29.10.10

छत्तीसगढ़ की काशी खरौद

छत्तीसगढ़, धार्मिक नगरी और पर्यटन की दृष्टि से एक समृद्धषाली राज्य है। अधिकांष इलाके वन क्षेत्रों से आच्छादित हैं और पहाड़ों के मनोरम दृष्य भी है। साथ ही प्रदेष में अनेक ऐसे धार्मिक स्थान है, जहां लोगों की आस्था उमड़ती है। ऐसा ही एक धार्मिक स्थल लक्ष्मणेष्वर धाम खरौद है, जिसे छत्तीसगढ़ की काषी के नाम से भी जाना जता है। अपनी पुरातात्विक महत्ता के कारण पुराविदों और इतिहासविदों के अध्ययन का यह नगरी हमेषा से ही केन्द्र रहा है। खरौद की एक पुरातात्विक और धार्मिक विरासत है, जिसे अब मंदिरों में बनी कलाकृति और षिलालेखों से जाना जा सकता है। पुरातन धरोहरों को समेटे मंदिरों की दीवारों व षिलालेखों पर कई ऐसे ष्लोक हैं, जिससे रामायणकालीन समय की याद ताजा हो जाती है।
जिला मुख्यालय जांजगीर से 55 किमी और बिलासपुर रेलवे जंक्षन से 65 किमी दूर बसे इस धार्मिक नगरी खरौद की पहचान तालाबों की नगरी के रूप में भी होती है। लक्ष्मणेष्वर की नगरी में 126 तालाब हैं, जिससे छत्तीसगढ़ी में बुजुर्गों द्वारा छह आगर छह कोरी कहा जाता है। खरौद में यह देखने में आता है कि जिस ओर नजरें घुमाएं, उस ओर तालाब जरूर दिखता है। साथ ही इन तालाबों के किनारे मंदिर बना हुआ दिखता है। खरौद के नामकरण को खरदूषण राजा से भी जोड़ा जाता है, वैसे पुराविद, खरौद में षैव परंपरा होने की बात कहते हैं। बदलते समय के साथ और मंदिरों का जीर्णोद्धार नहीं होने से कई मंदिर जहां खंडित हो गए हैं तो कई तालाब भी अब इतिहास बन चुके हैं। फिर भी खरौद में पुरातात्विक धरोहरों के कई अजूबे पहचान कायम है, जिसे देखने श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। खरौद में महाषिवरात्रि पर लगने वाला सबसे बड़ा मेला पूरे छत्तीसगढ़ में विख्यात है और इस दिन लक्ष्मणेष्वर धाम में भक्तों का रेला उमड़ता है। मंदिर का पट सुबह 4 बजे खुलते ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है और भगवान के दर्षन का सिलसिला देर रात तक चलता रहता है।

खरौद वैसे अनेक मंदिरों का केन्द्र है और सबकी अपनी-अपनी अलग-अलग विरासत है। नगर में स्थित भगवान लक्ष्मणेष्वर का मंदिर की महिमा अपार है और इसकी कई खासियतें हैं। 12 वीं षताब्दी में बना यह मंदिर लगभग 110 फीट चैड़ा भू-भाग में स्थित है और 30 फीट का गोलाई लिए हुआ है। महत्वपूर्ण बात यह है कि मंदिर में स्थापित लक्ष लिंग जमीन से करीब 48 फीट उपर स्थित है। इस लक्ष लिंग में एक लाख छिद्र होना माने जाते हैं और श्रद्धालु, श्रद्धाभाव से यहां एक लाख चावल चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं। लक्षलिंग में हमेषा जल भरा रहता है और खराब भी नहीं होता, जबकि यह लक्षलिंग जमीन तल से अत्यधिक उपर है। माना जाता है कि लक्षलिंग में जो जल चढ़ाया जाता है, वह मंदिर के पिछले हिस्से में स्थित कुण्ड में चला जाता है। जिससे कुण्ड कभी सूखता नहीं है। भक्तों में आस्था है कि भगवान षिव के दर्षन मात्र से क्षय रोग दूर हो जाता है। लक्ष्मणेष्वर मंदिर के चारों ओर बड़ी दीवार बनी हुई और मंदिर के भीतर बड़ी जगह बनाई गई है, जिससे वृहदाकार निर्माण की बात पुराविद कहते हैं। मंदिर के बाहर एक कुआं स्थित है, जहां सिक्के डाले जाने की परंपरा है, यह कहा जाता है कि सिक्के के दीवार से नहीं टकराने पर षुभ होता है। भक्तों में यह भी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से जो भी मांगा जाता है, वह पूरी होती है। इसी के चलते खरौद में महापर्व महाषिवरात्रि के अलावा सावन महीने में हर सोमवार और तेरस पर भक्तों की भीड़ देखने लायक रहती है। इन अवसरों पर दूसरे प्रदेषों से भी दर्षनार्थी भगवान लक्ष्मणेष्वर के दर्षन के लिए पहुंचते हैं। लक्ष्मणेष्वर मंदिर के अलावा खरौद में प्राचीन ईंदल देव और षबरी माता का मंदिर भी है। ईंदलदेव का मंदिर ईंट से बना है और जानकार इसे 6 वीं षताब्दी में बने होने की बात कहते हैं। ईंदलदेव मंदिर को जिले का सबसे पुरातन मंदिर माना जाता है, जिसकी दीवारों पर अनोखी कलाकृति बनाई गई है। ईंट के बने होने के कारण इतिहासविदों द्वारा हमेषा यहां षोध कार्य किया जाता है और विदेषों से भी लोग पहुंचकर यहां से जानकारी लेते हैं। पुरातत्व विभाग द्वारा प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित किए जाने से मंदिर में किसी तरह निर्माण करने पर रोक है। ईंदलदेव मंदिर की जीर्ण होने की स्थिति में कुछ साल पहले पुरातत्व विभाग ने जीर्णोद्धार कराया था, इससे मंदिर को लोहे के राड से बांधा गया था। इस मंदिर की खासियत यह भी है कि इसका मुख्य द्वार पीछे की ओर और द्वार पर मां गंगे की तस्वीर उकेरी गई है। ईंदलदेव मंदिर में कई अनेक खूबियां हैं, जिसके चलते यह मंदिर पर्यटकों और पुराविदों को अपनी ओर वर्षों से आकर्षित करता आ रहा है।

षबरी मंदिर की अपनी एक पुरातात्विक पहचान अब भी कायम है। मंदिर के द्वार पर अद्धनारीष्वर की प्रतिमा स्थित है, जिसमें भगवान षिव और पार्वती की तस्वीर उकेरी गई है, जो पर्यटकों का केन्द्र बिन्दु होता है। षबरी मंदिर के कुछ हिस्से फर्षी पत्थर से बने हैं तो उपरी हिस्सा ईट से बनाया गया है। ईंट से बने होने के कारण इस मंदिर को भी देखने इतिहासविद और पुराविद पहुंचते हैं। षबरी मंदिर के षिलालेख में भी कई पुरातन ष्लोक लिखे गए हैं, जिससे खरौद नगरी के पुरातन गुणगान का पता चलता है और इन मंदिरों के दर्षनार्थ श्रद्धालु पहुंचते हैं। फिलहाल खरौद को छत्तीसगढ़ षासन द्वारा दर्षनीय स्थल घोषित किया गया है, लेकिन जो विकास इस नगरी का होना चाहिए, वह नहीं हो सका है। मंदिर के आसपास श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए सामुदायिक भवन जैसी अन्य सुविधाओं की जरूरत है, मगर अब तक ऐसी कोई पहल नहीं की गई है। साथ ही नगर पंचायत द्वारा भी ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया है। पुरातत्व विभाग के अधीन सभी मंदिरों के होने से निर्माण नहीं कराए जा पा रहे हैं, जबकि मंदिर में हर वर्ष चढ़ावे से लाखों रूपये की आय होती है। इस आय का अब तक कोई हिसाब नहीं रखा गया है और मंदिर की पूजा-अर्चना कार्य में लगे पुजारी ही इन राषियों को आपस में बांट लेते हैं। वैसे यहां ट्रस्ट बनाने की मांग समय-समय पर उठती रही है, किन्त यह पहल भी अधूरी है।

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