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विवेक मिश्र
वाह रे !शीला जी मान गए
दिल्ली वाले सब जान गए
अब क्या बहाना मारेंगी
कलमाड़ी का कहा और मानेंगी
अब तो दुनिया सारी जानेगी
मीडिया भी है खूब डट गया
मजदूर बेचारा खट गया
वेल्थ ही वेल्थ बट गया
बचा है सब कॉमन-कॉमन
अब कौन थामेगा तुम्हारा दामन
वाह रे !शीला जी मान गए
दिल्ली वाले सब जान गए
अब दिल्ली भी है सोचती
बेकार में ही क्यूँ मै उजड़ गयी
चारो और ठसाठस भर गयी
टम्प्रेरी व्यवस्था में बस जायेगी
वर्ल्ड क्लास मेट्रो भी शर्माएगी
यात्री उठेंगे या सामान उठेगा
गेम्स में यह सवाल बनेगा
और किस-किस को खिलाएँगी
आखिर मंहगाई कब घटाएंगी
अन्न-पानी को जब सब तरसेंगे
तब मणिशंकर जैसे तुम पर बरसेंगे
वाह रे !शीला जी मान गए
दिल्ली वाले सब जान ग
कलमाडी जी कुछ ध्यान धरो
राष्ट्र का पैसा यूँ न बर्बाद करो
उधर गिल जी की अलग राग सुनो
"अफसर नहीं खिलाडी चुनो"
आप तो गिल साहब केवल दाना चुनो
आप ने ही तो कहा है
"भगवान् खेल करवाएगा"
फिर ज़रा सोचिये राष्ट्र क्यूँ शर्मायेगा
मनमोहन जी आप क्यूँ शांत हैं ?
आपकी समितियों के तो खूनी दांत हैं
अब तक इस "मनमोहन कॉमनवेल्थ"में
खर्च हुआ है बेवजह का फाईनेन्स
देख सके तो देख ले
नहीं तो लगा ले लेंस
रकम आपको भी बड़ी दिखेगी
वित्त में आपकी समझ बढ़ेगी
हे! मनमोहन, शीला और कलमाडी जी
कुछ तो दया करो इस जनता पर
है सावन होगा कॉमन
जनता की हेल्थ पर भी ध्यान दो
सबको दिया हम लोगो को भी कुछ वेल्थ दान दो
फिर हम कहेंगे
वाह रे ! जी मान गए.....
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