अखिलेश उपाध्याय
मध्यप्रदेश सरकार कुपोषण को दूर करने की लिए दो अक्टूबर से अटल बाल आरोग्य मिशन प्रारंभ करने जा रही है और इसके पीछे भी नए अफसरों की सोच छिपी है, जबकि इसके पहले पांच बार इस योजना में हर अफसर ने अपने हिसाब से बदलाव किया, लेकिन कुपोषण तो दूर केवल भ्रष्टाचार ही पनपा ? कभी ठेकेदारों को जवाबदारी तो कभी साझा चूल्हा के नाम पर अफसरों ने करोडो के बारे न्यारे किये.प्रदेश में 74 हजार आग्न्वाडियो के माध्यम से कुपोषण समाप्त करने का कार्यक्रम महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा किया जा रहा है. बच्चो का कुपोषण तो दूर नहीं हुआ मगर अफसर जरूर पोषित हो गए है. क्योकि इन्होने हर बार अपने हिसाब से योजना में बदलाव कर भ्रस्टाचार को जन्म दिया. इसके कुछ उदहारण सामने आये है. खासकर पोषण आहार व्यस्था के अंतर्गत वर्ष 2002 में जिला स्तर पर कलेक्टर निविदा आमंत्रित कर दरो का निर्धारण करते थे. ओ पी रावत विभाग के कमिश्नर बने तो वर्ष 2003 में ठेकेदारी व्यवस्था समाप्त कर दी गई.
अधिकृत सूत्रों ने बताया की विभाग ने 30 मई 2003 को अपने एक आदेश में आगनवाडी में पोषण आहार प्रदाय करने की जिम्मेदारी स्वसहायता समूह को सौप दी. जिन समूह के पास स्वयं की पूजी नहीं थी, उन्हें बैंक से ऋण दिलाया गया. इस काम में प्रदेश की दस हजार महिलाओ को अतिरिक्त रोजगार मिला. साथ ही उनकी सक्रियता को देस्खते हुए भंडार क्रय नियम 15 से छूट प्रदान की गई, लेकिन जब विभाग के कमिश्नर एस आर मोहंती बने तो उन्हें यह व्यवस्था रास नहीं आई. उन्होंने आते ही वर्ष 2005 में कैविनेट के माध्यम से स्वसहायता समूह के साथ ही ठेकेदारी व्यवस्था पुनः लागू करवा दी. इस सम्बन्ध में 28 सितम्बर 2005 को जारी निर्देश में समस्त ग्रामीण परियोजनाओं में दो दिवस तथा शहरी क्षेत्र पूरे सप्ताह ठेकेदारों से पोषण आहार सामग्री प्रदाय करने का निर्णय लिया गया,
लेकिन बाद में पूरे सप्ताह ठेकेदारों को काम दे दिया गया. सूत्रों के अनुसार वर्ष 2007 में वित्त विभाग की आपत्ति के बावजूद एक आश्चर्यजनक निर्णय लेकर सरकार ने फिर पोषण आहार का कार्य आंगनवाडी स्तर पर मात्र सहयोगिनी समिति तथा आंगनवाडी कार्यकर्त्ता का संयुक्त बैंक खाता खोलकर उसमे राशी जमा करवा योजना प्रारंभ की लेकिन समितियों और कार्यकर्ताओं की मिलीभगत के चलते पोषण आहार प्रदाय नही किया गया तथा अधिकांश राशी स्वयं उपयोग कर ली गई. विस्धान्सभा में जब यह मामला नेता प्रतिपक्ष द्वारा उठाया गया तो तत्कालीन मंत्री कुसुम महदेले ने जिलो में हो रहे भ्रस्टाचार को सही मानते हुए घोषणा कर तत्काल व्यवस्था को समाप्त कर दिया. व्यवस्था समाप्त करने से आज तक किस जिले में कितना भ्रस्टाचार हुआ इसकी जाँच नही करी गई.
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