1.11.10

पंचायती चुनाव-लोकतन्त्र या भीड़तन्त्र
अरविन्द विद्रोही

उ0प्र0 में पंचायती चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं।चार चरणों में सम्पन्न हुए पंचायती चुनावों ने लोकतन्त्र के वर्तमान स्वरूप को ही कठघरे में खडा कर दिया है।चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित चुनाव आचार संहिता की प्रतिक्षण धज्जियां उडाते हुए तमाम प्रत्याशियों ने अपनी पूॅंजी एवं शक्ति के दम-खम पर ईमानदार-कर्मठ व नेक प्रवृत्ति के सामाजिक सोच रखने वाले प्रत्याशियों को प्रारम्भिक दौर में ही नेपथ्य में धकेल दिया था।निरंकुश,धनमद व शक्तिमद में चूर तमाम प्रत्याशियों ने पंचायत चुनाव में जनप्रतिनिधि निर्वाचित होने के लिए कोई भी अनैतिक रास्ता छोडा नही।प्रलोभन का रास्ता विफल हो जाने पर विपक्षी की हत्या जैसा जघन्य कृत्य भी उ0प्र0 पंचायत चुनाव में घटित हुआ।प्रत्याशी की हत्या में शामिल नामजद आरोपी पंचायत चुनाव में प्रत्याशी बने रहे,यह स्वच्छ व निर्भीक मतदान कराने की चुनाव आयोग की घोषणा का मजाक व माखौल नहीं है तो आखिर है क्या?

जनता का प्रतिनिधि बनने के लिए व्यावसायिक व आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्तियों ने विगत 3-4 महीने बहुत ही मशक्कत की है।जिन्होंने कभी भी किसी भूखे को नही खिलाया न ही किसी प्यासे को कभी पानी पिलाया,वही लोग पंचायती चुनाव में विभिन्न पदों पर निर्वाचित होने के लिए दावतों का आयोजन प्रतिदिन करते रहे।शराब की रिकार्ड तोड बिक्री चुनाव में शराब के अन्धाधुन्ध इस्तेमाल का प्रत्यक्ष प्रमाण है।उपहार के रूप में साड़ी,कपड़ा के साथ-साथ नकदी ने मतदाताओं के आंखों पर व्यक्तिगत स्वार्थ व धनलोलुपता की पट्टी बांध दी थी।

चुनाव आचार संहिता का माखौल उडाते हुए पूॅंजी के दम पर चुनाव लड़ रहे आपराधिक व गैर सामाजिक प्रवृत्ति के प्रत्याशियों ने शराब बांट कर व शराब पिला कर मतदाताओं का समर्थन जुटाने व मत हासिल करने पर ज्यादा जोर दिया।यह अनैतिक तरीका काफी असरदायक व फायदेमंद साबित हुआ।इस अनैतिक कृत्य के खिलाफ गिने-चुने ईमानदार सामाजिक प्रत्याशियों ने जनता के बीच आवाज उठानी प्रारम्भ की।जनता के एक बडे तबके का रूझान भी शराब-खेरी के खिलाफ बनना प्रारम्भ हुआ।बहुतायत में मतदाताओं ने शराबखोरी व पैसा वितरण जैसा घृणित अनैतिक काम करने वालों को चुनावों में शिकस्त देने के लिए ईमानदार व सशक्त प्रत्याशी की तलाश भी प्रारम्भ की।इन परिस्थितियों को भंापकर व्यावसायिक क्षेत्र के तमाम प्रत्याशियों ने भी सामाजिक-राजनैतिक ईमानदार प्रत्याशियों के वक्तव्यों को दोहराना व जनता के बीच कहना शुरू कर दिया।साथ ही साथ उन्होने एक कुशल व्यावसायी की भांति अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए शराब पिलाने में पैसा न खर्च करके जगह-जगह हैण्डपम्प लगवाने,मरम्मत करवाने,मंदिर-मस्जिद का सौन्दर्यीकरण करवाने,क्षेत्र के बीमार लोगों को आर्थिक सहायता करने,क्षेत्र के मृत व्यक्तियों के अंत्येष्टि संस्कार में शामिल होकर आर्थिक सहायता करना आदि जैसा आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का काम मरना प्रारम्भ किया।क्षेत्र की एक आबादी पैसे की ताकत पर शराब,साड़ी व नकदी के जरिए बहक गई तथा धार्मिक व व्यक्तिगत लाभ के दृष्टिकोण से तमाम मतदाता व्यावसायिक प्रत्याशियों की तरफ चले गये।मतदाताओं का बड़ा तबका जातिवाद में फंसा रहा।जातिवाद,तात्कालिक लाभ,शराबखोरी,धार्मिक उन्माद,प्रलोभन व आतंक के जाल में फंस कर आदर्श चुनाव संहिता ने दम तोड़ दिया और तमाम शिकायतों व प्रत्यक्ष प्रमाणों के पश्चात भी चुनाव आयोग मौन रहा।

सामाजिक-राजनैतिक आचरण को नकारते हुए चुनाव जीतने की लालसा में जिस प्रकार का आचरण बहुतायत में प्रत्याशियों ने किया और उनके अनैतिक आचरण के प्रभाव में आकर जाति-धर्म के फेर में पड़कर,धन वितरण,शराब खोरी,व्यक्तिगत तात्कालिक लाभ के फेर में पड़कर जो समर्थन व मत देने नहीं अपितु बेचने का कार्य जाने-अनजाने मतदाताओं ने किया है,उसका परिणाम मतगणना के पूर्व ही सामने आ चुका है।सामाजिक-राजनैतिक चरित्र के प्रत्याशियों की बहुतायत में हार व धनवान,व्यावसायिक व आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की जीत सुनिश्चित मानी जा रही है। सम्पन्न हुए पंचायती चुनाव ने सही अर्थों में साबित कर दिया है कि लोकतनत्र अब भीड़तन्त्र में बदल गया,जहां आदर्श-शुचिता-सदाचरण-ईमानदारी-नेकी जैसी बातें बेमानी हैं।

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