22.12.10

व्यवस्था परिवर्तन से ही आयेगी नव वर्ष में खुशियॉं

व्यवस्था परिवर्तन से ही आयेगी नव वर्ष में खुशियॉं

अरविन्द विद्रोही

मानव सभ्यता का एक और वर्ष व्यतीत हो गया ।पुरानी यादें, कडुवाहटें जेहन में बसाये,नव वर्ष के स्वागत में पलक-पावंडे बिछाये,हर्षोल्लास में मनुष्य आशामयी जीवन की उम्मीद में,जीने की तमन्ना अपने ह्दय में संजोये है। एक-दूसरे को नव वर्ष मंगलमय हो का संदेश देना भी आज महज एक औपचारिकता रूपी परम्परा बन कर रही गई है ।पुरानी बातों को भूलने की अद्भुत क्षमता वाला मनुष्य सिर्फ और सिर्फ आशा के सहारे वर्ष 2011 में अपने जीवन स्तर में तरक्की के सपने देख सकता है।हो सकता है कि वर्ष 2010 किसी पूॅंजीपति के लिए,किसी व्यावसायिक घराने के लिए मंगलकारी रहा हो,सम्भव है कि,किसी राजनैतिक दल या राजनेता को वर्ष 2010 में तरक्की हासिल हुई हो,विकास का लाभ मिला हो ।पर यह ध्रुव सत्य है कि आम नागरिक तो वर्ष 2010 में भी सिर्फ ठगा ही गया है ।वर्ष 2010 में जो भी उम्मीद का,तरक्की का ख्वाब आम नागरिक की ऑंखों में आया,मॅंहगाई की बेलगाम गति और राजनेताओं-नौकरशाहों के गैरजिम्मेदाराना रवैये ने चकनाचूर कर दिया।

मध्यम वर्ग इस आशा और विश्वास के सहारे कि हो सकता है कि वर्ष 2011 में हमारी जीवन यापन की दशा सुधरे,हमारा आत्मविकास हो,उम्मीद की तरंगों पर सवार होकर वर्ष 2011 का स्वागत अपने घर में टेलीविजन में प्रसारित होने वाले रंगारंग,ऐश्वर्य व वैभवशाली जीवन के प्रस्तुतीकरण युक्त कार्यक्रमों व अप्सरा सरीखी युवतियों के अर्धनग्न देह प्रदर्शन को देखकर मन ही मन क्षणिक प्रसन्नता की अनुभूति करेगा ।अपनी प्रसन्नता का शोर गुल मचा कर इजहार भी करेगा। यह जो जगह-जगह नगरों,महानगरों में नव वर्ष 2011 का स्वागतपूर्ण उल्लासित वातावरण बनेगा , यह किसी दुखियारे,गरीब,बेबस,मजदूर,किसान,बेसहारा की झोपड़ी में उम्मीद की एक भी किरण नहीं जगा पायेगा ।पॅंूजीवाद का घिनौना ताण्डव ऐसे ही अनेक मौकों पर देखने को मिलता है ।शराब की नदियां बहा दी जाती हैं,ऐशो-आराम व भोगविलास का शर्मनाक नग्न प्रर्दशन विभिन्न होटलों में प्रायोजित होता है ।प्रत्येक वर्ष धन के मद में चूर पूॅंजीपति विचारों के वाहक गणों द्वारा गरीबी का मजाक उड़ाते हुए लाखों-करोंड़ों रूपया नव वर्ष के स्वागत के बहाने,पानी की तरह सिर्फ मौज-मस्ती के लिए रातो-रात बहा दिया जाता है ।एक तरफ भूख से बेहाल,दूध को तरसते नौनिहाल और दूसरी तरफ नाना प्रकार के व्यंजनों से परिपूर्ण थाल व जी भर को पीने को उपलब्ध शराब- यह सामाजिक आर्थिक असमानता मानव को कहॉं ले जायेगी?निर्लज्जता की हदों को तोडते हुए सामूहिक नृत्यों का,जोड़ा नृत्यों का,पानी में भीगते हुए नृत्यों का आयोजन अश्लील धुनों के बीच मदहोषी के आलम में प्रतिवर्ष आयोजित हो रहा है ।यह जो पूॅंजीवाद का वीभत्स क्रूर प्रदर्शन गरीबों-मेहनतकशों का मजाक उड़ाते हुए जारी है,उससे किसी को स्थायी प्रसन्नता प्राप्त हो या न हो,गरीब की आत्मा को कष्ट जरूर पहुॅंचता है।

काश,अब नव वर्ष के स्वागत में मानवता का भी ध्यान रखना प्रारम्भ हो ।कुछ सार्थक पहल हमारे द्वारा किये जा सकते हैं ।हम अपने पड़ोसी के साथ सम्बन्ध सुधार सकते हैं,किसी भूखे को खाना खिला कर,भीषण सर्द मौसम में जरूरतमन्दों को गर्म वस्त्र व कम्बल भेंट देकर भी हम नव वर्ष की खुशियॉं आपस में बॉंट सकते हैं।हम मेहनतकशों के साथ,अन्नदाता किसानों के साथ बैठ कर उनके दुख-दर्द को समझने की,उसे कम करने की एक साझा कोशिश नव वर्ष में कर सकते हैं।आज हमें अपनी सोचने-समझनें की क्षमता को फिर से जगाना पड़ेगा।हमें अपनी तरक्की के रास्ते निःसन्देह पास-पड़ोस व देश-समाज की तरक्की से जोड़ कर देखने पड़ेंगें।हमें नव वर्ष में व्यक्तिगत हितों की बलि,समाज व देश हित में चढ़ाने की पुनः शुरूआत करनी चाहिए।मानव सभ्यता की आधी आबादी स्त्री आज कई चुनौतियों से बेजार है।स्त्री बढ़ती पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में असहाय व असहज होती जा रही है।शिक्षा प्राप्त स्त्री नौकरी,व्यवसाय की जिम्मेदारी के साथ-साथ घर गृहस्थी के दायित्व निर्वाहन को विवश है।कस्बों व ग्रामीण अंचलों की स्त्री मंहगाई के दानव के सम्मुख सीमित आय में मन मसोस कर अपने परिवार का मान-सम्मान व रसोईं के चूल्हे की आग को सुरक्षित रखने की जद्दोजहद में लगी रहती है ।इस दौर के स्कूली छात्र-छात्राओं की अपनी अलग ही कहानी है,जिस पर ध्यान देना अभिभावकों के साथ समाज का भी दायित्व है।समुचित मार्गदर्शन,निगरानी व नैतिक मूल्यों के अभाव में युवा वर्ग पूरे वर्ष पार्कों,सिनेमा घरों,चौराहों तथा रेस्तरां में मटरगश्ती करता देखा जा सकता है ।पैसा कमाने की फेर में,पूॅंजीवाद के चक्रव्यूह में फॅंसा इन्सान अपने परिवार के साथ समय नहीं गुजार पा रहा है ।उसे अपने परिवार के विखण्डन व नैतिक पतन की तरफ देखने की फुर्सत भी नहीं है ।समाज की प्राथमिक इकाई के विखण्डन का दंश सम्पूर्ण समाज को भुगतना पड़ रहा है ।नव वर्ष में परिवार की तरफ ध्यान देना यदि प्रारम्भ हो तो अवश्य ही मंगलकारी वातावरण व परिस्थितियां उत्पन्न होंगीं।

नव वर्ष का स्वागत अतिरेक उत्साह में कर रहे युवा वर्ग का आज के परिवेश में क्या दायित्व बनता है,इसका इस वर्ग को न तो बोध है और न ही इन्हें बोध कराने वाला कोई मार्गदर्शक ।इतिहास प्रत्येक क्षण का गवाह रहता है ।काल की गति निर्बाध रहती है ।वर्ष 2010 की विदाई की बेला और 2011 के इस आगमन के मौके पर मन क्लान्त है ।बीते वर्ष मानवता को शर्मसार करने वाले जालिमों के नाम रहे। वे जालिम आज भी हमारा ही राशन पानी खा रहें हैं और हमारे लोग भूखे पेट सो रहें हैं ।सरकारों की अदूरदर्शिता,अकर्मण्यता,दृढ़ इच्छा शक्ति के अभाव के चलते पूरा देश व देशवासी आतंक का शिकार रहे ।आज भी आतंकवाद का खौफ़ हमारे जेहन में सवार रहता है ।राजनैतिक दलों की आपसी प्रतिद्वन्दिता,मानवाधिकार संगठनों की अनावश्यक चिल्ल-पों,के चलते आतंक के पैरोकारों का गुट मानवता और देश की सुरक्षा पर भारी रहे ।जरा याद करिए-स्वतन्त्रता संग्राम में बहादुर शाह जफर को आगे कर के,पूरे देश में अंग्रेजी हुकूमत से युद्ध किया गया ।युद्ध का मोर्चा नौजवानों ने लिया ।मंगल पाण्डे, तात्या टोपे,रानी लक्ष्मी बाई,बलभद्रसिंह चहलारी,उदा देवी,अवन्तीबाई आदि का बलिदान हमारे लिए ही था ।कालांतर में बाल-पाल-लाल की तिगड़ी के साथ महामानव महात्मा गॉंधी,सावरकर बंधुओं व चाफेकर बंधुओं के अदम्य साहस,सुभाष की सेना,चन्द्रशेखर आजाद,सरदार भगतसिंह,राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी,अशफ़ाक उल्ला खॉं,रामप्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल,रानी गिडालू,प्रीतिलता वादेदार,अरूणा आसफ अली आदि की क्रंातिकारी टुकड़ियों ने अपना सर्वस्व बलिदान करके गुलामी की बेड़ियां काट डाली। महात्मा गॉंधी के विशाल नेतृत्व ने,क्रान्तिकारियों के अदम्य साहस व सर्वस्व बलिदान की उच्च परम्परा ने,उस ब्रितानिया हुकूमत को,जिसके राज्य में कभी भी सूर्य अस्त नहीं होता था,भारत की पवित्र भूमि से भागने पर विवश कर दिया था ।यह सम्भव हुआ- देशभक्तों के जुनून से,वन्देमात्रम के ओज से,बलिदानों तथा दृढ़ संकल्प से।देश के प्रति समर्पण की भावना ने भारत के युवा वर्ग की एक अमिट पहचान विश्व पटल पर स्थापित कर दी।फिर आया 1977,आजाद भारत में पुनः एक बुजुर्ग कराह रही जनता का दुःख हरने,अपने बीमार शरीर की परवाह करे बगैर, क्रान्ति की मशाल लेकर घूमने लगा।जय प्रकाश नारायण की अगुवाई में समूचे भारत में तरूणाई ने अंगड़ाई लेकर भ्रष्ट सरकारों को उखाड़ फेंका।‘‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ‘‘के ओजपूर्ण आह्वान ने युवाओं के साथ-साथ समूचे जनमानस में उत्साह तथा सरकारों में भय भर दिया था।दुर्भाग्यवश जे0पी0 बाबू द्वारा छेड़ी गई व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई सिर्फ सत्ता परिवर्तन बनकर रह गई।1977 के आन्दोलन से निकले नेताओं ने व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई छोड़ कर सत्ता में चिपके रहना अंगीकार कर लिया।महात्मा गॉंधी के साथ लोहिया-जे0पी0 की आत्मा भी अपने इन छद्म अनुयायी नेताओं को देख कर, कृत्यों को देखकर अवश्य ही रोती होगी।आज इनका नाम व सिद्धान्त बेच कर,मूर्ति लगाकर,समिति बनाकर धन एकत्र कर,अपनी व्यवस्था व सत्ता व्यापार में लगे नेताओं का रवैया जनसमस्या से लेकर देश की सुरक्षा तक के मसलों पर हीला-हवाली पूर्ण है।आज जो युवाओं को सही नेतृत्व न देने का अपराध बुजुर्ग नेता कर रहें हैं,उस पर भी काल की नजर है ।इतिहास साक्षी रहेगा कि महात्मा गॉंधी,अम्बेडकर,भगतसिंह,लोहिया व जय प्रकाश के देश में युवा नेतृत्व के अभाव का जिम्मेदार कौन है?हमारी नजरों में तो आज जो भी 45 वर्ष से अधिक उम्र के वे व्यक्ति जो सामाजिक संगठन चलाते हैं, साहित्यिक मण्डली के हैं,मानवाधिकार संगठन के हैं,नौकरशाह हैं,व्यापारी नेता हैं,किसान नेता हैं,पत्रकार हैं,बुद्धिजीवी हैं सभी को अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन इस वर्ष 2011 में निभाना प्रारम्भ करना ही चाहिए।क्या इन्होंने एक भी नौजवान को देश प्रेम व देश की सुरक्षा के सवाल पर समझाया?क्या इन्होंने किसी किशोर को समाजसेवी या देशभक्त के रूप में तैयार किया?यदि हॉं तो आप वंदनीय है,नहीं तो धिक्कार है आपके जीवन पर।अब प्रण करके नव वर्ष 2011 में अपने इस महती दायित्व को पूर्ण करने की दिशा में प्रयास करें।

एक विषय सोचनीय है कि क्या अब ऐसा वक्त आ गया है कि युवा वर्ग अपना नेतृत्व स्वयं करे।?बुजुर्ग नेता तो सिर्फ सियासी गोष्ठी करेंगें।युवा वर्ग को तो इन राजनेताओं ने अपना,अपने भाई-पुत्र-सगे सम्बन्धियों,चाटुकारों का जय कारा लगवाने,फूल माला पहनवाने तथा स्वागत और हर्ष के बहाने किन्नरों सा उत्साह प्रदर्शन व नृत्य करवाने के उपयोग के लिए समझ रखा है।अच्छा तो यह ही होगा कि नव वर्ष 2011 में हम मानव मात्र की भलाई के बारे में कार्य करना प्रारम्भ करें ।एक देश एक प्राण की भावना का स्थान सिर्फ स्वयं हित की सोच ने ले लिया है,इस नव वर्ष में हमें इसे बदलना चाहिए।अब तो युवाओं को न तो गॉंधी मिलेंगें और न जयप्रकाश।अब तो युवा वर्ग को सरदार भगत सिंह और अमर क्रान्तिकारियों की क्रान्ति राह पर चलकर अपना नेतृत्व स्वयं में तय करना होगा।जनता की वास्तविक लड़ाई,किसान मजदूर के हक की लड़ाई के क्रान्तिकारी कार्यक्रम को तेज करना पडे़गा।यह तो तय ही है कि व्यवस्था परिवर्तन के बगैर किसी भी जनसमस्या का हल सम्भव नहीं है। आइये,व्यापक जनहित में नव वर्ष 2011 में व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई को तेज किया जाये तभी नव वर्ष के मंगलमय होने की सम्भावना है।



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