9.1.11

आयी रवि की उन्मुक्त किरण

वृक्षों के पत्तों से छन छन ,
आयी रवि की उन्मुक्त किरण ।

सतरंगी सुन्दर रश्मि प्रखर
नीले नभ को उद्भासित कर ,
अलसाती मदमाती सुन्दर
मुस्काती -सी उतरी भू पर ।
जीवन उर्जा का यह साधन
आई रवि की उन्मुक्त किरण ।

विहगों के पंखों को सहला
कलियों पुष्पों से आँख मिला ,
अवसाद भरे मन को बहला
निर्मल जल में अरविन्द खिला ।
करती लहरों का आलिंगन
आई रवि की उन्मुक्त कीं ।

पर्वत - किरीट को कर स्वर्णिम ,
दे प्राची को दुकूल अरुणिम ,
झिलमिल तारों की ज्यों टी इ म - टी इ म
चमकाती दूर्वादल पर हिम ।
चंचल - सी, प्यारी-सी उन्मन
आयी रवि की उन्मुक्त किरण ।

4 comments:

  1. वैसे तो मुझे वीर रस वाली कविताएँ पसंद हैं पर आपकी इस कविता ने तो मन मोह लिया। इस प्यारी सी रचना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  2. वाह भाई डाँ॰ साहब
    सचमुच बेजोड़ होती हैँ आपकी कविताएँ

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  3. dheeraj ji , veerata aur prem mein choli daman ka sambandh hai , agar apko veer ras pasand hai to swasth sringaar aur naisargik saundarya bhee pasand hoga hee .

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  4. mayankji , bahut bahut shukria .

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