30.12.10

किसी थाने का सिपाही , उठवा के नदी में तो डलवा ही देगा ,""

कैसा है ये जिंदगी का सफ़र ,
रात के अंधेरे में , 
क्या क्या सोचता जाता हूँ 

कभी लगता है सब ख़त्म हो गया ,
फिर आशा की  एक नयी किरण ,
आके  कानो में कह जाती है ,
जिए जा , जिए जा ,

अभी  तो इस संसार में ,
बहुत कुछ  करना बाक़ी  है .

तभी किसे कोने से एक विचार जन्मता है ,
मरने के बाद कौन फूंकेगा तुझे ,

अपना कोई सगा  ना होने की  दशा में शायद ,
नगर निगम या और  कोई स्वयंसेवी संस्था 
तेरी लाश उठा के अंतिम संस्कार ना भी  करेगी , 

 "" तो किसी थाने का सिपाही ,
उठवा के नदी में तो  डलवा ही देगा ,""

चिंता मत कर अभी आज कोई साथ  दे ना दे , 
मुर्दे के नाम पर कफ़न देने वालों की  कमी नहीं इस देश में .
इसलिए बस आज जिए जा------ जिए जा ,
कल की चिंता  को  भुला    के , बस जिए --- जा --जिए जा 

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