26.10.10

समाज, शराब और सरकार

बदलते परिवेश के साथ लोगों की जीवनशैली और रहन-सहन में परिवर्तन आया है और समाज में भी व्यापक स्तर पर बदलाव देखने में आ रहा है। लोग जहां भौतिकवादी जीवन जी रहे हैं, वहीं नई पीढ़ी एक ऐसे अंधकार में गुम होती जा रही है, जिसकी अंतिम परिणिति की कल्पना कर ही मन सिहर उठता है। समाज में नशाखोरी की प्रवृत्ति इस कदर हावी हो गई है कि इसने हर वर्ग को अपने चपेट में ले लिया है। युवा पीढ़ी तो लगातार नशाखोरी की गिरफ्त में आ रही हैं और उनका भविष्य भी तबाव हो रहा है। निश्चित ही समाज में इसका विकृत चेहरा भी सामने आ रहा है। समाज की भयावह स्थिति वह हो सकती है, जब नशाखोरी के मामले में महिलाओं की संख्या बढ़ने की जानकारी सामने आए। वैसे यह बात भी सत्य है कि आज समाज को नशा जैसी कुरीति के गिरफ्त से कोई बाहर निकाल सकता है तो वह है, नारी शक्ति। प्रदेश के कई इलाकों में नशाबंदी की दिशा में महिला समूहों तथा संगठनों द्वारा लगातार प्रदर्शन किए जा रहे हैं, जिससे लगता है कि नशाखोरी के विरोध में उनके जेहन में कुछ बात तो जरूर है।

पुरातन समय, या कहंे फिर बरसों पहले नारी शक्ति ने ही समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों को खत्म करने भूमिका निभाई थीं, कुछ इसी तरह के प्रयास की जरूरत आज स्वस्थ समाज के निर्माण में बनी हुई है। यह बात भी सामने आ चुकी है कि समाज में जिस तरह अपराध में इजाफा होता जा रहा है, उसका कारण नशाखोरी है। अधिकतर घटनाआंे के बाद जांच में बात सामने आती है कि किसी व्यक्ति ने अपराध घटित करने शराब का सहारा लिया। समाज में वैसे अन्य कई नशाखोरी के लिए प्रयुक्त मादक तत्व हैं, लेकिन शराब का उपयोग बड़े पैमाने पर हर वर्ग द्वारा किया जाता है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि छग सरकार को अरबों रूपये की आय आबकारी ठेके से होती है। हद तो तब होती नजर आती है कि सरकार, खनिज संपदाओं के अवैध उत्खनन और रायल्टी चोरी पर रोक नहीं लगाती, जबकि यदि सरकार ऐसा कर पाती तो हमारा मानना है कि सरकार को अरबों रूपये का मुनाफा हो जाता और समाज को शराब से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। यहां सरकार क्यों कड़े निर्णय नहीं ले पा रही है, यह बड़ा सवाल है ? छत्तीसगढ़ सरकार को आबकारी ठेके से करीब साढ़े 8 सौ करोड़ रूपये राजस्व प्राप्त होने की जानकारी सामने आई है और वह भी, इस वित्तीय साल के केवल बीते छह महीनों में। सरकार यह कहकर भी अपनी पीठ थपथपा रही है कि जो आय शराब से हुई है, वह तय लक्ष्य से सौ प्रतिशत से अधिक है। ऐसे में आंकलन लगाया जा सकता है कि आने वाले छह महीनों में शराब से सरकार का खजाना कितना भर जाएगा और आम जनता के घरों के खजाने कितने खाली हो जाएंगे, क्योंकि यह पैसा उन्हीं लोगों से आता है, जिनके वोट से जनहितैषी होने का दंभ भरने वाली पार्टी, सत्ता में आई है। यह बात भी दुखद है कि आबकारी विभाग द्वारा शराब दुकानों की संख्या बढ़ाने में रूचि दिखाई जा रही है, इससे तो कहीं न कहीं यह आभास होता है कि सरकार को छग की भोले-भाले जनता के सेहत का ख्याल नहीं है ? यदि होता तो सरकार इस तरह प्रयास नहीं करती। प्रदेश में आने वाले दिनों में औद्योगिकरण वृहद स्तर पर किया जाना है और स्वाभाविक है कि छग में दूसरे राज्यों से लोगों और कामगारों का आना होगा। ऐसे में शराब दुकानों की संख्या में वृद्धि की बात सामने आ रही है। यहां प्रश्न यही है कि लाइसेंसी शराब दुकानों के इतर गांव-गांव में जो अवैधानिक रूप से शराब बिक रही है, क्या वह सरकार की नजर में नाकाफी लगती है। सरकार, महज आमदनी की सोच रखकर इस तरह लोगों के सेहत से खिलवाड़ करे तो फिर इसे क्या कहा जा सकता है ? खासकर वह सरकार, जो लोगों की भूख की चिंता करती है और महज 2 और 3 रूपये किलो में हर महीने 35 किलो चावल उपलब्ध कराती है। यहां पर तो हमें सरकार की दोमुंही नीति समझ में आती है, क्योंकि एक तरफ सरकार को लोगों के पेट की चिंता सता रही है, वहीं इसी सरकार को लोगों के शराब से बिगड़ने वाले सेहत का ख्याल क्यों नहीं है ? सरकार यह भी क्यों नहीं सोचती कि जब वह किसी परिवार की खुशहाली की बात करती है और लाखों परिवार के लोगों को रोजगार देने का दावा करती है, यहां सरकार को यह बात क्यों परे लगती है कि जो लोग पूरे दिन उनके दिए रोजगार के तहत काम करते हैं और उस मेहनत की कमाई को अपने परिवार के लोगों के जीवन स्तर सुधारने तथा बच्चों की शिक्षा व्यवस्था करने के बजाय, जब वह अपनी गाढ़ी कमाई का आधे से अधिक हिस्सा नशाखोरी में बर्बाद कर दे। कई बार यह भी देखने में आता है कि परिवार की चिंता किए बगैर कोई व्यक्ति अपनी पूरी कमाई को शराब या फिर नशाखोरी में लुटा देता है। यह बात भी सामने आ चुकी है कि लगातार शराब पीने के कारण किसी व्यक्ति की असमय ही मौत हो जाती है, उस समय उस परिवार के सदस्यों पर किस तरह पहाड़ टूटता होगा, इन बातों को सत्ता और सरकार में बैठे नुमाइंदों को सोचने की फुर्सत कहां, उन्हें तो बस इतनी चिंता हो सकती है कि इस बरस आबकारी ठेके से सरकार की झोली कितनी भरेगी।

छत्तीसगढ़ को निर्माण हुए दस बरस होने को है और विकास की दृष्टि से देखें तो अविभाजित मध्यप्रदेश के समय सौतेला व्यवहार के कारण यह राज्य पिछड़ा हुआ था, लेकिन इन बीते दस सालों में विकास के मायने बदले हैं। छग में कई नीतियों के कारण प्रदेश के मुख्यमंत्री डाॅ। रमन सिंह ने जरूर वाह-वाही लूटी हैं, लेकिन यह बात भी कटु सत्य है कि वे समाज के उत्थान के लिए जो करने की ध्येय रखते हैं, वह कहीं न कहीं अधूरा नजर आता है। सरकार, आम लोगों के प्रति जवाबदेही और कल्याणकारी होने की चाहे बड़े-बड़े दावे कर ले, मगर समाज में जिस तरह नशाखोरी की कुरीति हावी होती जा रही है और सरकार का उस पर किसी तरह का अंकुश नहीं है। उल्ट,े इस कुप्रवृत्ति को बढ़ाने और सर्वसुलभ करने के लगातार प्रयास किए जाएं तो फिर सरकार की वह मंशा समझ में आती है, जिसे सरकार सीधे तौर पर तो नहीं कहती, लेकिन उनकी मौन धारणा से समझ में आ जाती है।

प्रदेश ने विकास पथ पर अभी कदम रखा है, निश्चित ही राज्य को विकास के नाम पर अपनी कई अनूठी पहचान बनानी बाकी है। छग में जिस तरह खनिज संपदा का अपार भंडार है, उससे तो विकास की एक नई गाथा लिखी जा सकती है तो फिर शराब की आय की बैशाखी के सहारे, सरकार क्यों आगे बढ़ रही है ? कहा जाता है कि समाज के व्यापक विकास में नशाखोरी बाधक बनती हैं, लेकिन क्यों यह बात, संवेदनशील माने जाने वाली सरकार और जनता के प्रति विश्वास का भाव जगाने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री के कोमल मन को नहीं हिला पा रही है। समाज में बढ़ती शराबखोरी के कारण लगातार परिवार विघटन तथा समाज में बढ़ते आपराधिक गतिविधियांे के मामले आते जा रहे हैं, बावजूद सरकार की सकारात्मक सोच कहीं दिखाई नहीं देती। प्रदेश के आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल ने यह हिदायत बैठकों में कई बार दी हैं कि गांव-गांव में जो अवैध शराब की बिक्री हो रही है, उस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगे और दोषियों पर कार्रवाई हो, लेकिन यह केवल तत्कालिक निर्णय ही नजर आता है, क्योंकि उनके हिदायत के बावजूद लगातार यह खबरें आती हैं कि गांवों में बेरोक-टोक अवैध तरीके से शराब बेची जा रही है। हद तो तब हो जाती है, जब प्रतिबंधित जगह अर्थात् टेंपल सिटी और आदर्श गांवों में भी शराब बिकने के मामले सामने आए। ऐसा नहीं है कि अवैध शराब बिक्री की सरकार को जानकारी नहीं है, क्योंकि जब आबकारी मंत्री इन बातों पर संज्ञान लें तो इस बात को समझी जा सकती है। हाईकोर्ट के आदेश का भी पालन होता नजर नहीं आ रहा है। साथ ही शासन के आदेश का भी कई धार्मिक स्थलों में खिल्लियां उड़ाई जा रहीं हैं।

स्थिति वहां पर बिगड़ती नजर आती है, जब शराब बिक्री के विरोध मंे चारदीवारी से निकलकर महिलाएं प्रदर्शन करने लगंे। प्रदेश के दूसरे इलाकों के हालात की बात ही अलग है, मगर जब राजधानी रायपुर के कई जगहों में शराब दुकान हटाने महिलाएं लामबंद होकर सड़क पर उतर आएं। इसके बाद भी सरकार का सकारात्मक नजरिया इस मामले में सामने नहीं आ पाए तो सरकार की सोच समझी जा सकती है कि उन्हें आबकारी राजस्व की चिंता है या फिर आम जनता की ? नशाखोरी और शराबखोरी के कारण समाज के बिगड़ते माहौल की फिक्र सरकार को करने की जरूरत है, क्योंकि जिस तरह छग ने विकास के नए आयाम इन बहुत ही कम समय में तय किया है, वह और दु्रत गति से बढ़ सके। सरकार को यह समझने की आवश्यकता है कि छग में जो अपार खनिज संपदा है, उसका प्रदेश के विकास में किस तरह दोहन करके लगाया जाए। हमारा मानना है कि यदि सरकार यह निर्णय ले कि प्रदेश में नशाखोरी को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा और नई पीढ़ी को सकारात्मक दिशा में कार्य करने प्रोत्साहित करे, तो ही छग की सरकार, एक विश्वसनीय सरकार साबित हो सकती है। जो सरकार, आमजन की फिक्र करे और उसके बारे में सोंचे, वह सरकार आम जनों के मन में जगह बना पाती है। समाज में बढ़ते नशाखोरी और बिगड़ते हालात को लेकर शिक्षाविदों, समाजशास्त्रियों तथा बुद्धजीवियों को भी मनन किए जाने की जरूरत है, जिससे समाज को एक नई दिशा मिल सके।

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