आज के भौतिकतावादी युग में हर इंसान दूसरे से आगे निकल जाना चाहता है .हम खुद को इंसान तो कह लेते है पर क्या इंसानियत को सही तरह समझ पाए है ? हम आज जिस आचरण को अपना रहे है वो तो पशु आचरण है .आज आवश्यकता है की हम प्रभु से ये प्रार्थना करे --
''किसी की आँख क़ा आंसू मेरी आँखों में आ छलके...[आगे देखे insaniyat ka dariya ]
agar aise hi bhavon se har insan bhar jaye,to duniya se dukh ka andhera hat jaye.bahut achha kaha....soti insaniyat ko jaga degi ye kavita....
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