आदरणीय पाठक गण, दिमाग कुछ उलझन में है इसी लिए पिछले कुछ दिनों से आपके बिच किसी भी छोटे विचार के साथ उपस्थित नहीं हो पाया,तो आज अचानक ही पिता जी की एक बात याद आ गयी वो हमेशा कहते है की किसी के भी जब मन के अन्दर की उलझन या कोई गुथ्ही अकेले न सुलझे दूसरों और विशिष्ट जनों के सामने रखने पर सुलझ जाती है दरशल बात कुछ और नहीं कई वर्षों से चल और चलाये जा रहे विवाद तथा पिछले कुछ दिनों से चर्चा के साथ इंतजार में रहा अयोध्या पर आने वाला फैश्ला जो अभी भी इंतजार ही बना हुआ है और पता नहीं कब तक इंतजार बना रहेगा ही है! भगवान श्री राम चन्द्र की इस जन्म अस्थली अयोध्या जो इनके जन्म से ही ऐतिहासिक बनी पर आने वाले फैश्ले को बार-बार टालने की अपील की गई और शायद आगे भी की जाय, वो भी ये कह कर की यह मामला बात-चीत से ही हल हो सकता है,तथा अंततोगत्वा जब से सुप्रीम कोर्ट से फैश्ले को कुछ दिनों के लिये टलवाने में सफलता प्राप्त किया गया तभी से दिमाग एक उलझन में फंसा हुआ है और वो ये है की आखिर क्यों-जहाँ देश के एक विशाल जन समूह अरे मुझे तो लगता है की जनता के साथ साथ जानवर और पंझी को भी इस पर आने वाले फैश्ले का वेसह्ब्री के साथ वर्षों से इंतजार है यहाँ तक की अयोध्या खुद इंतजार में पागल हुए जा रहा है! अरे भगवान का फैश्ला तो सर्वोपरी होता ही है पर देश में एक प्रावधान के मुताबिक न्यायालय को भी यह दर्जा प्राप्त है जैसे इस धरती पर उपलब्ध सभी चीजे वो चाहें इन्शान हो या फिर पशु,पक्छी,पेंड,पौधे या फिर मौषम सभी को भगवान का फैश्ला सम्मान के साथ स्वीकारना पड़ता है उसी प्रकार देश के हर नागरिक को भगवान के फश्ले के बाद न्यायालय के फैश्ले को भी हंस के स्वीकारना पड़ता है और इन्सान स्वीकारता भी है! यानी सभी मुद्दों को यंहा सुलझा कर न्याय प्राप्त होता है तो आज जब सबकी निगाहे वो चाहे किसी भी धर्म व जाती की हों उसी दर पर विश्वास के साथ टिकी हुई है जहाँ से निष्पछ फैश्ला मिलता है जिसका फैश्ला देश में सर्वोपरी है और सबको मनना ही पड़ता है! तो ऐसे में आखिर सिर्फ कुछ चंद ब्यक्तित्व क्यों फैश्ले को टालने में लगे हुए है,और फिर चलो फैश्ले को टल्वाना तो समझ से परे है ही पर यह कहना की अयोध्या मसले का हल केवल बात-चीत है यह तो बिलकुल ही समझ से परे है आखिर ऐसा क्यों, लगता है की अब या तो इन लोंगो को न्यायालय पे भरोषा नहीं,या फिर अगर भरोषा है तो आने वाला फैश्ला जो मुद्दे का अशली हल है चाहते ही नहीं!अरे जिस मुद्दे को सुलझाते-सुलझाते न जाने कितने वर्ष बीत गए,न जाने कितने लोग इस मुद्दे को सुलझाने हेतु होने वाले अनेको-अनेको आंदोलनों में अपने जानों को गवा बैठे,अपने हंश्ते खिलते बच्चों और परिवार को छोड़ गए, अनगिनत लोग भगवान श्री राम के इस नगरी के फैश्ले के इंतजार में स्वंय इंतजार करते करते उनके पास चले गए,और अभी तक कोई हल नहीं हो पाया,कब-तक!और फिर अगर बात चीत इसका हल है तो यह बिलकुल समझ नहीं आता की क्या बात-चीत न्यायालय से बड़ा है! और फिर जहाँ फैश्ले को टलवाने हेतु एक और दलील दी गयी है की इससे साम्प्रदायिक दंगे भड़क सकते हैं तो क्या इसके पहले हुए आंदोलनों में दंगे नहीं हुए या फिर मुर्ख जनता ने अपने जान नहीं गवाए और अगर ऐसा हुआ है तो फिर इसकी क्या गारंटी है की न्यायालय के फश्ले के बाद दंगे भड़क सकते है और बात-चीत के बाद होने वाले फैश्ले सबको मान्य होंगे, यह कैसे कहा जा सकता है!आखिर इस मामले को इतना लम्बा क्यों खीचा जा रहा है क्यों इसके आने वाले फैश्ले में अड़ंगे लगाये जा रहे हैं आज बात-चीत,बात-चीत क्यों चिलाया जा रहा है पिछले न जाने कितने दशको से बात-चीत करके पेट नहीं भरा क्या!आज पिछले कई दिनों से ये बात-चीत सामने आकर खड़ा क्यों हो गया है, अरे अगर ये इतना कारगर है तो अब तक क्यों नहीं वहां कुछ निर्माण हुआ है और जब अब तक नहीं हुआ तो इसकी क्या गारंटी है की आगे की बात-चीत ऐसी होगी की वंहा कुछ निर्माण होने की स्थिति बन जाएगी,और फिर आखिर ये बात-चीत होगी किसके बीच तथा बात-चीत करने वाले इसके बाद होने वाले फैश्ले पर अडिग भी रहेंगे या नहीं! फैश्ला कुछ भी हो जहाँ एक विशाल जन समूह इसका इंतजार और मानने के लिए तैयार बैठा है तथा अंततोगत्वा मानना ही पड़े जैसा प्रावधान अपने देश में है तो फिर इस मुद्दे पर आने वाले फैश्ले को क्यों कुछ चंद ब्यक्तित्व न्यायालय से बाहर करना चाहते है!आखिर ऐसा क्यों…………………………………..
यही कुछ चंद बाते दिमाग में उलझन स्वरूप परेशान किये जा रही है सो आपके सामने रखने की कोशिश किया!
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