18.12.10

देर से ही सही कही तो सही.

किसी शायर ने क्या खूब कहा है-
"बाद तारीफ में एक और बढ़ाने के लिए ,
   वक़्त तो चाहिए रूह दाद सुनाने के लिए  ,
     मैं दिया करती हूँ हर रोज़ मोहब्बत का सबक,
       नफरतों चुग्जोहज्जत दिल से मिटाने के लिए.
विकिलीक्स के खुलासे से उपजे विवाद को मिटाने के लिए ही सही पर राजनीतिक गलियारों से ये खबर निकलना वास्तव में सारी जनता के लिए राहत भरी बात है कि हर तरह के आतंकवाद को खतरा कहा गया है और यदि हम सही सोच रखते हैं तो ये हम भी कहेंगे कि भले ही हिंसात्मक कार्य हिन्दू करे या मुस्लिम करे बर्दाशत के बाहर हैं क्योंकि हिन्दू मुस्लिम इस देश की जान हैं और इन में आपस में कोई मनमुटाव जैसी बात ना है ना होनी चाहिए.ये राजनीति की कुटिलता के सदियों से शिकार हुए हैं और ना चाहते हुए भी एक दूसरे के खिलाफ खड़े किये गए हैं इसलिए यदि कोई भी विचारधारा इन्हें एक दूसरे  से जुदा करती है तो उस विचारधारा को खतरनाक ही कहा जायेगा भले ही वह हिन्दू कट्टरपंथी विचारधारा हो या मुस्लिम कट्टरपंथी विचारधारा.धर्म जीवन जीने  का एक रास्ता है जिसे इस नश्वर संसार रुपी भवसागर से पार उतरने के लिए प्रभु ने हमें दिया है और इसमें कहीं यह नहीं लिखा कि हम दूसरे धर्म का विरोध करके ही अपने धर्म के प्रति सम्मान दिखा सकते हैं तो क्यों इन बातो में पड़े .हमें तो इन शायर की पंक्तियों को ही अपनाना चाहिए-
"जो भाई से भाई को लड़ने को सबब दे,
उन सारी किताबों को समंदर में बहा दो.
मिट जायेगा उस शहर से दहशत का अँधेरा,
हर मोड़ पर दीप मोहब्बत का जला दो." 

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