जग बौराना : कांग्रेस की नई राजनैतिक संस्कृति ।
लेखक: श्री नरेश मिश्र
गये जमाने में बड़ा पेड़ गिरा था और धरती हिल गयी थी । उस धरती का मरकज दिल्ली था । आस पास का इलाका भी जलजले के झटके की चपेट मंे आया था । साहबे आलम की नजर में धरती बहुत छोटी थी । इस हकीकत से कोयी फर्क नहीं पड़ता कि उन्हें शहंशाहे हिन्द के तख्त पर बैठा दिया गया ।
नये जमाने में गनीमत हुयी कि कोई बड़ा पेड़ नहीं गिरा लेकिन हिन्दुस्तान की धरती दूर दूर तक कांप उठी । ऐसा भूचाल आया कि दिल्ली, लुधियाना, अजमेर, भोपाल और बंगलूरू तक झटके महसूस किये गये । उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की सड़कों पर भगदड़ मच गयी ।
गये जमाने और नये जमाने का अच्छा खासा फर्क पहली बार महसूस हुआ । कांग्रेस की इस राजनैतिक संस्कृति के क्या कहने । सब उपमा कवि रहे जुठारी । उपमाएं अपंग हो जाती हैं। बोलती बंद हो जाती है । अब किसी में दम हो तो आकर मुकाबला करे ।
इस जलजले को हरी झण्डी किसने दिखाई । जाहिर तौर पर किसी सीनियर और तजर्बेकार कांग्रेसी नेता के सिवा यह कौन कर सकता है, इसलिये सियासत के हरफनमौला फकीर कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी आगे आये । वैसे आमतौर पर वे कांग्रेस की गतिविधियों में पर्दे के पीछे रहना पसंद करते हैं, रणनीति बनाते हैं और मीडिया को अपने महान मुखारबिंद का दर्शन बहुत कम कराते हैं ।
इस बार द्विवेदी जी का ताव खाना लाजिमी था । उन्होंने दोनो वेद पढ़ कर जो तालीम हासिल की उसका मूल सूत्र यही है कि मैडम सोनिया जी पर कोई उंगली उठाये तो उसकी आंखें निकाल लेनी चाहिये । कांग्रेस धर्म में यह फर्ज मामूली कार्यकर्ताओं से लगाकर कद्दावर नेता तक सब पर आयद होता है । यह मजहबी पाबंदी है । इसे कोई दरकिनार नहीं कर सकता है । इसे दर किनार करने वाला खुद ही किनारे कर दिया जाता है ।
मुल्क और आवाम की याद्दाश्त बहुत कमजोर होती है । यह कमजोरी सियासत में बड़े काम की चीज साबित होती है । इसका सहारा न हो तो सियासी पार्टियों का गुजर बसर करना दुश्वार हो जाये । मुल्क को याद नहीं होगा लेकिन बुजुर्गों के सड़े गले धुंधलाए दिमाग में दर्ज है कि सबसे बुजुर्ग और सम्मानित गांधीवादी कांग्रेसी नेता मोरारजी देसाई को सी.आई.ए. का एजेण्ट कहा जाता था । कम्युनिस्टों का यह पसंदीदा जुमला इंदिरा भक्त कांग्रेसियों को भी नापसंद नहीं था लेकिन मोराजीभाई के समर्थक इस मुद्दे को लेकर कभी सड़क पर नहीं उतरे । उन्होंने तोड़ फोड़ और जूतम पैजार का सियासी फार्मूला नहीं सीखा था । उनके मन में तो महात्मा गांधी की छवि थी, जो अंग्रेज नौकरशाहों और नेताओं तक को अपने तर्कपूर्ण अहिंसक जवाब से खामोश कर देते थे ।
महात्मा गांधी का देश अब तरक्की कर गया है । सभी सियासी पार्टियां लोकतंत्र की नई ऊंचाईयां हासिल कर रही हैं । इस कामयाबी में कांग्रेस को यकीनन सबसे आगे होना चाहिये था । वह देश की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित पार्टी है । उसे देश की धुरी पहचानने में कोई गलतफहमी हो ही नहीं सकती ।
पूर्व सरसंघ चालक सुदर्शन जी ने जो कहा उसे वाजिब नहीं माना जा सकता है लेकिन जनार्दन द्विवेदी ने जो कहा उसे आम कांग्रेसियों को भड़काने और आर एस एस पर हमलावर होने का इशारा मानने में किसी को कोयी दिक्कत नहीं होनी चाहिये । द्विवेदी के बयान में कांग्रेसियों को आक्रमण करने का आदेश था ।
नतीजा मुल्क के सामने है । अजमेर में संघ के दतर पर कांग्रेसी प्रदर्शनकारियों का ताला जड़ देना सिर्फ यह साबित करता है कि राजस्थान पर कांग्रेसी मुख्यमंत्री गहलौत की हुकूमत है । दिल्ली में वैसे आर एस एस को भगवा आतंकवाद के फंदे में जकड़ने के लिये अशोक गहलौत बहुत मेहनत कर रहे हैं । उन्हें उनकी मेहनत का ईनाम आगे चल कर जरूर मिलेगा । युवराज राहुल गांधी ने जिस दिन आर एस एस की तुलना सिमी से की थी, उसी दिन सारे कांग्रेसियों को मैसेज मिल गया था कि उनका अगला कदम क्या होना चाहिये ।
दिल्ली में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के फर्जंद जानब संजय दीक्षित ने आर एस एस के खिलाफ मोर्चा खोलने में काफी उछलकूद मचाई । अगर मीडिया को राजनैतिक भविष्यवाणी करने का तनिक भी अनुभव हो तो उसे मान लेना चाहिये कि अगले केन्द्रीय कैबिनेट के गठन में इस उत्साही जवान को राज्यमंत्री का दर्जा जरूर मिलेगा । मीडिया चैनल और अखबार देशवासियों को दैनिक राशिफल की मीठी गोली रोज खिलाता है । हमें उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब मीडिया नेताओं का दैनिक राशिफल बताने के लिये एक्सपर्ट ज्योतिषियों का पैनल बनायेगा ।
बहरहाल कांग्रेस में वफादारी का पैमाना तय कर दिया गया है । इस पैमाने पर खरा उतरने के लिये कांग्रेसजन जो कुछ कर रहे हैं उसे हम कतई बेजा नहीं मानते । हजरत ईसा मसीह के अल्फाज में हम यही कह सकत हैं – हे ईश्वर इन्हें माफ कर दो ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं ।
आर एस एस पर कांग्रेस का हमला इस पार्टी के नजरिये से गलत नहीं है । दरअस्ल आर एस एस एक मात्र ऐसा संगठन बच रहा है जो देश को भारतीय राष्ट्रीयता, एकता, समरसता और हिंदू हितों से जोड़े रखना चाहती है । कांग्रेस की नजरों में नये भारत की जो तस्वीर है, उसे तब तक मुक्कमल नहीं किया जा सकता जब तक आर एस एस का वजूद है । इस वजूद को खत्म करने की कोशिश उस वक्त शुरू हुयी जब कुछ सिरफिरों ने महात्मा गांधी की दुखद हत्या कर दी थी । अदालत ने आर एस एस को इस हत्या के आरोप से बरी कर दिया था लेकिन कांग्रेसियों का पसंदीदा जुमला प्रचलन में आ गया । वैसे तो कांग्रेस न्यायपालिका का बहुत सम्मान करती है लेकिन आर एस एस को गांधी जी का हत्यारा कहने से भी गुरेज नहीं करती । कांग्रेसी भले ही गांधी जी के दिखाये रास्ते पर चलने से परहेज करते हों लेकिन उन्हें पूज्य बापू की हत्या भुनाने में कोयी संकोच नहीं है ।
कांग्रेसी डा0 हेडगेवार की मूर्ति पर जूता फैंकता हैं तो वे राष्ट्रवाद का अपमान करते हैं । उन्हें ऐसा करना ही चाहिये जब तक वे भारतीयता की हर निशानी को मिटा नहीं देते, तब तक उनका यह अभियान पूरा नहीं होगा ।
कांग्रेस के बड़बोले प्रवक्ता मनीष तिवारी ने जब बिना किसी सबूत के भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर आर्दश हाउसिंग सोसाइटी में लैट लेने का आरोप लगाया था और अपने बयान पर मानहानि का मुकद्दमा चलाने की चुनौती दी थी तब कांग्रेसियों ने चटखारे लेकर इस बयान का स्वागत किया था । गृह मंत्री चिदंबरम ने भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग कर इस देश की प्राचीन पवित्र संस्कृति को गाली दी थी, तब कांग्रेसियों ने इसका मौन समर्थन किया था । लेकिन सोनिया जी पर कोई टिप्पणी कांग्रेसियों के हाजमे पर बुरा असर डालती है । ऐसी टिप्पणियां यकीनन सियासत का जायका बिगाड़ने वाली होती हैं लेकिन सियासत में गिरावट का ही दौर चल रहा हो तो कोयी क्या कर सकता है । दरअस्ल कांग्रेस एक के बाद एक घोटालों के फंदे में बुरी तरह फंसजी जा रही है । आदर्श सोसाईटी घोटाला, कॉमनवेल्थगेम्स घोटाला और टू जी स्पेक्ट्रम का त्रिशूल कांग्रेस को खौफजदा कर रहा है । ऐसे हमलों से बचने के लिये पलटवार का हथियार कांग्रेस को सुदर्शन जी ने मुहैया करा दिया । इस हथियार का भरपूर इस्तेमाल करना कांग्रेस की मजबूरी है ।
मिश्रा जी सादर वन्देमातरम...
ReplyDeleteजब से कांग्रेस आई है कामद तोड़ महगाई है