27.12.10

हमें क्या चाहिए

हमें क्या चाहिए.......................

सागर कहो या समंदर ,समंदर तो इक ही हे परन्तु कोई इसमे से मोती माणिक्य ढूंढ़ लाता हे तो कोई सिर्फ मछली पाकर ही संतुष्ट हो जाता हे और कोई -कोई तो केवल अपने गीले पैर लिए ही बहर आ जाता हे और सागर की लहरों के आननद में खो जाता हे.ठीक इसी तरह मानव मन हे इसकी अथाह गहराई किसी सागर की तरह हे .कोई अपने मन रूपी सागर की अथाह गहराई में गोता लगाकर ईश्वररूपी मोती माणिक्य पा लेता हे तो कोई कुछ गहराई तक जाकर प्रभु भक्ति रूपी मछली पाकर ही प्रसन्न ,संतुष्ट हो जाते हे .कुछ लोग तो ऐसे भी हें जो अपने मन के इस उथले पानी में पेर गीले करके ही बाहर आ जाते हे अर्थात मंदिर -दिवाले में प्रभु दर्शन कर ही संतुष्ट हो जाते हे.हमें क्या चाहिए?मोती? माणिक्य? या फिर हम भी सिर्फ पानी छूकर ही संतुष्ट हो जाना चाहते हे ? या फिर डूब कर गहराई तक, पाना चाहते हे मोती माणिक्य? ये तो हमारी इक्छाशक्ति पर निर्भर करता हे की हमें क्या चाहिए और उसे पाने के लिए हम क्या कर सकते हे ।
संगीता मोदी "शमा"

2 comments:

  1. या फिर डूब कर गहराई तक, पाना चाहते हे मोती माणिक्य? ये तो हमारी इक्छाशक्ति पर निर्भर करता हे की हमें क्या चाहिए और उसे पाने के लिए हम क्या कर सकते हे ।.......bahut khub....samgeeta ji

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