सोमवार, २५ अक्तूबर २०१०
होमियोपैथी बीमार का इलाज करती है, बीमारी का नहीं।
कुछ दिन पहले हम अपने घर गये हुए थे, पानी के बदलाव के कारण मुझे जुकाम खांसी की शिकायत हो गयी थी। कई तरह की दवाइयां और नुक्से लेकर मै बेहद परेशान हो गया था, कि अब क्या किया जाए। गांव के कुछ लोगो ने सलाह दी कि भैय्या आप होमियोपैथी दवा कराइए तभी कुछ हो सकता, इसके पहले मै कभी होमियोपैथी दवाओं को आजमाया नहीं था। लोगो के कहने पर मैने कहा ठीक है तो मैने लगभग 5-7 दिन ही दवा का सेवन किया होगा। धीरे-धीरे मै पूरी तरह से ठीक हो गया। सोचा कि क्यों न इस पर कुछ लिखा जाएं, होमियोपैथी क्या, कौन था इस विधा का जन्म दाता,क्या है खास इस पद्धति में और इसकी औषधि में। मेरे प्यारे ब्लॉगर दोस्तो आप भी इस पद्धति को अपनाएं और स्वस्थ रहे।
एक होम्योपैथ फेल कर सकता है होम्योपैथी नहीं - महात्मा गांधी
होमियोपैथी का मूल सिद्धांत प्रकृति का मूल सिद्धांत है। लेटिन भाषा में इस विधा को “similia,similibus,curantur” कहते है। जिसका अर्थ समः सम शमयति (“let ,likes be treated by likes”) है। ये सुनने में अजीब लगेगा लेकिन है सत्य, होमियोपैथी दवाएं पहले बीमारी को उभारती हैं फिर उस रोग को ठीक करती है और मिलते जुलते रोग भी दूर हो जाती है जिन्हे औषधि उत्पन्न कर सकती है।
होमियोपैथी मेँ हर बीमारी का कारण जीवन शक्ति का असंतुलन है जीवन शक्ति का संतुलन शरीर को स्वस्थ प्रदान करता है जिससे सभी संवेदनाओ का आदान-प्रदान भलि भांति होता है। यदि किसी कारणवस हमारे संवेदनाओ के आदान-प्रदान में कुछ गड़बड़ी हो जाती है तो हम बीमार हो जाते है। जब तक हमारे शरीर में जीवन शक्ति का संतुलन बना रहेगा। शरीर में कोई बीमारी नहीं आती है। होमियोपैथी दवा भी यही काम करती है यह शक्ति के अंसुतलन को संतुलित कर शरीर को स्वस्थ बनाती है।
होमियोपैथी का इतिहासः
होमियोपैथी की शुरुआत जर्मनी के मशहूर डॉक्टर सैम्यूअल हैनीमैन ने की थी। हैनिमैन जर्मनी के एक ख्याति प्राप्त उच्च – पदाधिकारी एलोपैथिक चिकित्सक थे। चिकित्सा विधान के अनुसार अनुमान से रोग निर्वाचन कर औषधि देते थे, जिससे कभी – कभी भंयकर हानियां होती थी, इससे उन्होंने दुःखी होकर चिकित्सा व्यवसाय से धन कमाना छोड़ दिया।लेकिन जीवन यापन करने के लिए उन्होंने किताबों का अनुवाद करना शुरु कर दिया। एक दिन मेटेरिया मेडिका किताब का अनुवाद करते हुए एकाएक उनके दिमाग में एक विचार आया कि बुखार आने पर अगर सिनकोना दवा दी जाए तो रोगी रोग मुक्त हो जाता है, लेकिन स्वस्थ मनुष्य को यही दवा दी जाए तो क्या होगा ? इसी प्रश्न ने होमियोपैथी को जन्म दिया।
दवाऐं कैसे और किन-किन चीजों से बनती है?
1. वनस्पतियों - जड़,तना ,छाल, पत्ती,कली, फूल,फल,अर्क,गोंद,तेल या संपूर्ण भाग से बनती है।
2. जीव जंतुओं - उलके स्राव एवं उत्तकों आदि से बनती है।
3. मादक पदार्थों – भाँग,गांजा,अफीम आदि पदार्थों से तैयार की जाती है।
4. खनिज लवण – पारा, शीशा, सोना ,तांबा, आदि से तैयार की जाती है
यह समस्त दवाएं मूल अर्क, विचूर्ण एंव पोटेन्सी के रुप में होती है। होमियोपैथिक दवा बनाने के लिए या रोगी को देने के लिए कई माध्यमों का प्रयोग किया जाता है जिनका अपना कोई औषधिय गुण नहीं होता है।
ये मुख्यतः दो रुपों में होते है।
1.तरल के रुप में
2.खुश्क के रुप में
और यही दोनो दवा देने के लिए प्रयोग किया जाता है।
1. मूल अर्क...(Mother Tinchar ) वनस्पतियों से बनने वाली दवाइयो में एल्कोहल के साथ, जो की उसमें घुलन शील हो उसका मूल अर्क तैयार किया जाता है जिसमें एल्कोहल की मात्रा 90% v/v होता है, मूल को Q से दर्शाते है।
2. विचूर्ण (TRITURATION)—जो पदार्थ एल्कोहल में घुलनशील नहीं होतें उनको SUGAR OF MILK के साथ खरल करके विचूर्ण तैयार किया जाता है।
3. शक्तिः(POTENCY) किसी भी दवा का मूल अर्क या विचूर्ण लेकर एल्कोहल के साथ एक विशेष प्रकार झटका STROKES लगाते है या शुगर मिल्क के साथ खरल में एक विशेष प्रकार से रगड़ कर उसके अन्दर की शक्ति को निकाल लिया जाता है
इस प्रकार हम देखते है कि होमियोपैथी एक पूर्ण और सरल चिकित्सा पद्धति होने के
साथ – साथ इस मंहगाई के समय में सस्ती एंव लोकप्रिय हो रही है। होमियोपैथिक
दवाऐं खाने एंव पीने में बच्चे,बूढ़े और सभी आसानी से खा सकते है। इन दवाओं का
कोई नुकसान नहीं है। होमियोपैथिक दवाएं दिन में कितनी बार और कितनी मात्रा में ले
इसका निर्धारण बीमारी के ऊपर निर्भर करता है।
होमियोपैथिक दवाऐं खाली पेंट मुंह साफ करके जबान पर डाल करके चूसना चाहिए, आम
तौर पर बच्चों के लिए 20 नः और सभी को 40 नः की गोली का प्रयोग करना चाहिए।
मदर टिंचर भी बीमारी के ऊपर निर्भर करता है कि किसको कितनी मात्रा में दिया
जाएं। सामान्य तौर पर यह 5-20 बूंद तक चौथाई कप पानी में दो से चार बार तक
लिया जाता है। होमियोपैथी समस्त देश के साथ-साथ इस समय लगभग 40-50 देशों में
मान्यता प्राप्त है। ये कहना गलत नहीं होगा कि होमियोपैथी एक समपूर्ण चिकित्सा
पद्धति है।
होमियोपैथी की लगभग 4000 दवाइयां है।
होमियोपैथी दवाओं का कोई साइड – इफेक्ट(नुकसान) नहीं है।
पिछले 30 सालों में होमियोपैथी का विकास ज्या़दा तेजी से हुआ है।
विश्व में हर साल होमियोपैथी के विकास में 20% का इज़ाफा हो रहा है।
इंग्लैड़ की महारानी एलीजाबेथ -2 कभी भी होमियोपैथी दवाओं के बिना यात्रा नहीं करती हैं।
भारत में लगभग सौ से अधिक होमियोपैथी मेडिकल स्कूल हैं।
भारत में होमियोपैथी के डॉक्टरों की संख्या तकरीबन 2,50,000 है।
एक सर्वे के मुताबिक भारत के 62% शहरी लोग होमियोपैथी में विश्वास करते हैं।
uttam jankari dene ke liye dhanyawad.
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