5.9.10

तुम पहले क्यों नही मिले?

दिल मेरा कभी ये सोचता है कि
तुम पहले क्यों नही मिले?
मेरे अंदर जो कशिश थी, प्रेम के फूल थे
वो तेरे दिल में पहले क्यूँ नहीं खिले?

रेगिस्तान को भी हरा भरा कर दे,
ऐसी अल्हड़ मस्तानी बयार थे हम.
पतझड़ में भी मुस्कुराने वाले,
ऐसे जवांदिल सदाबहार थे हम.

पर तुम्हें तो बस काम की पड़ी थी,
वही तो तुम्हारा सारा जहाँ था.
हमें एक पल देख भर लेते,
पर तुम्हारे पास वक्त ही कहाँ था.

पर तुम पहले क्यूँ नही मिले,
इन सवालों में हम वक्त क्यूँ गवां दें?
अफ़सोस में रोने से अच्छा है कि
जो पल मिले हैं उनसे जिंदगी सज़ा लें.

पहले खुशियाँ मिली क्यों नहीं
इस दुःख इस गम को पी लें,
मिल गयी हैं जो ख़ुशी की
उन घड़ियों को पूरी तरह जी लें.

तुम पहले नही मिले
रोएँ नही इस बात पर,
तुम मिल गये हो मुझे
खुश हो लें इस मुलाकात पर.

                                --- नवाज़

5 comments:

  1. माफ़ करें गलती हो गई जो पहले नहीं मिल सके ।
    मिलकर अच्छा लगा ।

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  2. तुम पहले नही मिले
    रोएँ नही इस बात पर,
    तुम मिल गये हो मुझे
    खुश हो लें इस मुलाकात पर.
    वाह बहुत सुन्दर। बधाई।

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  3. very nice poetry. you have told your feeling in a simple way. this is outstanding.

    I like it. good job done.

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  4. गज़ब गज़ब गज़ब्……………कमाल कर दिया कितने सरल शब्दों मे सच कह दिया………………………बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।

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  5. Really very good poetry....
    great emotions & feelings in very simple words...

    A beautiful poem by Nwaz Acidwalla

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