अटल बिहारी वाजपेयी की ' मेरी इक्यावन कवितायें ' को मैंने पढ़ा है और उनमें एक बहुआयामी काव्यप्रतिभा के दर्शन किया है । परन्तु , 'रग-रग हिन्दू मेरा परिचय ' तो जैसे उनके काव्यहृदय का लहू हो । बाद के दिनों में उनकी राजनैतिक सावधानी ने उनकी कविता का प्रवाह छीन लिया और अपने आपको 'अभिनव चाणक्य' मानने वाले वाजपेयी कुछ वैसी कवितांयें लिखीं जिनका उद्देश्य राजनैतिक था जैसे , 'जंग न होने देंगे ' ।
जब मेरी प्रेमांजलि छपी तो उसकी एक प्रति मैंने श्री वाजपेयी को भेजी , उस समय वो विपक्ष के नेता थे । तुरत उत्तर आया और टंकित उत्तर के नीचे स्याही से वाजपेयी ने हस्ताक्षर किये थे ।
इसके बाद मेरा एक अंगरेजी उपयास ' दि रिबर्थ ऑब महात्मा ' छपा । इसमें मैंने महात्मा गाँधी को अपने अगले जन्म में जाति-आधारित आरक्षण के खिलाफ लड़ता हुआ दिखाया । मामला विवादास्पद तो था ही , इस पुस्तक में मैंने कुछ प्रश्न वाजपेयी को भेजे थे । वाजपेयी ने संभवतः राजनैतिक कारणों से उसका उत्तर नहीं दिया पर लालकिला से होने वाले अपने भाषण में उन्होंने यह कहा की गरीब ब्राह्मण ने किसी का क्या बिगाड़ा है , आशय की वह आर्थिक लाभ पाने से क्यों वंचित है ।
मेरी एक पुस्तक 'गोवार्नंस एंड किन्गशिप इन द भ्यूज ऑब कालिदास एंड विलियम शेक्शपीयर' प्रकाशित हुयी । मुझे लगा अब वाजपेयी शायद कुछ पढ़ते नहीं होंगे । अतः उन्हें मैंने वह पुस्तक नहीं भेजी । हाँ , डॉक्टर मनमोहन सिंह और अडवानी जी को वह पुस्तक मैंने भेजी । प्रत्युत्तर उनके सचिवों द्वारा ही मिले । क्या विद्वानों द्वारा प्रशंशा प्राप्त उस पुस्तक के लेखक के लिए उनके पास व्यय करने को कोई पल नहीं था ।
वाजपेयी की याद आयी । कविता और वह संवेदनशील हृदय !
लगता है यही कहूं 'तुम जियो हजारों साल .......... । '
aalekh pasand aaya sath hi ek kavi aur samvedansheel hriday ko aapke dwara sahi samman diya gaya aise logon ke liye aap hi kya sabhi kahenge"TUM jiyo HAZARON SAAL".
ReplyDeletedhanyawaad Shaliniji, aapki soch aur aapke shabd bade pyaare lage, Vajpayee ke sapnon ko poora karne kee jimmewaari ab hamaaree aur aapki hai.
ReplyDeleteis samkalp ke bina badhaayiyan adhoori hain .