24.1.11

टूटेंगे यहाँ पर अभी कई आशियाने

दिल का घरौंदा हो या पत्थर के हो घराने
टूटेंगे यहाँ पर अभी कई आशियाने
रह जाएँगी बस यादें जो जिंदा रहती है
सब कुछ तो मिट गया अब क्या आये हो मिटाने

मै बुत नहीं कोई जो बेजान होता है
जज्बात का महल हर एक इंसान होता है
हमने भी ख्वाब देखे थे जो हो गए पुराने
दिल का घरौंदा हो या

..............................

मै सोचता था ख्वाब देखना गुनाह है
गुनाह का लिये तो हर कोई पनाह है
हकीक़त से वास्ता नहीं गुजरे कई ज़माने
दिल कहो घरौंदा या पत्थर के हो घराने
टूटेंगे यहाँ पर अभी कई आशियाने

ये रचनाएं संजय मिश्रा द्वारा प्रेषित हैं.

5 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति.बधाई .

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  2. दिल का घरौंदा हो या पत्थर के हो घराने
    टूटेंगे यहाँ पर अभी कई आशियाने
    रह जाएँगी बस यादें जो जिंदा रहती है
    सब कुछ तो मिट गया अब क्या आये हो मिटाने

    बहुत प्रभावपूर्ण प्रस्तुति..बहुत सुन्दर.

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  3. मै बुत नहीं कोई जो बेजान होता है
    जज्बात का महल हर एक इंसान होता है

    सच कहा …………बडी तल्ख सच्चाई है…………सुन्दर प्रस्तुति।

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  4. मै बुत नहीं कोई जो बेजान होता है
    जज्बात का महल हर एक इंसान होता है
    हमने भी ख्वाब देखे थे जो हो गए पुराने


    बेहद प्रभावी रचना!!!!

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