23.1.11

सशस्त्र क्रान्ति के संयोजक-रास बिहारी बोस

सशस्त्र क्रान्ति के संयोजक-रास बिहारी बोस

अरविन्द विद्रोही

भारत के स्वाधीनता संग्राम में सन् 1911 से लेकर 21 जनवरी 1945 तक,जब तक जीवन रहा,अपना योगदान अनवरत् देने वाले एकमात्र क्रान्तिकारी का नाम रास बिहारी बोस है।आपका जन्म 25मई,1885 को बंगाल में बर्द्धमान के सुबालदह गाॅंव में हुआ था।बंगाल में फैले क्रान्तिकारी आन्दोलन को सम्पूर्ण भारत में प्रसारित करने वाले आप ही हैं।अपने पिता विनोद बिहारी बोस को भारतीय स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करने का अपना इरादा बताकर व आर्शीवाद लेकर रास बिहारी बोस ने शिमला पहुॅंच कर एक छापेखाने में नौकरी की। फिर देहरादून के वन विभाग के शोध संस्थान में रसायन विभाग के संशोधन सहायक के पद पर कार्य किया।फे्रंच आधिपत्य वाले चन्दन नगर में रहकर बम बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके रास बिहारी बोस,शोध संस्थान में नौकरी बम निर्माण के लिए आवश्यक रासायनिक पदार्थ को प्राप्त करने के लिए कर रहे थे।देहरादून में ही इनकी मुलाकात जितेन्द्र मोहन चटर्जी से हुई। जितेन्द्र मोहन चटर्जी का पंजाब के क्रंातिकारियों लालचन्द फलक,सूफी अम्बाप्रसाद,सरदार अजित सिंह,सरदार किसन सिंह-भगतसिंह के पिता तथा लाला हरदयाल से घनिष्ठ सम्बन्ध था।जितेन्द्र मोहन चटर्जी जब इंग्लैण्ड जाने लगे तब उन्होंने रास बिहारी बोस का सम्पर्क पंजाब के साथ-साथ संयुक्त प्रांत के क्रंातिकारियों से कराया।इस समय बनारस क्रंातिकारी गतिविधियों का केन्द्र था।

कलकत्ता में क्रंातिकारियों के बढ़ते दबाव के कारण अंग्रेजों ने राजधानी दिल्ली में स्थानांतरित कर दी।नई राजधानी दिल्ली में विश्व जगत को बताने के लिए कि इंग्लैण्ड का सम्राट ही भारत का वास्तविक सम्राट है,भारतीय राजाओं को सम्मानपूर्वक बुलाया था,और राजाओं ने निमंत्रण स्वीकार भी कर लिया था।रास बिहारी बोस ने तत्कालीन वायसराय हाॅर्डिंग पर फेंकने की योजना चन्दन नगर में आकर बनाई।योजना को क्रियान्वित करने के लिए 21सितम्बर,1912 को बसंत कुमार विश्वास दिल्ली के क्रंातिकारी अमीरचन्द के घर आ गये।दूसरे दिन 22सितम्बर को रास बिहारी बोस भी दिल्ली आ गये।23सितम्बर को शाही शोभायात्रा निकाली। हाथी पर सपत्नीक सवार वायसराय हार्डिंग्स का अंगरक्षक मैक्सवेल,महावत के पीछे और हौदे के बाहर छत्रधारी महावीर सिंह था।लोग सड़क किनारे खड़े होकर,घरों की छतों-खिड़कियों से इस विशाल शोभा यात्रा को देख रहे थे। शोभा यात्रा चांदनी चैक के बीच स्थित पंजाब नेशनल बैंक के सामने पहुॅंचा कि एकाएक भंयकर धमाका हुआ।इस बम विस्फोट में वायसराय को हल्की चोटें आई और छत्रधारी महावीर सिंह मारा गया।वायसराय को मारने में असफल रहने के बावजूद रास बिहारी बोस अंग्रेज सरकार के मन में भय उत्पन्न करने में कामयाब हो गये।बम विस्फोट के अपराधियों को पकड़वाने वालों को एक लाख रूपये पुरस्कार की घोषणा सरकार की तरफ से की गई। रास बिहारी बोस दिल्ली से वापस देहरादून आ गये।यहाॅं पहुॅंच कर रास बिहारी बोस ने सभा की तथा बम विस्फोट का निन्दा प्रस्ताव पारित कर वायसराय के स्वस्थ जीवन की कामना की।अनेक स्थानों पर रास बिहारी बोस ने ऐसी सभायें आयोजित कर के पुलिस की ओर से राजभक्त होने का सम्मान प्राप्त किया।कुछ दिनों बाद लाहौर के कमिष्नर गोर्डन के सम्मान में 17मई,1913 को मिंटगुमरी भवन में आयोजित सभा में भी बसंत कुमार विश्वास के हाथों रास बिहारी बोस ने बम फेंकवाया।गोर्डन बच गया परन्तु चपरासी मर गया।इसी समय क्रंातिकारियों ने सारे भारत में जनता के बीच सरकार के खिलाफ माहौल बनाने तथा स्वतंत्रता की भावना फैलाने के उद्देश्य से ‘‘लिबर्टी‘‘ नामक पर्चा वितरित किया।रास बिहारी बोस देहरादून से छुट्टी लेकर चन्दन नगर वापस आ गये।

चन्दन नगर में शचीन्द्रनाथ सान्याल एवं ज्योतिन्द्रनाथ मुखर्जी सन् सत्तावन की तरह एक बड़ा आन्दोलन करना चाहते थे।योजना के अनुसार मुखर्जी को बंगाल,शचीन्द्रनाथ सान्याल को संयुक्त प्रंात व रास बिहारी बोस को पंजाब में सेना तथा सामान्य जनता में विद्रोह की ज्वाला भड़काने की जिम्मेदारी मिली।मुखर्जी को जर्मनी से शस्त्र मंगाने की भी जिम्मेदारी दी गई।पंजाब में शस्त्रों के निरीक्षण के दौरान मुखर्जी के बांयें हाथ की उंगुलियाॅं जल गई।इसी बीच अंग्रेज सरकार ने दीनानाथ को पकड़ लिया। फिर पुलिस ने 19फरवरी,1914 को अवधबिहारी,अमीरचन्द,बालमुकुन्द,बसंत कुमार विश्वास को भी हिरासत में ले लिया।रास बिहारी बोस को भी पकड़ने के लिए इनाम घोषित किया गया।पिता को पत्र लिख कर रास बिहारी बोस ने अज्ञातवास स्वीकार लिया।अब रास बिहारी बोस के मन में 1857 के गदर की पुनरावृत्ति की योजनायें आकार लेने लगीं।तीन-तीन षड़यंत्रों के अभियुक्त रास बिहारी बोस को ब्रितानिया हुकूमत तेजी से तलाश रही थी।बोस एक वर्ष बनारस में रहे परन्तु पुलिस उनकी छाया तक भी न पहुॅंच पाई।बनारस में शचीन्द्रनाथ सान्याल थे ही,अमेरिका से गदर पार्टी के विष्णु गणेश पिंगले भी आ गये।पिंगले को गदर पार्टी ने रास बिहारी बोस को पंजाब में क्रंातिकारियों को संगठित करने के लिए तैयार करने हेतु भेजा था।पिंगले से मिलने के बाद बोस के साथी सान्याल पंजाब गये।31दिसम्बर,1914 को अमृतसर की पीरवाली धर्मशाला में क्रंातिकारियों की गुप्त बैठक हुई।पि।गले व सान्याल के साथ इस बैठक में कर्तार सिंह सराभा,पंडित परमानन्द,बलवन्त सिंह,हरनाम सिंह,विधान सिंह,भूला सिंह आदि प्रमुख लोग उपस्थित थे।रास बिहारी बोस जनवरी 1915 में पंजाब आये।कर्तार सिंह सराभा गज़ब के उत्साही और जोशीले थे।इन्होंने रास बिहारी बोस के साथ मिल कर सम्पूर्ण भारत में पुनः एक बार गदर करने की योजना बनाई।तारीख तय हुई-21फरवरी1915।देश के सभी क्रंातिकारियो। में जोश की लहर दौड़ पड़ी।सर्वत्र संगठन किया जाने लगा।लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था।पंजाब पुलिस का जासूस सैनिक कृपाल सिंह क्रंातिकारियों की पार्टी में शामिल हो चुका था।पैसे के लिए उसने अपना जमीर बेच दिया,तैयारी की सूचना उसने अंग्रेजों को दे दी।परिणामस्वरूप समस्त भारत में धर पकड़,तलाशियां और गिरफतारियां हुईं।ऐसी स्थिति मे। गदर की योजना विफल हो जाने के बाद रास बिहारी बोस ने लाहौर छोड़ दिया।लाहौर से बनारस,फिर चन्दन नगर आ कर रहने लगे।रास बिहारी बोस ने पराधीन देशों का इतिहास पढ़ा तो उन्हें ज्ञात हुआ कि बिना किसी अंतर्राष्टीय मदद के कोई भी पराधीन देश स्वतन्त्रता नहीं प्राप्त कर सका है। इसी समय गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जापान जाने वाले थे,रास बिहारी बोस ने गुरूदेव के पहुॅंचने के पहले जापान पहुॅंच कर व्यवस्था देखने का इरादा बता कर,प्रियनाथ टैगोर के नाम से टिकट लिया।कलकत्ते में भारत छोड़ने के पहले क्रंातिकारियों की बैठक कर क्रंाति की ज्योति सतत् जलाये रखने का अनुरोध किया।रास बिहारी बोस भारत भूमि को ब्रितानिया हुकूमत की दासता से मुक्ति की दिशा में कार्य करने हेतु 12मई,1915 को भारत से जापान के लिए मातृभूमि को अन्तिम प्रणाम कर चल दिये।रास बिहारी बोस ने 27नवम्बर, 1915 को जापान में आयोजित एक सभा में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध में भाषण दिया।इस भाषण से जापान में यह बात जंगल में आग की तरह फैल गई कि वे प्रियनाथ टैगोर न हो कर रास बिहारी बोस हैं।इस समय जापान व इंग्लैण्ड़ मित्र देश थे।जापान पुलिस ने गिरफतारी का वारण्ट जारी किया,रास बिहारी बोस भूमिगत हो गये।बोस ने जापान पहुंॅच कर मात्र चार माह में ही जापानी भाषा व शैली आत्मसात कर ली थी।‘‘हयाशी इचिरो’’ नाम रख कर बोस पूरे जापानी बन गये।बोस जापान की ब्लैक डैगन सोसायटी के अध्यक्ष तोयामा से मिले,तोयामा ने भरपूर मदद की।बोस ने जापान सरकार से बचने के लिए सत्रह बार अपना निवास बदला।1918 में तोशिको नामक युवती से शादी की।1923 में बोस जापान के नागरिक बन गये।इन वर्षों में रास बिहारी बोस ने भारत में हथियार भेजवाने,क्रंातिकारियों से सम्पर्क साधने तथा अंग्रेजी व जापानी भाषा में भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन पर किताबें लिखने का कार्य किया।रास बिहारी बोस की लिखी 15 पुस्तकें अभी भी उपलब्ध हैं।1923 में जापानी नागरिकता प्राप्त होने के पश्चात् रास बिहारी बोस खुल कर भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में कार्य करने लगे।1924 में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की तथा दक्षिण-पूर्व के कई देशों में इसकी शाखायें स्थापित की।28अक्तूबर,1937 को बोस ने ‘एशिया एशिया के लिए’ नारा देते हुए ‘‘एशिया युवक संघ’’ की स्थापना की।8दिसम्बर,1941 को जापान ने इंग्लैण्ड व अमेरिका के विरूद्ध युद्ध प्रारम्भ कर दिया।रास बिहारी बोस ने जापान के प्रधानमंत्री जनरल तोजो को भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सहायता करने के लिए तैयार कर लिया और जनरल तोजो ने जापानी संसद में घोषणा की कि यदि जापान विजयी हुआ तो वे भारत को स्वतंत्र कर देंगें। सिंगापुर जीतकर जापान ने भारतीय सेना के लगभग 1लाख लोगों को बन्दी बना लिया।रास बिहारी बोस के ही कहने पर जापान के सम्पर्क अधिकारी मेजर फुजिवारा ने भारतीय स्वाधीनता परिषद के साथ आजाद हिन्द फौज का गठन किया।इसके कमाण्डर मोहन सिंह तथा युद्ध परिषद के अध्यक्ष रास बिहारी बोस थे।रास बिहारी बोस द्वारा भारत की आजादी के लिए टोकियो सम्मेलन,बीदादरी सम्मेलन,बैंकाक सम्मेलन का सफल आयोजन किया गया। टोकियो सम्मेलन में सम्पूर्ण व सार्वभौमिक स्वराज्य प्राप्ति का उद्देश्य का प्रस्ताव हुआ तथा बीदादरी सम्मेलन में आजाद हिन्द फौज के विस्तार की योजना बनी।15जून,1942 को बैंकाक सम्मेलन में सुभाष चन्द्र बोस को जापान बुलाकर दक्षिण-पूर्व एशिया के राष्टीय आन्दोलन के नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया।सुभाष चन्द्र बोस पनडुब्बी की लम्बी व जोखिम भरी यात्रा करके 13जून,1943 को टोकियो पहुंॅचे।रास बिहारी बोस इस समय आन्दोलन के केन्द्र सिंगापुर में थे।सिंगापुर से रास बिहारी बोस टोकियो सुभाष चन्द्र बोस से मिलने आये,मुलाकात के बाद रास बिहारी बोस ने कर्नल यामामोही से कहा,‘‘मेरे कंधों का बोझ अब कम हो गया है।’’ 4जुलाई,1943 को सिंगापुर के कैथे भवन में रास बिहारी बोस ने आजाद हिन्द फौज की कमान सुभाष चन्द्र बोस को सौंपी।सुभाष चन्द्र बोस ने सर्वोच्च सलाहकार के पद पर रास बिहारी बोस को रखा।आजीवन संघर्ष व जीवन सहचरी तोशिको तथा पुत्र माशेहीदे के निधन से रास बिहारी बोस का मन व शरीर दोनो टूट चुके थे।नवम्बर1944 में सुभाष चन्द्र बोस जब रास बिहारी बोस के पास आये तो इनकी हालत खराब थी।स्थिति बिगडने पर जनवरी1945 में सरकारी अस्पताल टोकियो में उपचार हेतु भर्ती कराया गया। जापान के सम्राट ने उगते सूर्य के देश का दो किरणों वाला द्वितीय सर्वोच्च राष्टीय सम्मान से रास बिहारी बोस को विभूषित किया।रास बिहारी बोस 21जनवरी,1945 को परलोक सिधार गये।रास बिहारी बोस का निश्चित मत था कि विश्व में नवयुग,सत्य और षान्ति की स्थापना का दायित्व भारत का है और उसे सिद्ध करने का साधन भारत की स्वतंत्रता है।रास बिहारी बोस के कार्य,सुभाष चन्द्र बोस के कार्यों के लिए नींव के पत्थर व प्रेरक बने।प्रवासी क्रंातिकारियों में रास बिहारी बोस का नाम अग्रणी,चिर-स्मरणीय व वन्दनीय है।

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