25.10.10
करवा चौथ पर मियां बीबी के रिश्ते में तांक झांक
बात बहुत पुरानी है। पति के मना करने के बावजूद पत्नी सत्संग में चली गई। वापिस आई तो पति ने नाराजगी दिखाई। बात इतनी बढ़ी कि बोलना तो दूर दोनों ने मरने तक एक दूसरे की सूरत नहीं देखी। वह भी एक घर में रहते हुए। पति ने बाहर वाले कमरे में डेरा जमा लिया। दोनों ऐसे विरागी हुए कि गठजोड़ा फिर बंधा ही नहीं। एक पति ऐसा था कि पत्नी के अचानक हुई मौत के बाद उसके प्रति अनुराग ने उसके दिमागी संतुलन को बिगाड़ दिया। बच्चे परेशान हुए। दोनों बात एक दम सच्ची। मियां बीबी का रिश्ता है ही कुछ ऐसा। करवा चौथ आ गई, इसी बहाने मियां-बीबी लिखने का बहाना बन गए। एक अनूठा रिश्ता जो कभी कभी रिसता भी रहता है इसके बावजूद सब रिश्तों में यह नाजुक,गरिमामय,आभायुक्त और मर्यादित के साथ साथ बेशर्मी से ओत प्रोत होता है। दोनों में लाज,शर्म का आवरण है भी और जब नहीं होता तो बिलकुल भी नहीं होता। फिर भी पाक। दोनों ही स्थिति में प्रगाढ़ता होती है। जब से रिश्तों का महत्व समझ आने लगा तब से आज तक जिन घरों तक अप्रोच रही ,उनमे एक दम्पती ऐसे मिले जिनकी आपसी समझ का कोई मुकाबला नहीं। दो जवान बेटे हैं फिर भी इस प्रकार रहतेहैं जैसे मियां बीबी नहीं प्रेमी प्रेमिका हो। मजाल है जो कभी किसी के चेहरे पर खीज दिखाई दी हो। बेशक यह बात साधारण सी है लेकिन है बड़ी व्यावहारिक। पत्नी अगर अपने पति की प्रेमिका बनकर रहे तो घर आनंद प्रदान करता है। रिश्ते हर समय गर्माहट लिए रहते हैं। तब पति को भी प्रेमी होना होगा। असली गड़बड़ वहां होती है जहाँ पत्नी केवल और केवल गृहणी बनी रहना चाहती है। तब इस रिश्ते में रिसाव कुछ अधिक होने लगता है। रिश्ते बेशक टूटने की कगार पर ना पहुंचे मगर आनंद का अभाव जरुर जीवन में आ जाता है। पति पत्नी के प्रेमी -प्रेमिका होने का यह मतलब नहीं कि वे हाथों में हाथ डाले पार्कों में गीत गाते हुए घूमे। प्रेम की भी अपनी मर्यादा होती है। या यूँ कहें कि मर्यादित प्रेम ही असली प्रेम कहलाने का हक़ रखता है तो गलत नहीं होगा। एक बार क्या अनेक बार देखा होगा। सत्संग,कथा में किसी प्रसंग के समय महिलाएं किसी के कहे बिना ही नृत्य करना शुरू कर देती हैं। भाव विभोर हो ऐसे नाचती हैं कि उनको इस बात से भी कोई मतलब नहीं रहता कि यहाँ कितने नर नारी हैं। मगर ऐसी ही किसी महिला से घर में उसका पति दो ठुमके लगाने की फरमाईस कर दे या घरेलू उत्सव में नाचने के लिए कह दे तो क्या मजाल कि महिला अपनी कला दिखाने को तैयार हो जाये। संभव है पति को कुछ सुन कर अपने शब्द वापिस लेने पड़ें। बहुत मुश्किल होता है भई,अपनों के आनंद के लिए नाचना। कितना खटती है गृहणी। देर रात तक। दोनों एक साथ सोयेंगें। पति देर तक सोता रहे तो चलेगा, पत्नी को उठना ही पड़ेगा ,पौ फटने से पहले। कोई कानून नहीं है। ये तो मर्यादा है,कायदा है,संस्कार है। दो,चार ऐसी भी होगीं जो नहीं भी उठती। फिर भी घर चलते हैं। चलते रहेगें। मतलब ये कि ये सम्बन्ध वीणा की तारों की तरह है। अधिक कसोगे तो टूट जाते हैं और ढीला छोड़ दिया तो उनमे स्वर नहीं निकलते। इसलिए करवा चौथ भी तभी सार्थक होगी जब दोनों के दिलों में एक दूसरे के लिए अनुराग और विराग दोनों होंगे। ऐसा न हो कि ये कहना पड़े--" करवा चौथ का रखा व्रत, कई सौ रूपये कर दिए खर्च,श्रृंगार में उलझी रही, घर से भूखा चला गया मर्द।" शारदा कृष्ण की लाइन हैं--जेठ दुपहरी सा जीवन ये, तुम होते तो सावन होता। इन ठिठुरती सी रातों में ,थोडा बहुत जलावन होता।
ekdam satik lekhan. is aham rishte ko najo se sambhalna behad jaroori hai .
ReplyDeletenarad muni thhahre bramchari,karvachoth pe khoob vichari;pade n in ragado me app;kahi pad jayen aapko bhari.
ReplyDeletebahut sundar badhai veenaji
ReplyDeleteगुण-अवगुण हर इंसान में पाए जाते हैं। भले ही कोई इंसान कितना भी अच्छा क्यों न हो उसमें भी बुराई हो सकती है। इसलिए जीवनसाथी की कमियों की बजाए अच्छाइयों पर ध्यान दें. प्रशंसा शब्द भले ही छोटा हो परंतु आप जिसकी तारीफ करते हैं, उससे एक ओर उसकी कार्यकुशलता बढ़ती है। वहीं संबंधों में मधुरता भी आती है। इसलिए अच्छा कार्य करने पर प्रशंसा करने में कभी भी कंजूसी न करें.
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