25.12.10

आंसू ही मेरा अभ्यंतर (क्रिसमस पर , पीड़ित मानवता के लिए )

आंसू ही मेरा अभ्यंतर ,
स्वप्न व्यर्थ , भय , हाय! निरंतर।
धीरे -धीरे सहला देना , आश्वासन से बहला देना ;
समय न तुझको मिल पाए तो हरकारों से कहला देना
गीली पथरीली सड़कों पर ।
स्वप्न व्यर्थ , भय , हाय ! निरंतर ।
कितने नभ के तारों को गिन
रातें काटीं हैं , काटे दिन ;
कितनी डांटें , कितने कांटे
बन गए मेरे परिमल पलछिन ;
उम्र गंवाई खोकर सोकर
स्वप्न व्यर्थ ,भय , हाय! निरंतर ।
आंसू ही मेरा अभ्यंतर ।

8 comments:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    एक आत्‍मचेतना कलाकार

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  3. व्यथा की सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  4. DHANYAWAAD! Manoj kumar ji aur Anupama Pathak ji .

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  5. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

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