21.9.10

Phool jo tumne diye (rj nikhil)

वो फूल जो तुमने दिए थे
किसी किताब में कही , अभी भी रखे होंगे..
वो जेसे पुरानी कोई कहानी आज भी ताज़ा है हमारे ज़ेहन में
में अब उस किताब को नहीं खोलता हु
डरता हूँ , काँपता हूँ
तुम्हारी हैण्ड राइटिंग में लिखा तुम्हारा पहला लव लैटर
तुम्हारे लिखे शब्द जेसे तुम्हारा ही चेहरा बनाते है
में हर शब्द में तुम्हारी मासूमियत धुन्धता हूँ !
आज बहुत दिनों बाद यहाँ बारिश हुई ;

फिर कोई बदल आज रोया होगा , तुम्हे याद करके
वो आंसू गिरे होंगे उसी पोधे पे...जो फूल तुमने मुझे दिए थे

निखिल

im.nikhhil@gmail.com
09648936083

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