6.11.10

पहुंचे हुए बड़े खिलाड़ी

राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़ लेखक व्यंग्य लिखते हैं
आज का दौर बड़ा कठिन हो गया है। जब भी कोई भ्रष्टाचार करना हो या फिर कोई अपराध करना हो तो पहुंचे हुए होना बहुत जरूरी है। ऐसा काम कोई विशेष व्यक्ति ही कर सकता है, ऐसे महत्वपूर्ण काम करने की हम जैसे कायरों की हिम्मत कहां। बीते कुछ समय से पहुंच की महिमा बढ़ गई है, तभी तो जब भी किसी बड़े पदों पर किसी को काबिज होना होता है तो वहां उसकी योग्यता कम काम आती है, बल्कि पहुंच का पूरा जलवा होता है। पहुंच वाले का भला कोई बाल-बांका कैसे कर सकता है। हम तो अदने से और तुच्छ प्राणी हैं, जो पहुंच जैसी बात सोचकर खुश हो जाते हैं, क्योंकि हम किसी का ना ही तबादला करवा सकते हैं और ना ही किसी आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति को पुलिस के डंडे से बचा सकते हैं। यह कोई मामूली काम नहीं है, हजारों में विरले ही ऐसा कर पाते हैं। इनकी मीठी बातों से कैसे कोई मर न मिटे। यह सब कोई कर सकता है तो वह है, पहुंच वाला। पहुंच वाले इन बड़े खिलाड़ियों के खेल ही निराले हैं। भले ही पहुंच वालों की जुबान, सभी चेहरों को पहचानती हो, लेकिन ऐसे पहुंच वालों के चेहरे की रंगत को कोई पहचान ले, समझो उससे महारथी कोई नहीं। दिन में कईयों को बरगलाना, जैसे उसकी फितरत में शामिल होता है और यही उनके जीने का शगल होता है। बिना तीन-पांच किए, पहुंचे हुए लोगों के पेट का खाना नहीं पचता। जब पहुंचे हुए खिलाड़ियों की बात हो रही है तो भारत में अब तक नहीं हो सके सबसे बड़े गेम्स की बात न हो, ऐसा हो नहीं सकता। देश के अलग-अलग इलाकों में देखा जाए तो पहुंचे हुए बड़े खिलाड़ियों की कमी नहीं है। वैसे भी यह संख्या दिन-दूनी, रात चैगनी की तर्ज पर बढ़ रही है। उनकी नजर में, कमी हो रही है, तो बस पूरी लगन से खेल का प्रदर्शन करने वालों की। छोटे खिलाड़ियों की छाती इतनी चैड़ी नहीं कि, वह बड़े खिलाड़ियों की तरह देश के करोड़ों लोगों से भ्रष्टाचार जैसा मसखरा कर पाएं और उसके बाद भी उस पर कोई उंगली न उठे। छोटे खिलाड़ी तो केवल मैदान पर खेलते हैं और मनोरंजन का साधन बनते हैं। मैदान तो बड़े खिलाड़ी मारते हैं। जो देखते ही देखते, खेल के बजट को कई गुना बढ़ा जाते हैं। छोटे खिलाड़ियों की बेचारगी की क्या कहें, वे तो बड़े खिलाड़ियों के रहमो-करम पर रहते हैं। जब उनका मन बनता है तो अदने से खिलाड़ियों के लिए थोड़ी-बहुत वेलफेयर कर, सुर्खियां बटोरी जाती है, लेकिन जब इन्हीं बड़े खिलाड़ियों को तिजोरी भरनी रहती है तो वे सुर्खियों पर बने रहना पसंद नहीं करते। मेरे 10 साल के भतीजे ने पिछले दिनों टेलीविजन पर खिलाड़ियों का खेल देखा तो मुझसे पूछा - हमारे देश में कितने बड़े खिलाड़ी हैं, मैंने उसे बताया, देश भर में बड़े खिलाड़ी ही तो हैं, क्योंकि उनके आगे छोटे खिलाड़ियों का बस ही नहीं चलता। उसने दोबारा पूछा कि आखिर ऐसा क्यों, इस बात पर मैंने कहा कि बड़े खिलाड़ी, पैसों से खेलते हैं और छोटे खिलाड़ी मैदान पर किसी गेंद या और दूसरी चीजों से फिजूल का उछल-कूद करते हैं, क्योंकि मलाई तो उन्हें मिलने वाली होती नहीं है। फिर उसने एक और सवाल दागा और कहा कि मैं भी खेलता हूं और बड़ा होकर बड़े खिलाड़ी बनूंगा, इस पर मैंने उसे समझाया और कहा - बेटा, बड़ा खिलाड़ी बनने के लिए मुंह को कालिख से पोतना पड़ता है और देश में बदनामी के बाद भी बेगैरत बने रहना पड़ता है। इस पर उसने कहा कि मैं मैदान पर खेलने वाला खिलाड़ी बनूंगा, न कि देश के खजाने को लुटाने वाला खिलाड़ी। इन बातों से उन जैसों को कहां फर्क पड़ने वाला है, जो बिना पहुंच के बगैर बात ही नही करते। हम तो अपना छोटा मुंह बंद करके रखते हैं, क्योंकि हमारी पहुंच तो केवल मोहल्ले की गलियों तक ही है और उन्हीं से मेरी जान-पहचान है, लेकिन पहुंचे हुए बड़े खिलाड़ियों का याराना.........।

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