क्या इसी का नाम आज़ादी है?
देश कर रहा तीव्र विकास,
गरीबों का हो रहा विनाश;
उद्योगपति हैं मालामाल,
आम आदमी हुआ बेहाल;
नेता-पुलिस लूट रहे देश को
बदनाम खाकी-खादी है;
हर तरफ रूदन-बर्बादी है,
क्या इसी का नाम आज़ादी है?
सूचना मांगो गोली मिलती,
न्याय मांगो तो तारीख मिलती;
ग्राम-प्रधान शोषण कर रहा,
भाई-भतीजों का पोषण कर रहा;
राशन-किरासन ब्लैक हो रहा,
गोदामों में अनाज सड़ रहा;
सुरसा के मुंह की तरह तेजी से,
बढ़ रही आबादी है;
हर तरफ रूदन बर्बादी है,
क्या इसी का नाम आज़ादी है?
नक्सली आतंक फैला रहे,
आम जनता को डरा रहे;
नेता जनता को बरगला रहे;
महंगा हुआ जीना भारत में,
महंगी बेटी की शादी है;
हर तरफ रूदन बर्बादी है,
क्या इसी का नाम आज़ादी है?
देश को लूटने की आज़ादी,
कानून तोड़ने की आज़ादी;
कानून बनाने की आज़ादी,
घूस खाने की आज़ादी;
जनता को बाँटने की आज़ादी,
योजना बनाने की आज़ादी;
डंडा लहराने की आज़ादी;
हर तरफ माहौल-ए- आज़ादी,
हर किसी को हके आज़ादी है;
हर तरफ रूदन बर्बादी है,
क्या इसी का नाम आज़ादी है?
सही चिंता ज़ाहिर की है आपने।
ReplyDeleteजय हिन्द!
आपने
ReplyDeleteबहुत उम्दा पोस्ट लगाई है।
लोकहित की बात उठाई है।
स्वतंत्रता दिवस की
हार्दिक बधाई है ॥
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
sachmuch yeh azadi nahin hai......
ReplyDeleteaur sabse bada afsos yeh ki itne saalon baad bhi yehi hal hai.
achhi aur prabhavi lagi apki kavita.