1.11.10

बीमा कष्ट की विषय-वस्तु है-ब्रज की दुनिया

जीवन का कोई ठिकाना नहीं.कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता.इसी अनिश्चितता ने जन्म दिया बीमा के व्यवसाय को.निश्चित रूप से बीमा कम्पनियों ने लाखों-करोड़ों घरों को उजड़ने से बचाया है.बीमा अच्छी चीज है इस पर तो विवाद हो भी नहीं सकता;लेकिन बीमा-एजेंटों की खुदगर्जी के चलते बीमा गले का फाँस भी बन सकती है.अचानक आपके घर कोई पूर्व परिचित व्यक्ति आ धमकता है.एक बड़ा-सा बैग लेकर और इतनी मीठी बातें करना शुरू करता है कि आप उसे अपना सबसे बड़ा शुभचिंतक मान बैठते हैं.आपके दिलों-दिमाग पर कब्ज़ा कर चुकने के बाद वह धीरे से आपके सामने बीमा करवाने का प्रस्ताव रख देता है.पहली बार में आप फँस गए तो ठीक नहीं तो वह आपसे विचार करने का आश्वासन लेकर चल देता है और जब दोबारा आता है तो १-२ किलोग्राम अपने खेत में उपजी गोभी,आलू या कोई अन्य खाद्य-सामग्री लेकर आता है.अब तो आपको फंसना ही है.आप कहते हैं कि मेरा बीमा कर दो तो वह आपको बच्चों का बीमा कराने से होनेवाले लाभों को गिनाने लगता है.आप भी मान लेते हैं कि इसी में आपका फायदा है लेकिन आपको यह पता नहीं होता कि इसमें आपसे ज्यादा उसका फायदा होने वाला है.बच्चा ज्यादा दिन तक जिएगा और एजेंट को ज्यादा दिनों तक बोनस/कमीशन प्राप्त होता रहेगा.यानी कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना.कभी-कभी एजेंट धार्मिक प्रवृत्ति का प्रदर्शन कर (बगुला भगत बनकर) भी आपको प्रभावित करने का प्रयास कर सकता है.जब तक तीन प्रीमियम जमा नहीं हो जाता तब तक हो सकता है वह पैसा जमा करने के लिए समय पर हाजिर हो जाए.तीन प्रीमियम तक उसे आपके द्वारा जमा राशि पर सीधे कमीशन प्राप्त होता है.कई बार हो सकता है कि एजेंट पहले प्रीमियम की राशि ही आपसे झटककर दुर्लभ हो जाए.अब आप आगे पैसा जमा करें या न करें आपकी बला से,उसे तो प्रथम जमा से १० से ४०% तक का कमीशन प्राप्त हो ही गया.एक बात और आप जब भी बीमा कराएँ सालाना ही कराएँ नहीं तो आपको प्रत्येक ३ या ६ महीने पर खुद एलआईसी कार्यालय जाने का दुर्भाग्य प्राप्त हो सकता है.कई बार ऐसा भी होता है कि जब तक आपसे और पॉलिसी मिलने की सम्भावना रहती है एजेंट आता रहता है और जैसे ही आपकी आर्थिक स्थिति ख़राब हुई गदहे की सिंग की तरह गायब हो जाता है.ये सिर्फ सुख के साथी होते हैं.दुःख की घड़ियों में कन्धा देने के बजाये पीठ दिखा जाते हैं.एक बार मेरा एक बीमा एजेंट कई बार समय देने के बाद ठीक ३१ मार्च को यानी वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन हाजिर हुआ और भीड़ का हवाला देते हुए मुझे साथ चलने को कहा.उसके बाद जो हुआ उसे मैं याद तो नहीं करना चाहता लेकिन व्यापक जनहित में बताये देता हूँ.माशाल्लाह तब मैंने सचमुच का किशोर हुआ करता था अब सिर्फ नाम का रह गया हूँ.मुझे अपनी ताकत पर स्वाभाविक तौर पर अभिमान था.एक पंक्ति में चिपक गया.अब पंक्ति खिसकने का नाम ही नहीं ले रही थी.मेरे अलावा पंक्ति में खड़े सारे लोग एजेंट थे और थोक में रसीद कटवा रहे थे.दिन तो रोज ही ढलता था और आज भी ढलता है लेकिन उस दिन वक़्त गुजरने का नाम ही नहीं ले रहा था.सूरज जब अपनी समस्त प्रकाशराशि  समेट कर जाने लगा तब जाकर मेरी बारी आई.घुटनों में जोश की जगह दर्द भर गया था और पेट में चूहे दंड पेलने लगे थे.किसी तरह जान बच सकी.कहाँ तो जीवन को जोखिम से बचाने के लिए बीमा कराया और कहाँ यही बीमा जान जाने का कारण बनते-बनते रह गई.तो श्रीमान अगर आपके घुटनों में दम हो तभी करवाईये बीमा.सरकार ने जनता की सुविधा को ध्यान में रखते हुए जगह-जगह संग्रह केंद्र खोल दिए हैं.लेकिन यहाँ भी खुद जमा करने जाने में कम परेशानी नहीं.हो सकता है आप जिस संग्रह केंद्र पर जमा करने जाएँ वहां का लिंक फेल हो.बार-बार जाने पर भी कैडबरी के विज्ञापन के पप्पू की तरह फेल ही मिले.इन परिस्थियों में आपको सब कामकाज छोड़कर कई-कई बार संग्रह केंद्र के चक्कर काटने पड़ सकते हैं.तब आप अपने आपको अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में फँसा हुआ महसूस करेंगे,ठीक मेरी तरह.हाथ तो डाल दिया अब निकालें कैसे?चिंता करने से कोई लाभ नहीं आयु के साथ-साथ आपकी बुद्धि भी क्षीण होगी और खुदा न करे मर-मरा गए तो आपको कुछ नहीं मिलेगा,परिवार मालामाल जरूर हो जाएगा.जैसे हर समस्या का समाधान होता है उसी तरह इसका भी समाधान है और वह है सरकार यानी केंद्र के हाथों में.केंद्र को चाहिए कि वह संशोधन करके ऐसा प्रावधान कर दे कि जिससे पोस्ट ऑफिस एजेंटों की तरह बीमा एजेंटों को भी तभी कमीशन या बोनस का लाभ मिले जब वो खुद जमा कराने जाएँ अन्यथा यह राशि ग्राहक को ही दे दी जाए,आखिर वह बेवजह घुटनों का दर्द जो सहता है.अभी तो भैया सीधे माल महाराज के मिर्जा खेले होली वाली स्थिति है.और अगर सरकार ऐसा नहीं कर सकती तो उसे विज्ञापित कर यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि बीमा आग्रह की विषय-वस्तु है.बल्कि इसके बदले यह प्रसारित/प्रकाशित करना चाहिए कि बीमा कष्ट की विषय-वस्तु है.

2 comments:

  1. jab main tha tab hari nahi,ab hari hai main nahi. sab andhiyara mit gaya jab deepak dekhya mahi....aise hi aapke dwara di jankari ne sab bhram door kar diye.thank you very much sir.

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  2. विचारणीय किंतु निजी बीमा कम्पनियों का हाल भी देखा जाये
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    पा.ना. सुब्रमणियन के मल्हार पर प्रकृति प्रेम की झलक
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