कटनी / यदि भारत की मिटटी करोडो वर्षों से अपनी उत्पादक क्षमता बनाये हुए है तो इसके पीछे मुख्य रूप से गोबर की खाद और गौ मूत्र का प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया जाना एक प्रमुख कारण रहा है.
आज जब किसान उत्पादन तो खूब ले रहे है लेकिन उचित मात्रा में गोबर खाद की कमी और रासायनिक उर्वरको की भरमार के चलते मिटटी से कार्बनिक पदार्थ क्षीण होते जा रहे है. मिटटी में पर्याप्त मात्रा में सिर्फ पोटाश बचा है बाकि के नाइट्रोजन, फास्फोरस, कार्बनिक पदार्थ कम होते जा रहे है.
अधिक उत्पादन लेने की होड़ में किसान मिटटी को पत्थर बनाने पर तुले हुए है. अत्यधिक मात्रा में रासायनिक खादों के उपयोग से मिटटी में कड़कपन आने लगा है. वही पौधों को पोषण देने वाले तत्व धीरे-धीरे समाप्त होने लगे है जो किसानो के लिए खतरे की घंटी है.
कार्बनिक पदार्थ मिटटी में उपस्थित होने से मिटटी में उपस्थित मिटटी जल भोजन की क्रिया ठीक से संपन्न कर सकती है इससे उत्पादन पर असर पड़ता है. गोबर की खाद की कमी हो जाती इसकी पूर्ती के लिए गोबर की खाद किसानो को अवश्य डालना चाहिए.
फास्फोरस की कमी से पौधों की जड़, पत्ती और पौधे के विकास पर प्रभाव पड़ता है यदि मिटटी में फास्फोरस की कमी होती है तो पौधे का ठीक से विकास नहीं हो पाता. जड़ कमजोर रह जाने से पौधे का विकास रुक जाता है. परिणामस्वरूप उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ता है. नाईट्रोजन की कमी से भी उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है इन तत्वों की कमी का कारण गोबर की खाद के स्थान पर अत्यधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरको का उपयोग करना है.
वर्तमान में किसान जमकर रासायनिक खादों को खेतो में डालकर बम्फर फसले ले रहे है लेकिन इसी तरह रासायनिक खाडे डाली जाती रही तो एक दिन मिटटी से सभी पोषक तत्व नष्ट हो जायेगे और खेतो से मिटटी के स्थान पर कंकड़ पत्थर बचेगे, जिनसे फसले उगाना किसानो के लिए मुश्किल होगा. इसलिए किसान सीमित मात्रा में ही अंग्रेजी खाद का उपयोग करे और ज्यादा से ज्यादा गोबर खाद डाले.
कृषि विभाग के अधिकारी ए के नागल का कहना है की किसान अपने खेतो से रासायनिक के स्थान पर गोबर के खाद का अधिक उपयोग करे. यदि किसान जैविक खेती पर ध्यान दे तो उनकी भूमि की उर्वरकता न सिर्फ बची रहेगी बल्कि साल दर साल बढती भी जाएगी.
bilkul sahi kaha aapne aaj organic cultivation ki jarurat hai....
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