19.12.10

har taraf aawaz ye uthne lagi hai..

''सौप कर जिनपर हिफाजत मुल्क की ; ले रहे थे साँस राहत की सभी ;
चलते थे जिनके कहे नक़्शे कदम पर ;
जिनका कहा हर लफ्ज तारीख था कभी ;
वो सियासत ही हमे ठगने   लगी है ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी है .
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है नहीं अब शौक खिदमत क़ा किसी को ;
हर कोई खिदमात क़ा आदी हुआ है  ;
लूटकर आवाम क़ा चैन- ओ  -अमन ;
वो बन गए आज जिन्दा बददुआ हैं ;
वो ही कातिल ,वो ही हमदर्द ,ये कैसी दिल्लगी है ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी .
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कभी जो नजर उठते ही झुका देते थे;
हर एक बहन के लिए खून बहा देते थे ;
कोई फब्ती भी अगर कसता था ;
जहन्नुम  उसको  दिखा  देते थे ;
खुले बाजार पर अब अस्मतें लुटने लगी हैं ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी है .


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4 comments:

  1. bilkul sahi likha hai. bahut badhiya. keep it up.

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  2. mujhe to lagta hai ki ab aawajein bhee uthannee band ho gayeen hain .
    Pash ne kaha hai na :
    hadsa ye naheen ki hadsa hua
    hadsa ye hai ki sab khamosh hain ..

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  3. bilkul sahi kaha aapne ...badhai

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  4. anand jagani21/12/10 11:02 PM

    दिल को छु लेने वाली पन्कतिया असरदार और सटीक मजा आ गया

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