अखिलेश उपाध्याय
रासायनिक खादों के तेजी से बढ़ते दामो ने किसानो की परेशानी बढ़ा दी है. कीमते आसमान पर पहुच रही है, उस पर रासायनिक खाद की किल्लत से किसानो की स्थिति बड़ी विकट हो गई है. डी ऐ पी और यूरिया जैसी रासायनिक खादों की अत्यधिक कमी से किसानी को हर साल जूझना पड़ता है.
मौसम की बेरुखी के चलते किसान लगातार नुक्सान उठा रहे है. यही वजह है की कई वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी कृषि करने वाले परंपरागत लोग भी अब खेती किसानी छोड़कर दूसरे व्यापार में जुट गए है. वर्षों से खेती किसानी करने वाले रामनाथ पटेल ने बताया की खेती में उन्हें लगातार घाटा हो रहा था. महगी खाद और महगे बीज होने की वजह से खेती की लागत दिनों दिन बढ़ रही है. इस पर बाजार में उपज का सही मूल्य नहीं मिल पा रहा था. अगर मौसम ने साथ दिया तो ठीक वर्ना सारी फसल चौपट हो जाती थी. उनके सामने परिवार पालने का संकट खड़ा हो गया था. ऐसे में खेती किसानी को छोड़कर उनके सामने दूसरा धंधा करने के आलावा कोई और चारा नहीं रह गया था. कमोबेश ऎसी ही हालत दूसरे लघु और सीमान्त किसानो की भी है.
फिर क्या है विकल्प ?
रासायनिक खादों की तेजी से बढती कीमते किसानो के लिए परेशानी का सबब बन गई है ऐसे में जैविक खाद का विकल्प किसानो को राहत दे सकता है. किसान यदि समस्या का समाधान चाहते है तो वह जैविक खाद पर आधारित खेती कर सकते है. इससे खेती की लागत कम होने के साथ डी ऐ पी एवं यूरिया खाद पर निर्भरता कम हो जायेगी. जैविक खेती के प्रति जागरूक किसान गणेश सिंह का कहना है की फसलो की बोआई के समय किसानो को काम छोड़कर खाद के लिए भटकना पड़ सकता है. रासायनिक खाद के लगातार उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति भी कम हो जाती है. इसे रोकने के लिए जैविक खेती जैसा दूसरा कोई अच्छा विकल्प नहीं है. जैविक खादों में वर्मी कम्पोस्ट, नाड़ेफ़ खाद, गोबर खाद, गोबर गैस स्लरी जैसी खादों का उपयोग किया जाता है. यह सभी खाद किसानो के पास आसानी से उपलब्द्ध हो जाती है.
खाद के दाम प्रति पचास किलो
यूरिया 282 रूपये
डीएपी 580 रूपये
इफ्फको 492 रूपये
सुपर फास्फेट 180 रूपये
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