28.8.10

मृत्यु दंड ...(To be hanged till Death)

विराग के छणों में , तुम छेड़ते हो राग क्यों ?
जल रहा है दिल यहाँ , जला रहे हो आग क्यों ?
अपनी ही परछाहियों से , लड़ रहा मै आज क्यों ?
खींझ किसी और की , सह रहा मै आज क्यों ?
सोँच कर विहंग दृश्य , क्यों खड़े है रोम सब ?
किस लिए मै हाथ में , ले रहा कराल अब ?
क्या किसी ने जान कर, है व्यथित किया मुझे ?
या किसी ने भूल कर , ललकार है दिया मुझे ?
छीनने को प्राण किसका , हो रहा व्याकुल हूँ मै ?
आज किसकी मौत का , रच रहा हूँ व्यूह मै ?
कौन है अभागा वो , जो आज मारा जायेगा ?
आज मेरे हाथ से , कौन मुक्ति पायेगा ??
(ईश्वर उसकी आत्मा को शांति दे....)
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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