22.10.10

डीएफओ बना सरकार की आंख का तारा!

देहरादून। उत्तराखण्ड में सरकार कुछ अध्किारियों पर इतनी उदार दिखी कि उसने शासन की सहमति को भी रद्दी की टोकरी में डालकर बर्खास्तगी की दहलीज पर खडे एक डीएपफओ को गम्भीर अनियमितताओं जैसे सैकडों पेड काटने व सरकारी पैसे से सड़क अपने पफार्म हाउस तक ले जाने का दोषी पाये जाने के बावजूद दीर्घ दण्ड के रूप में सिपर्फ एक प्रतिकूल प्रविष्टि एवं एक वार्षिक वेतन वृ(ि एक वर्ष तक रोकते हुए प्रकरण को समाप्त किये जाने का आदेश पारित कर दिया। हैरानी वाली बात यह है कि जिस दिन वन मंत्राी ने डीएपफओ को बचाने के लिए यह आदेश दिये उसी दिन प्रदेश के मुख्यमंत्राी से भी इसकी अनुमति ले ली गई। सवाल उठ रहा है कि प्रमुख सचिव एवं आयुक्त वन एवं साम्य विकास उत्तराखण्ड ने तो डीएपफओ के आरोप को गम्भीर अनियमितताओं हेतु दीधर्् दण्ड का भोगी माना जिसमें सेवा से हटाना और पदच्युति शामिल बताया था लेकिन डीएपफओ की नौकरी किसके इशारे पर बचा दी गई यह एक रहस्य बनकर रह गया है।गौरतलब है कि टिहरी में ग्राम गाजणा के भंगल्याणियों नामें तोक में अवैध् वृक्ष पातन का मामला 2008 में कापफी गर्माया आरोप लगे कि टिहरी में वन विभाग में तैनात रहे डीएपफओ एच।के. सिंह ने अपनी पत्नी के पफार्म हाउस तक सड़क पहुंचाने के लिए सैकडों हरे-भरे पेड कटवा डाले और सरकारी पैसे से बनाई गई सड़क को अपने पफार्म हाउस तक ले जाने का खेल खेला। यह मामला जब उपफान पर आया तो मामले की उच्च स्तरीय जांच शुरू कराई गई जिसके चलते प्रमुख वन संरक्षक ने टिहरी वन प्रभाग मंे काटे गये पेडों के क्रम में प्रथम दृष्ट्या दोषी पाये गये अधिकारियों एच.के. सिंह को वानिकी प्रशिक्षण अकादमी हल्द्वानी से आर.एस. कहेडा सहायक वन संरक्षक को मुख्य वन संरक्षक, कुमांऊ नैनीताल के कार्यालय से, बृजकुमार श्रीवास्तव वन क्षेत्राध्किारी को मुख्य वन संरक्षक कुमांऊ नैनीताल के कार्यालय से सम्ब( किया था। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार 14 नवम्बर 2008 को इस स्थल का मौकामुआना अपर मुख्य सचिव एपफआरडीसी ने किया था जिसमें उन्होंने अंकित किया कि इस घटना से सम्बन्ध्ति मौके पर स्थानीय व्यक्तियों एवं कुछ बाहरी व्यक्तियों की नीजि भूमि स्थित है। देखने में यह विदित होता है कि इस भूमि तक कच्ची एप्रोच रोड पहुंचाने हेतु वहां स्थित पुराने पैदल मार्ग को चौडा करने के लिए विस्तृत रूप से भूमि कटान किया गया है यह कटान निजी नाप भूमि, राजस्व विभाग के अन्तर्गत बेनाप भूमि एवं वनभूमि पर किया जाना प्रथम दृष्टिया विदित होता है। निजी भूमि के अतिरिक्त बिना अनुमति अन्य भूमि पर कटान किया जाना पूर्णतः अनियमित है। इस भू-कटान के दौरान तथा वहां स्थित अन्य स्थानों पर पेडों को भी बिना अनुमति के भारी मात्रा में काटा गया है और नीचे गध्ेरे में पफेंक दिया गया है इस प्रकार बिना अनुमति अनुचित तरीके से निजी भूमि, राजस्व विभाग के अन्तर्गत आ रही बेनाप भूमि एवं वन विभाग की भूमि पर इन पेडों का कटान किया जाना प्रथम दृष्ट्या विदित होता है। जो अनिमित है इन पेडों की संख्या 800 से अधिक है। आख्या में अंकित है कि एचके सिंह की पत्नी अनिता सिंह द्वारा गाजणा में भू-क्रय किया गया है जो भू-अभिलेखा में दर्ज है इस प्रकार से इन्हें उपरोक्त अवैध् पेड कटान एवं अवैध् एप्रोच मार्ग निर्माण से स्पष्ट रूप से लाभ पहुंचाता है। आख्या में अवैध पेड कटान एवं अवैध् मार्ग निर्माण निर्माण लम्बे समय से होना अंकित है जो कि विस्तृत स्तर पर हुआ था जिसका सीध लाभ एच.के. सिंह डीएपफओ को, अपनी पत्नी जो गाजणा में भू-स्वामिनी है के माध्यम से होता है। आख्या में यह भी कहा गया है कि इस बात में कोई संदेह नहीं प्रतीत होता कि कम से कम पफील्ड स्तर से जुडे अध्किारियों को इन अवैध् कार्यों की जानकारी रही होगी। टिहरी जिलाध्किारी ने शासन को जो अपनी रिपोर्ट भेजी उसमें कहा गया है कि वृक्ष पातनकर्ताओं द्वारा अवैध् रूप से नाप भूमि में 780 वृक्ष, उत्तराखण्ड सरकार की भूमि से 69 वृक्ष व मिलानी वन भूमि से 221 कुल 1070 वृक्षों का पातन किया गया है तथा 350 मीटर के स्थान पर 1005 मी0 अवैध् सड़क खेदने के बावजूद वन विभाग के अध्किारियों द्वारा सीध्े-सीध्े अभियुक्तों को बचाने की कोशिश की गई है। जिलाधिकारी ने पत्रा में कहा कि उक्त अनियमितता के लिए वन विभाग के अध्किारी एच.के.सिंह द्वारा वृक्ष पातन स्थल पर अपनी पत्नी के नाम से भूमि क्रय की गई है अतः अपने अध्किारी को बचाने के लिए वन बीट अध्किारी, वन क्षेत्राध्किारी, उप वन क्षेत्राध्किारी तथा स्वयं प्रभागीय वनाध्किारी एच.के. सिंह प्रथम दृष्ट्या दोषी हैं। अवैध् रूप से सड़क का निर्माण एच.के.सिंह की पत्नी के नाम क्रय की भूमि तक किया गया है। चर्चा यह भी है कि यह सड़क सम्भवतः विधयक निध् िसे बनवाई गई थी। 18 दिसम्बर 2009 को शहरी विकास वन एवं पर्यावरण विभाग उत्तराखण्ड शासन के सचिव अनुप वधवन ने अपनी आख्या देते हुए लिखा कि एच.केसिंह उपरोक्त गंभीर अनियमितताओं हेतु दीर्घ दण्ड के भोगी हैं जिनमें सेवा से हटाना और पदृच्युति शामिल है। दीर्घ दण्ड के विकल्प पत्रा पर अंकित हैं कठोरतम दण्ड पर भी विचार किया जा सकता है। कृ0 दण्ड एवं उसके पफलस्वरूप निलंबन, निलंबन भत्ता, वेतन के सम्बन्ध् में निर्णय हेतु मुख्यमंत्राी के निर्देश प्राप्त करना चाहे। सबसे बडी बात यह है कि सचिव की इस संतुति पर उसी दिन प्रमुख सचिव एवं आयुक्त वन एवं साम्य विकास उत्तराखण्ड शासन सुभाष कुमार ने भी अपनी संतुति दे दी। उध्र प्रमुख सचिव की संतुति के तीन दिन बाद वन पर्यावरण मंत्राी रहे बिशन सिंह चुपफाल के पास आख्या प्रस्तुत की गई कि जिसमें कहा गया कि जांच अध्किारी द्वारा प्रस्तुत जांच रिपोर्ट के आधर पर आरोप संख्या-1 में तीन मीटर चौडी सडक के विरू( सात मीटर सड़क का चौडीकरण करना एवं पर्यावेक्षण दायित्वों का निर्वहन न करना, आरोप संख्या-2 में मात्रा पर्यवेक्षण दायित्व का निर्वहन करना तथा आरोप संख्या-3 में सड़क निर्माण कार्य में कम घनत्व दिखाकर एन.पी.वी. की ध्नराशि 5,950.00 कम जमा कराने का दोषी पाया गया। इसलिए एच.के.सिंह को दीर्घ दण्ड के रूप में एक प्रतिकूल प्रविष्टि एवं एक वार्षिक वेतन वृ(ि एक वर्ष तक रोकते हुए प्रकरण को समाप्त किया जाना है। इस आख्या पर वन मंत्राी ने 22 दिसम्बर 2009 को प्रकरण को समाप्त करने के लिए अपनी संस्तुति दे दी। हैरतअंगेज बात यह है कि उसी दिन मुख्यमंत्राी से भी प्रकरण को समाप्त कराने की अनुमति ले ली गई। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जिस अध्किारी को बर्खास्त तक करने की संस्तुति शासन के आला अध्किारियों ने की उस अध्किारी को बचाने के लिए आखिरकार किसने खेल खेला यह अपने आप में एक बडा सवाल खडा हो रखा है और इस घटना से तो यह सापफ हो गया है कि इतना बडा अपराध करने वाले अध्किारी को भी अगर सरकार बचाने के लिए आगे आ रही है तो यह अपने आप में इस राज्य के लिए तो एक चिंता का विषय हो ही सकता
है

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