ कहीं सो गया था
औ' वो हमारी किस्मत धूल कर गए.
सब कुछ दे दिया था उनको 
अपनी रश्कों से हमारा मक्तूल४ कर गए.

१- जीवन की प्रगति
२- नबी
३- विवेक
४- कत्ल

प्रबल प्रताप सिंह

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