2.10.10

हे राम!

 धर्म का जन्म चाहे वो कोई भी धर्म क्यों न हो लोगों को उनके कर्तव्यों का ज्ञान करने के लिए हुआ है.लेकिन यथार्थ में ऐसा होता नहीं.लगभग सारे धर्मों के अनुयायी समय-२ पर अपनी राह से भटकते रहे हैं जिससे जन्म होता है टकराव का.बच्चा जब पहली साँस लेता है तब उसे उसके धर्म के बारे में पता नहीं होता.हम उसके मन में भेद के बीज बोते हैं आठों पहर यह बता-बताकर कि तुम इस संप्रदाय से आते हो और वह उस संप्रदाय से.
                            इतिहास साक्षी है कि भारत में प्राचीन काल से ही भारी संख्या में विदेशियों का आगमन होता रहा है.भिन्न-२ विचारधाराओं और विभिन्न विश्वासों को धारण करनेवाले लोग यहाँ आते रहे हैं और विशाल भारतीय समाज में समाहित होते रहे हैं.कौन बता सकता है प्राचीन काल में भारत आनेवाले हूण,शक,कुषाण और यूनानियों का पता-ठिकाना?हमने अपनी बाँहों को,अपने मन-मस्तिष्क को विस्तार दिया और उन्हें अपने भीतर समाहित करते गए.पहली बार भारतीय समाज का पाला नई तरह के लोगों से तब पड़ा जब भारत में इस्लामी हमलावरों का आगमन हुआ,एक हाथ में कुरान और दूसरे में तलवार लिए.हमारे लिए यह अब तक का पहला ऐसा पंथ था जो मिलने नहीं मिलाने की भाषा बोल रहा था वो भी ताकत के बल पर.लेकिन यह धींगामुश्ती ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी और भारत के प्रभाव में आकर वे भी प्रेम की भाषा बोलने लगे और विकास हुआ सूफी धर्म का.फ़िर तो गंगा-जमुनी संस्कृति पूरे देश में हिलोरे लेने लगी.ढोलक के साथ तबला संगत करने लगा और वीणा के साथ शहनाई.कई मुसलमानों ने खड़ी बोली और अवधि में कवितायेँ लिखीं और क्या खूब लिखी.राम और कृष्ण सिर्फ हिन्दुओं के नहीं रह गए बल्कि उनसे कहीं ज्यादा वे रहीम और रसखान के हो गए.कई हिन्दुओं ने भी सूफियों की शागिर्दी कबूल कर ली.इस्लाम भारतीय संस्कृति में पच तो नहीं पाया लेकिन उसका भारतीयकरण जरुर हो गया.१८५७ का विद्रोह वास्तव में न तो हिन्दुओं का विद्रोह था और न ही मुसलमानों का.तब गंगा और जमुना दोनों में एकसाथ उबाल आया था.इस विद्रोह ने अंग्रेजों को जड़ से हिला दिया.अब वे इस बात को समझ चुके थे कि जब तक हिन्दू और मुसलमान एक हैं भारत को गुलाम बनाए रखना संभव नहीं होगा.लन्दन में दोनों सम्प्रदायों में फुट  डालने की साजिश रची जाने लगी.पहले कुछ पढ़े-लिखे मुसलमान उनके बहकावे में आए फ़िर कुछ पढ़े-लिखे हिन्दू.फ़िर तो धीरे-धीरे ऐसी स्थितियां उत्पन्न कर दी गईं कि अनपढ़ ग्रामीण भी साम्प्रदायिकता के रंग में रंगने लगा जिसकी अंतिम परिणति थी देश का विभाजन.विभाजन शांति की अंतिम और पहली शर्त थी जिसे हमने न चाहते हुए भी स्वीकार किया.आजादी की बेला में आँखों में आंसू भी थे तो अनगिनत सपने भी थे.उम्मीद थी कि अब देश में शांति होगी और शांतिपूर्ण माहौल में देश का काफी तेज गति से चतुर्मुखी विकास होगा.लेकिन सपने तो सपने होते हैं उन्हें हकीकत का रूप कौन दे?यहाँ तो हर किसी को तो सिर्फ सत्ता चाहिए थी .भारतीय लोकतंत्र में निहित कमजोरियां भी जल्दी ही दृष्टिगोचर होने लगीं.व्यक्तिगत हितों की बातें पृष्ठभूमि में चली गईं और प्रत्येक स्थान पर जाति और संप्रदाय वोट बैंक के रूप में दबाव समूह बनकर उभरने लगे.सियासतदानों ने सभी महापुरुषों को जातियों में बाँट डाला.यहाँ तक कि उनके इस कुत्सित खेल से राम भी अपने-आपको नहीं बचा पे.अब चुनाव राम के नाम पर लड़े जाने लगे.ध्रुवीकरण सिर्फ सांप्रदायिक आधार पर ही नहीं हुआ,जातीय आधार पर भी हुआ.देश में दंगों की बाढ़ आ गई.मुम्बई से गुजरात तक भारत माँ का आँचल बार-बार लहू-लुहान होता रहा.लेकिन लगता है कि अब राम के नाम पर होनेवाली राजनीति के दिन पूरे हो गए हैं.यह बड़ी ही ख़ुशी की बात है कि इलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ का फैसला आ गया है और उसमें सबकी जीत हुई है.अब वहां मंदिर भी बनेगा और मस्जिद भी बनेगी.लेकिन कुछ लोगों ने निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है इस तरह की प्रवृत्ति सहिष्णु भारतीय समाज में अपवाद ही मानी जानी चाहिए.एक साथ परस्पर विरोधी पक्ष अपना अस्तित्व बनाए रखें यही तो सदियों से भारतीय आदर्श रहा है.लेकिन अगर जनता को बाँटने की कोशिशें सफल हो जा रहीं हैं तो दोषी कहीं-न-कहीं जनता भी है.उसे सत्तालोलुप राजनीतिज्ञों की असली मंशा को समझना होगा.उन्हें समझना होगा कि जाति और धर्म की बातें ये लोग सिर्फ कुर्सी पाने के लिए करते हैं और फ़िर अपनी जेबें भरते हैं.इस तरह तो भारत विकसित देश बनने से रहा.हमारे नेता दरअसल अंग्रेजों के भारतीय संस्करण हैं और फूट डालो और शासन करो इनका सूत्र वाक्य है.वास्तव में मुद्दा देश का विकास होना चाहिए,भ्रष्टाचार का खात्मा होना चाहिए,बेरोजगारी और जनसंख्या-नियंत्रण होना चाहिए,शिक्षा और स्वास्थ्य होना चाहिए लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है की आज भी चुनाव जाति और धर्म के नाम पर लड़े जाते हैं और इसलिए सियासतदानों को गन्दी राजनीति करने का मौका मिल जाता है,साथ ही गलत लोगों को राजनीति में प्रवेश भी.

2 comments:

  1. पहले प्रेम से कहते थे
    हम हिन्दू है, हम मुसलमान है,

    हम ही गंगा-जमुनी संस्कृति क़ी पहचान है,

    और अब डर डर कर कहते हैं

    हम हिन्दू है, हम मुसलमान है

    हम हैं तो हिंदुस्तान हैं

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  2. देश के हालात देखकर दुख होता है, पहले अंग्रेजों के गुलाम थे और अब खुद के गुलाम हैं। जब तक पैसों के पीछे भागना नहीं छोड़ेंगे तब तक बदलाव मुश्किल है।

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