मित्रों इलाहाबाद उच्च न्यायलय से अयोध्या समस्या का बहु प्रतिक्षित फैसला आ चुका है....जिसके लिए उच्च न्यायलय ने विभिन्न साक्ष्य,पुरातात्विक प्रमाण और गवाहियां देखा है।
मगर अब इसकी अलग अलग व्यक्तियों, समुदायों, धार्मिक और राजनैतिक नेतावों और उनके दलों के द्वारा व्याख्या, समालोचना, प्रतिक्रियावों का दौर भी चालू हो गया है.... जो विभिन्न प्रिंट और लाइव मीडिया चैनलों के माध्यम से जनमानस के सामने आ रहा है ।
कोई कह रहा है कि यह बहुत ही बेहतर फैसला है, कोई कह रहा है कि यह फैसला कम एक समझौता ज्यादा है, कोई कह रहा है कि इसमे तर्क और साक्ष्य के मुकाबले आस्था को ज्यादा महत्व दिया गया, किसी को यह पूर्णतया मान्य है तो कोई उच्चतम न्यायलय जाने की बात कह रहा है।
चलिए उच्चतम न्यायलय भी देख लेते है वहां से भी देर सबेर आवश्यकतानुसार इसी से मिलता जुलता फैसला आने की ९९.९९ प्रतिशत उम्मीद है , कारण आगे समझ में आ जायेगा ।
वैसे यह आज के भारत के परिपक्व सोंच का ही नतीजा है कि ९९ प्रतिशत लोगों की प्रतिक्रिया सीधी साधी, एकदम संयत, सधी हुयी और भारत की राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने वाली ही है सिवाय वर्षों से पेट्रो डालर के बल पर फलने - फूलने वाले और अपनी राजनैतिक जमीन खो चुके कुछ तथाकथित ढोंगी राजनैतिक नेतावों के जो महज अपनी राजनैतिक रोटी सेंकने के चक्कर में ना केवल न्यायिक अवमानना करने की मूर्खता कर रहें है वरन अपने आप को एक समुदाय विशेष का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने की लालच में देश को साम्प्रदायिक आग में झोंक देने का प्रयास कर रहे है।
इनसे सावधान रहने की जरुरत है......क्योंकि पुरखों ने कहा है कि जो अपनो का नहीं होता है वो कभी गैरों का नहीं हो सकता है।
इसके अलावां कुछ लोगों ने फैसले का स्वागत तो किया है मगर उनके द्वारा कहा जा रहा है कि "अयोध्या समस्या का सर्व-सम्मत हल न्यायिक-तन्त्र नहीं दे सकता और इसके लिए दोनों समुदायों को आपस में वार्ता करके कोई सर्व-सम्मत हल निकलना होगा" यह भी निहायत ही मूर्खता पूर्ण तर्क है क्योंकि यदि ऐसा होना होता तो पिछले २००-२५० सालों में हो गया होता ।
अब कुछ अन्य बातें
१. सारे पौराणिक ग्रन्थ और समस्त जनमानस मानता हैं कि भारत वर्ष में अयोध्या ही भगवान् श्री रामचंद्र जी की जन्म-भूमि है और इस देश में कोई दूसरी अयोध्या भी नहीं है तो भगवान राम ने त्रेता युग में अयोध्या नगरी में जन्म लिया था इसमे कोई शंका ना है ना ही किया जा सकता है। हाँ काल की गणना पर अलग अलग धर्मो के लोग हिन्दू गणना पद्धति पर प्रश्न लगा सकतें है मगर मूल विषय निर्विवाद ही है , और आप विवाद तब ही खड़ा कर सकते है जब आप की उपस्थिति विवादित विषय के प्रारम्भ समय से ही हो । और हिन्दू धर्म ने जब अपना दो तिहाई से अधिक समय पूर्ण कर लिया तब वर्तमान के धर्म प्रतिपादित हुए है तो यदि वो ये कहें की आप भगवान राम का जन्म प्रमाणित करें तो यह वैसा ही है जैसे कोई बच्चा कहे मै परदादा को नहीं जानता आप प्रमाणित करें ।
२. मगर भगवान राम ने त्रेता युग में अयोध्या नगरी में किस स्थान पर जन्म लिया था इसका साक्ष्य वास्तव में नहीं है अर्थात भगवान राम की जन्म स्थान/भूमि तो प्रमाणित है मगर जन्म स्थान आज हिन्दू धर्म या कोई भी इतिहास प्रमाणिक तौर पर नहीं बता सकता है और बताये भी कैसे......आज उस समय का कोई भी नक्शा किसी के पास नहीं है तब से ना जाने कितनी बार अयोध्या बसी है, उजड़ी है, जाने कितने बार सरयू नदी ने अपना प्रवाह मार्ग परिवर्तित किया है तो यह असंभव है, और ये बात ना केवल भगवान राम हेतु लागू है वरन भगवान कृष्ण, देव-दूत ईशा मसीह, और पैगम्बर साहेब हेतु भी लागू है ।
३. उक्त विवादित परिसर पर मस्जिद बाबर के सेनापति मीर बांकी खां ने बनाया था इस पर दोनों पक्ष सहमत हैं । इस तथ्य पर विवाद हो सकता है कि मस्जिद मंदिर को गिरा कर बनाया गया या मंदिर के भग्नावशेष पर ? मस्जिद बनाये जाने हेतु भूमि स्वामी से अनुमति ली गयी या नहीं ?
४. हुमायु, शाहजहाँ,अकबर, और औरंगजेब जैसे शाशक भले ही विसुद्ध रूप से भारत वासी हों मगर बाबर निश्चित रूप से बाहरी और आक्रमणकारी ही था इसमे कोई शंका नहीं है।
5. अगर सामान्य आक्रमणकारी मनोविज्ञान से सोंचे तो आज भी हमला करने वाला ना केवल अपने पराजित शत्रु के जन-धन की हानि करता है वरन उसके मनोबल को भी हर तरह से तोड़ने का प्रयास करता है क्योंकि तभी उसकी विजय ज्यादा स्थाई रह सकती है । तो परिस्थिति जन्य साक्ष्य यही है कि बाबर ने मंदिर ( अयोध्या में था तो राम मंदिर ही होगा, अब यह कैसा मंदिर था ? जन्म भूमि थी या कोई सामान्य विशेष पूज्य मंदिर था यह तो उस ज़माने के लोग ही जाने या भगवान राम जाने ) को ध्वस्त कराकर ही वहां मस्जिद बनवाई और वहां के हिन्दू निवासियों का मान मर्दन किया ( अगर खंडहर पर बनाना होता तो उस ज़माने में भूमि की कोई कमी नहीं थी वह उसे किसी खाली जगह पर भी बनवा सकता था। और उसने जो किया कहीं से गलत नहीं किया।
6. मै सपथ पूर्वक कहता हूँ कि अगर मै आक्रान्ता बाबर होता तो निश्चित तौर पर अपने विजित स्थानों पर अपनी जीत को चिर स्थायी बनाने और अपने दुश्मनों के मनोबल का दमन करने हेतु उनके महत्वपूर्ण स्थलों सहित उनके पूजा स्थल को भी खंडित कराता और वहां अपना कुछ बनाता और सारे विश्व में विजेता सम्राट यही करते है , यह ना पाप है ना अधर्म है यही विजेता की मानसिकता है । और अगर कोई तथाकथित महान सज्जन पुरुष,महिला अथवा दोनों के बीच वाला प्राणी यह कहें कि वो अगर बाबर होते तो एसा नहीं करते तो या तो वो झूंठ बोलेंगे या वास्तव में यह बात कहते समय अपने अन्दर एक आक्रामक सेनापति के भाव नहीं ला पा रहे होंगे।
५. और जब मस्जिद बनी होगी तो निश्चित तौर पर वहां नमाज भी पढ़ी जाती रही होगी हाँ समय के साथ जैसे-जैसे स्थानीय हिन्दुवों ने अपनी शक्ति वापस पायी वो अपनी खोई हुयी जमीन को वापस पाने हेतु प्रयासरत हुयी यह भी कहीं से गलत नहीं है फिर चाहे वहां राम स्वयं से पुन: २२/२३ की रात में प्रगट हुए या प्रगट किये गए , दोनों ही उचित है आखिर वो स्थल छीना हुवा ही था और पराजित को हक़ है कि वो अपनी सम्पत्ति को वापस पाने का जैसे भी हो सके प्रयास करे । और अगर ये अनुचित है तो सबसे पहले तो आज वक्फ बोर्ड को भंग कर देना चाहिए।
६. और जब राम स्वयं से पुन: २२/२३ की रात में प्रगट हुए या प्रगट किये गए तो वहां पूजा अर्चना भी हुयी ही और वो हिन्दू स्थल कि गरिमा पुन: पाया भले ही बंद रहकर ही सही ।
७. हाँ उक्त विवादित परिसर को गिराया जाना जरुर अनुचित और गैर क़ानूनी कहा जा सकता है मगर जरा विचार करें कि क्या आज भी सामान्य जन अपने भाई-भतीजों, पट्टीदारों या किसी बाहरी कब्जेदारों से निपटने के लिए ये तरीके नहीं अपनाता है ?
८. पहले भी बातचीत का प्रयास किया गया मगर जहाँ एक तरफ हिन्दू कहता था कि हमें गर्भ गृह ही चाहिए ( मेरे अनुसार यह आस्था से ज्यादा जैसे आत्म सम्मान का विषय था , सोंचे क्या हम आज भी हम लोग पूरी तरह से अंग्रेजों की गुलामी से उबर पाये है ? ) तो दूसरी तरफ मुस्लमान कहता था अगर उसे अयोध्या में बाबरी मस्जिद चाहिए तो मुख्य गुम्बद के के नीचे ही चाहिए वर्ना नहीं चाहिए ( यह भी आस्था से ज्यादा विजेता के गुरुर का ही मामला था वर्ना क्या मक्के और मदीने जैसे पवित्र स्थलों के शहर में कुछ मस्जिदों को केवल शहर के विकास के नाम पर अलग स्थानांतरित नहीं किया गया ? तो भारत में क्यों नहीं हो सकता था ?)
९. तो इस तरह से हिन्दू और मुस्लमान दोनों के दावे उक्त स्थल हेतु अलग अलग काल खंड के अनुसार सत्य हैं , जो लोग चिल्ला रहे है कि उनके तर्कों और साक्ष्य को पूरी तरह से नहीं देखा गया वो वास्तव में अनर्गल प्रलाप कर रहें है । अरे अदालत और क्या देखती ? केवल तुम्हारी एकतरफा सुनती तभी सही थी ? उसने सब तर्कों और साक्ष्य को वास्तव में ईमानदारी से देखा तभी तो दोनों पक्ष का अधिकार माना और भूमि को १/३,१/३,१/३ के अनुसार बँटा । और यही उचित भी था वर्ना अगर वो किसी भी पक्ष को पूरी तरह से भूमि दे देता तब वास्तव में अन्याय करता।
१०. अब मान लेते है कि अगर पूरी भूमि मुसलमानों को ही अदालत देने का कागजी आदेश जारी कर देती तो जरा सोंच कर देखें कि प्रदेश के मुख्य मंत्री , देश के प्रधानमंत्री, तीनो सेना के सेनापति, सभी धर्म गुरुवों से लेकर राजनेतावों तक किसकी सामर्थ है कि वहां वर्तमान में स्थापित राम लला को हटवा देता और वहां मस्जिद बनवा देता ? अगर ऐसा हो सकता तो पहले के पदों पर पद-स्थापित लोग ऐसा अपनी ताकत और सत्ता का प्रयोग कर के ना कर देते फिर चाहे वो नेहरू हो, इंदिरा जी हों, राजीव गाँधी हो, बाबा अटल बिहारी हो, चंद्रशेखर हो, या मनमोहन सिंह हो, आडवाणी हो, कल्याण सिंह हो, मुलायम सिंह हो, बुखारी हो, जिलानी हो या मोहन भागवत हो ?
११. और ये बात केवल राम लला बिराजमान हेतु ही नहीं लागू होती है यही बात बात दुसरे पक्ष हेतु भी लागू है , पूरी भूमि हिन्दुवों को ही अदालत द्वारा देने का कागजी आदेश जारी हो गया होता और वहां पुराना वाला ढांचा आज भी होता तो किसकी औकात थी कि वहां उसे गिराकर वहां मंदिर बनवा देता ?
१२. कुछ भी कहना आसान है मगर उसे जमीनी धरातल पर कार्य करना मुश्किल होता है ? तो अगर वो ढांचा गिरा तो मै तो यही कहूँगा कि ईश्वर और पैगम्बर की यही इच्छा थी जिससे कम से कम आज खाली जगह का बँटवारा तो दीवानी मामले की तरह से हो सके ?
१३. तो अब क्यों नहीं दोनों पक्ष के लोग उसी जगह पर मंदिर मस्जिद एक साथ अपने अपने मिले जगह पर बना लेते है ?
१४. और अगर अब भी दोनों पक्ष के कुछ स्वार्थी, चोर, बेईमान, लालची, मक्कार, पापी, अधर्मी, अज्ञानी , राजनैतिक रोटी सेंकने की चाहत वाले लोग झगड़ना चाहते है तो स्वागत है, मगर जन सामान्य को बक्स दो भैया !! मेरी राय है की जैसे डब्लू डब्लू एफ होता है या फ्री स्टाइल की कुस्ती होती है वैसे ही हिन्दू और मुस्लिम दोनों पक्ष के लोग दो अलग अलग झगडालू दल बना ले और उसमे मार करने वाले स्वयं सेवको, जिहादियों को आमंत्रित कर ले, और इसमे सामिल होना वाला एक घोषणा पत्र भर के दे कि वो अपने पूरे होशो हवास में अपने प्राणों कि बाजी लगाने जा रहा है और यदि उसके प्राण जाते है तो इसके लिए किसी भी व्यक्ति, समुदाय को जिम्मेदार ना माना जाय ना ही उसके परिवार को इसका कोई मुवावजा ही चाहिए ना उन्हें भारत का नागरिक माना जाय, और फिर मरने दो, दोनों तरफ के पागलों को, शायद इसी तरह कुछ शांति आ जाय और देश कि जनसंख्या भी कम हो जाय । मेरा दावा है कि झगडालू दल से कोई भी दावेदार जीवित नहीं बचेगा क्योंकि यहाँ कोई किसी से कम नहीं है।
१५. दोनों पक्ष ने कहा था कि कोर्ट का फैसला मानने के लिए बाध्य होगे....तो अब क्यों किस मुह से बेमतलब में सुप्रीम-कोर्ट की रट लगा रहे हैं अब जो फैसला अदालत ने दिया है उसे चुप-चाप शराफत से सभी लोग माने और इस देश को आगे जाने दें । इस देश की अदालत के अलावां और कोई भी इसका समाधान नहीं कर सकता है और जो फैसला आया है उससे बेहतर कोई और फैसला नहीं हो सकता है भरोसा ना हो तो नये सिरे से वार्ता का नाटक कर के देख लीजिये या उच्चतम न्यायलय में भी जाकर अपना सर पटक लीजिये आपको अपने आप पता चल जायेगा।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
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