रात के अंधेरे में ,
क्या क्या सोचता जाता हूँ ,
कभी लगता है सब ख़त्म हो गया ,
फिर आशा की एक नयी किरण ,
आके कानो में कह जाती है ,
जिए जा , जिए जा ,
अभी तो इस संसार में ,
बहुत कुछ करना बाक़ी है .
तभी किसे कोने से एक विचार जन्मता है ,
मरने के बाद कौन फूंकेगा तुझे ,
अपना कोई सगा ना होने की दशा में शायद ,
नगर निगम या और कोई स्वयंसेवी संस्था ,
तेरी लाश उठा के अंतिम संस्कार ना भी करेगी ,
"" तो किसी थाने का सिपाही ,
उठवा के नदी में तो डलवा ही देगा ,""
चिंता मत कर अभी आज कोई साथ दे ना दे ,
मुर्दे के नाम पर कफ़न देने वालों की कमी नहीं इस देश में .
इसलिए बस आज जिए जा------ जिए जा ,
कल की चिंता को भुला के , बस जिए --- जा --जिए जा
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