राजकुमार साहू जांजगीर, छत्तीसगढ़
ऐसा लगता है, जैसे कांग्रेस महासचिव तथा मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को सुर्खियों में बने रहना ही रास आता है, तभी तो वे मीडिया में आए दिन कुछ ऐसे बयान दे जाते हैं, जिससे एक नई बहस छिड़ जाती है। मीडिया को भी चटपटे मसालेदार खबरों की तलाश रहती है, लिहाजा दिग्विजय सिंह के बयानों को इतनी तरजीह दी जाती है। उनके बयानों के कारण आए दिन राजनीतिक गलियारे का तापमान अचानक बढ़ जाता है और माहौल ऐसा गरमा जाता है, इसके बाद तो कांग्रेस का पूरा कुनबा भी सकते में आ जाता है। उत्तप्रदेश प्रभारी होने के नाते वहां की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती के खिलाफ जुबानी आग उगली जाती है तो कभी ऐसा बयान दे जाते हैं, जिससे लगता है कि वे विपक्षी पार्टी के खासे हमदर्द हैं। पिछले दिनों वे जब छत्तीसगढ़ के बिलासपुर क्षेत्र के दौरे पर आए तो पहले यहां उन्होंने राज्य की भाजपा सरकार के विकास कार्यों की तारीफ की और बाद में अपनी ही बातों से पलट गए। वैसे भी वे इस मामले में माहिर माने जाते हैं, क्योंकि हर विवादास्पद बयान के बाद उससे कैसा बचा जाए, उन्हें बखूबी आता है। हालांकि कई बार हालात बिगड़ जाते हैं और इसका नुकसान वे खुद तो उठाते ही हैं, साथ ही कांग्रेस भी लपेटे में आ जाती है, क्योंकि कोई भी उट-पटांग बयान देने के बाद विपक्षियों के निशाने में ये दोनों होते हैं। हाल ही में कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने अपने बयान में जो कहा, उससे कई तरह के सवाल खड़े हो गए हैं। 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए हेमंत करकरे को लेकर दो बरस बाद, दिग्विजय सिंह ने यह कहा कि उन्हें हिन्दू संगठनों से खतरा था और उन्हें धमकियां दी जा रही थीं। उनका यहां तक कहना था कि घटना के पहले हेमंत करकरे से उनकी बात हुई थी। मीडिया में उनका बयान आने के बाद राजनीतिक गलियारे में इस तरह माहौल गरमाया, जिससे कई प्रश्न खड़े हो गए। यहां पहला सवाल तो यही है कि आखिर दो बरस बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने इस तरह खुलासा क्यों किया ? इससे पहले जांच एजेंसियों को भी उन्होंने क्यों यह सारी बातें नहीं बताई ? आज कौन सी मजबूरी आन पड़ी कि उन्होंने इस तरह की बातें कही ? राजनीति के गलियारे में इस बात की चर्चा है कि कहीं न कहीं, विपक्षी पार्टियों का ध्यान बंटाने के लिए ऐसा बयान दिया गया है, क्योंकि केन्द्र की यूपीए सरकार के जी का जंजाल, इन दिनों कई तरह के घोटालों के कारण बना हुआ है। इसी के चलते कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह, जो बयानों में सुर्खियों में बने रहने के आदी हैं, उन्होंने ऐसा कुछ कह दिया, जिसके बाद विपक्षी नेताओं का ध्यान घोटालों के मामलों से हट गया, क्योंकि मीडिया में कई दिनों तक यह बहस चलती रही कि क्यों दिग्गी राजा ने ऐसा बयान दिया है ? बयान आने के बाद तात्कालिक तौर पर कांग्रेस ने बयान से किनारा कर लिया और कहा गया कि वह बयान दिग्विजय सिंह का व्यक्तिगत है। यहां यक्ष प्रश्न यही है कि कांग्रेस से क्या उनका महासचिव अलग है ? फिलहाल इस मामले में कांग्रेस के बड़े नेताओं ने चुप्पी साध रखी है और यही कोशिश की जा रही है कि इस बयान से कांग्रेस को कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन इस बयान के राजनीतिक अर्थ भी तमाम तरह के निकाले जा रहे हैं और उनकी मंशा भी सीधे तौर पर समझ आ रही है। दिग्विजय सिंह के बयान के बाद शहीद हेमंत करकरे की पत्नी ने भी इसे केवल सुर्खियां बटोरने वाली करतूत ही करार दिया और यह भी कहा कि उनके पति आतंकवादियों के निशाने पर आकर शहीद हुए हैं, इसमें ऐसे किसी भी संगठन का हाथ नहीं है, जैसा दिग्विजय सिंह कह रहे हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि बयान के कुछ दिनों बाद एक बार फिर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने मीडिया में अपना पक्ष रखते हुए यहां तक कह दिया कि उनके पास पूरे सुबूत हैं और उन्होंने जो कहा है, उस पर अडिग हैं। यहां भी प्रमुख रूप से एक ही सवाल खड़ा है, जिसका जवाब दिग्गी राजा नहीं दे रहे हैं और वह है कि वे इतने दिनों चुप क्यों रहे ? वे हर तरह का खुलासा तो कर रहे हैं, मगर इतने दिनों तक चुप रहने की उनकी क्या मजबूरी थी ? वे किसके कहने पर अपनी जुबान बंद रखे थे और आज क्यों वे अपनी जुबान खोले हैं ?
ऐसे कई सवाल हैं, जिसके जवाब आना बाकी है। जनता भी देख रही है कि कैसे बार-बार कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह अनाप-शनाप बयान दे जाते हैं और देश की राजनीति में एक नया बखेड़ा खड़ा हो जाता है। कांग्रेस के कुनबे में दिग्विजय सिंह का एक अहम स्थान है, यही कारण है कि मीडिया भी उनकी जुबान को पूरी तवज्जो देता है और राजनीतिक सरगर्मी तेज करने में मीडिया भी भला कहां पीछे रहने वाला है। मीडिया भी राजनीतिक आग को हर तरह से हवा देने का काम करता है, क्योंकि सवाल खबर का ही नहीं है, बल्कि टीआरपी का भी है। जनता तक खबर पहुंचाने के नाम पर मीडिया भी यह सोचने की कोशिश नहीं करता कि कौन सी बातों को प्रमुखता दी जाए। हालांकि जब खबर पर व्यक्ति हावी हो जाता है, तो उसकी मूल बातें गौण हो जाती हैं। इन सब बातों का कांग्रेस महासचिव कैसे लाभ उठाने पीछे रह सकते हैं और होता वही है, जो अब तक होता आ रहा है। बयान के बाद बयान का दौर चल ही रहा है और राजनीतिक माहौल में गरमाहट कायम है।
कुछ महीनों पहले कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी, मध्यप्रदेश के दौरे पर आए थे और यहां उन्होंने आरएसएस की तुलना आतंकवादी संगठन सिमी से कर दी थी। एक बात तो है कि राहुल गांधी की जुबान से कभी इस तरह के बयान नहीं आए थे, लेकिन क्यों उनके द्वारा ऐसा कहा गया ? इस दौरान राजनीतिक हल्कों में इस बात की जोरदार चर्चा रही कि यह सब बातें दिग्विजय सिंह के कहे अनुसार कही गई। इस बयान के बाद भाजपा और आरएसएस ने पूरे देश भर में प्रदर्शन किया और विरोध दर्ज कराया। यहां भी सवाल यही है कि राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश में ही आकर ऐसी बातें क्यों की थीं ? वैसे राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह उत्तरप्रदेश में एक साथ जुटकर पार्टी को मजबूत करने लगे हैं और अधिकतर दौरे पर वे साथ होते हैं, क्योंकि दिग्गी उत्तरप्रदेश के कांग्रेस प्रभारी हैं। मध्यप्रदेश में दस बरसों तक सत्ता में भी दिग्विजय सिंह, मुख्यमंत्री के तौर पर रह चुके हैं।
एक बात तो है कि आज की राजनीति के हालात पूरी तरह बिगड़ गए हैं और नेताओं में जुबानी जंग ही चल रही है। कभी कोई पार्टी के नेता, दूसरी पार्टी के नेता के खिलाफ ऐसा कह जाते हैं कि दूसरे पक्ष से भी उसी तरह के बयान सामने आते हैं। यह सिलसिला इसी तरह चलता रहता है। इसे किसी भी सूरत में इन सुर्खियां बटोरने वाले बयानों को बेहतर नहीं कहा जा सकता। यही कारण है कि दिग्विजय सिंह के दो बरसों बाद आए बयान को लेकर तरह-तरह कयास लगाए जा रहे हैं और अब यह बहस का मुद्दा बन गया है कि नेताओं की जुबान पर आ रहे ऐसे बयानों पर कैसे लगाम लगाया जाए।
ऐसे कई सवाल हैं, जिसके जवाब आना बाकी है। जनता भी देख रही है कि कैसे बार-बार कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह अनाप-शनाप बयान दे जाते हैं और देश की राजनीति में एक नया बखेड़ा खड़ा हो जाता है। कांग्रेस के कुनबे में दिग्विजय सिंह का एक अहम स्थान है, यही कारण है कि मीडिया भी उनकी जुबान को पूरी तवज्जो देता है और राजनीतिक सरगर्मी तेज करने में मीडिया भी भला कहां पीछे रहने वाला है। मीडिया भी राजनीतिक आग को हर तरह से हवा देने का काम करता है, क्योंकि सवाल खबर का ही नहीं है, बल्कि टीआरपी का भी है। जनता तक खबर पहुंचाने के नाम पर मीडिया भी यह सोचने की कोशिश नहीं करता कि कौन सी बातों को प्रमुखता दी जाए। हालांकि जब खबर पर व्यक्ति हावी हो जाता है, तो उसकी मूल बातें गौण हो जाती हैं। इन सब बातों का कांग्रेस महासचिव कैसे लाभ उठाने पीछे रह सकते हैं और होता वही है, जो अब तक होता आ रहा है। बयान के बाद बयान का दौर चल ही रहा है और राजनीतिक माहौल में गरमाहट कायम है।
कुछ महीनों पहले कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी, मध्यप्रदेश के दौरे पर आए थे और यहां उन्होंने आरएसएस की तुलना आतंकवादी संगठन सिमी से कर दी थी। एक बात तो है कि राहुल गांधी की जुबान से कभी इस तरह के बयान नहीं आए थे, लेकिन क्यों उनके द्वारा ऐसा कहा गया ? इस दौरान राजनीतिक हल्कों में इस बात की जोरदार चर्चा रही कि यह सब बातें दिग्विजय सिंह के कहे अनुसार कही गई। इस बयान के बाद भाजपा और आरएसएस ने पूरे देश भर में प्रदर्शन किया और विरोध दर्ज कराया। यहां भी सवाल यही है कि राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश में ही आकर ऐसी बातें क्यों की थीं ? वैसे राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह उत्तरप्रदेश में एक साथ जुटकर पार्टी को मजबूत करने लगे हैं और अधिकतर दौरे पर वे साथ होते हैं, क्योंकि दिग्गी उत्तरप्रदेश के कांग्रेस प्रभारी हैं। मध्यप्रदेश में दस बरसों तक सत्ता में भी दिग्विजय सिंह, मुख्यमंत्री के तौर पर रह चुके हैं।
एक बात तो है कि आज की राजनीति के हालात पूरी तरह बिगड़ गए हैं और नेताओं में जुबानी जंग ही चल रही है। कभी कोई पार्टी के नेता, दूसरी पार्टी के नेता के खिलाफ ऐसा कह जाते हैं कि दूसरे पक्ष से भी उसी तरह के बयान सामने आते हैं। यह सिलसिला इसी तरह चलता रहता है। इसे किसी भी सूरत में इन सुर्खियां बटोरने वाले बयानों को बेहतर नहीं कहा जा सकता। यही कारण है कि दिग्विजय सिंह के दो बरसों बाद आए बयान को लेकर तरह-तरह कयास लगाए जा रहे हैं और अब यह बहस का मुद्दा बन गया है कि नेताओं की जुबान पर आ रहे ऐसे बयानों पर कैसे लगाम लगाया जाए।
aise byanon ke prati udaseenta dikhakar hi lagam lagai ja sakti hai .sarthak aalekh!
ReplyDeleteशालिनी जी से सहमत हूँ, किन्तु चुपचाप भी तो नहीँ बैठा जा सकता।
ReplyDeletebhai ab kya kare ?in netaon ke bayanon ne to bhramit kar dala hai .aapka aalekh achchha laga .badhai .mere blog ''vikhyat''par aapka hardik swagat hai .
ReplyDelete