आंसू ही मेरा अभ्यंतर ,
स्वप्न व्यर्थ , भय , हाय! निरंतर।
धीरे -धीरे सहला देना , आश्वासन से बहला देना ;
समय न तुझको मिल पाए तो हरकारों से कहला देना
गीली पथरीली सड़कों पर ।
स्वप्न व्यर्थ , भय , हाय ! निरंतर ।
कितने नभ के तारों को गिन
रातें काटीं हैं , काटे दिन ;
कितनी डांटें , कितने कांटे
बन गए मेरे परिमल पलछिन ;
उम्र गंवाई खोकर सोकर
स्वप्न व्यर्थ ,भय , हाय! निरंतर ।
आंसू ही मेरा अभ्यंतर ।
सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeletedhanyawaad, wandanaji!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteएक आत्मचेतना कलाकार
व्यथा की सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ"
ReplyDeleteDHANYAWAAD! Manoj kumar ji aur Anupama Pathak ji .
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeletedhanyawaad,Kailash Sharmaji !
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