8.1.11

धूप , चांदनी-सी

आज की धूप
चांदनी - सी लगी ;
कोई बाला बनी-ठनी
सी लगी। आज की धूप .......

जैसे शम्मा छिपी हो चिलमन में -२
इक मचलती -सी रौशनी-सी लगी ।
कोई बाला बनी-ठनी सी लगी ।
आज की धूप .......

तेरी आँखों में जो पिघलती है -२
बस उसी झील से छनी -सी लगी ।
कोई बाला बनी ठनी सी लगी । आज की धूप .........

नर्म बिलकुल तेरी हथेली -सी -२
और उतनी ही गुन गु नी - सी लगी ।
कोई बाला बनी ठनी - सी लगी । आज की धूप ..........

6 comments:

  1. वाह! बहुत सुन्दर लिखा है।

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  2. मैंने तो अपनी पोस्‍ट में लिखा था कि धूप कब निकल रही? और आपके यहाँ धूप चांदनी सी बनकर निकल रही है। बढिया अहसास , बधाई।

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  3. आदरणीय डॉ साहब
    जाड़े की धुप का बहुत ही सुन्दर वर्णन...आपका आभार

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  4. और क्या कहूँ आपकी कविता पढ़ते हुए मेरे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।

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  5. dhanyawaad ! dheeraj ji , ajit guptaji aur vandanaji .

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