8.10.10

हंसती रही न तरस खाया……………


थे नहीं हालत ऐसे,दिख रहा जैसे अभी
कैसे बताऊँ किस तरह, किसने किया पागल कभी
गिड़ गिडाया,हाथ जोड़ा,खूब चिल्लाता रहा,
बे सब्र इस मंजर में मै, आने से घबराता रहा

मै तो चल रहा था चैन से, वो आ मिली मझधार में
कोशिश किया ले लू किनारा, पर ले बही वो धार में
हाथ मारा पांव मारा और, मुड मुड के चिल्लाता रहा
चलने दिया ना एक मेरी, कर लिया काबिज मुझे
बस हंसती रही न तरस खाया, कर गयी चोटिल मुझे!


कैसे उसे इल्जाम दूँ, कैसे कहूँ ना समझ थी
इन्शान के हर नब्ज की जब, खूब उसको परख थी
है वक्त मुझको छोड़ दो, हर पल ये समझाता रहा
है जिन्दगी अपनी बता, कर देती बिलकुल चुप मुझे
थी आई बस वो खेलने,खेली हरा कर चल दिया
नादान मै ना समझ पाया, कैसे किसी ने छल किया
फिरता हूँ मारा ढूढता, दिखती नहीं वो अब कहीं
दिख जाती बस एक बार वो, इत्तनी सी तमन्ना है मुझे
बस हंसती रही न तरस खाया, कर गयी चोटिल मुझे!!

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