25.1.11
आजादी के एहसास का जश्न तो मना ही लें? रविकुमार बाबुलपहली
पहली बार गणतंत्र दिवस के बहाने सत्ता का केन्द्र रहे या यह कहें कि सत्ता के केन्द्र बिन्दु बने जिस शख्स को भोपाल के लाल मैदान में तिरंगे के साये में रहना था, वह शख्स कभी सिंधिया रियासत रहे या कहें सिंधिया के गढ़ में तिरंगा फहराने का फरमान सुना आ धमके है, जी... जनाब मध्यप्रदेश के गठन के बाद यह पहला मौका है, जब मध्यप्रदेश के किसी मुख्यमंत्री ने ग्वालियर में आकर तिरंगा फहराने या कहें गणतंत्र दिवस मनाने का निर्णय लिया है? हालांकि मध्यप्रदेश में किसी को भी कहीं भी तिरंगा फहराने की आजादी है, लेकिन जनाब लाल चौक पर तिरंगा फहराने की जिद् किये बैठी भारतीय जनता पार्टी की यूथ बिग्रेड रूकना नहीं चाहती है, यानी कश्मीर में घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों को रोकने में नकारा रहने वाली वहां की सरकार उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद यूथ ब्रिग्रेड लाल चौक पर तिरंगा फहरायेगी यह दावा है, जबकि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री लाल मैदान के मैदान में अपनी मौजूदगी छोड़कर ग्वालियर आ धमके हंै, वह प्रदेश की जनता को जो कुछ सौगातें देना चाहते है, वह यहीं यानी ग्वालियर से ही देंगे?लेकिन जनाब... सच तो यह है कि वह जो देना चाहते है, उसे चुपचाप ले लीजियेगा, उनसे मांगने की जुर्रत मत जुटाइयेगा? क्योंकि जनाब वह जो कुछ भी देते हैं, वह केन्द्र से मिलता है तब ही दे पाते हैं? लेन-देने की यह उनकी अपनी राजनीति मजबूरी है या फिर यह सत्ता के लिये रास्ता बनाये रखने का उनका अपना हुनर, जी... इसे तय करना बड़ा मुश्किल है। कम से कम तिरंगे के बहाने इस पर चर्चा चल निकालना बे-फिजूल है।जी....जिस मुश्किल की बात हम कर सकते उसमें प्रदेश के हर शहर को सुन्दर बनाने के लिये करोड़ों रूपये तो पानी की तरह बहा दिये जा सकते हैं, लेकिन शहर की अवाम का कंठ तर हो, इसके लिये उनसे ज्यादा पैसे वसूले जायेंगे यी कहें अब उन्हें ज्यादा पैसे खर्चने होगें? जी... जनाब महंगाई के जिस डायन को सत्तू बांधकर कांग्रेस को कोसने का काम भारतीय जनता पार्टी के नुमांइदे दिन-रात करते है, वह अगर पानी को भी महंगाई से नहीं बख्शना चाहते तो इसे क्या कहियेगा? जी.....पानी, वह पानी की तरह होता तो बात थी लेकिन न तो हमारे नुमांइदों की आखों में अब पानी रहा है, सब कुछ व्यापार हो चले इस दौर में आपको दूध कहीं पानी से सस्ता मिल जाये तो चौंकियेगा नहीं? जी... यह हिन्दुस्तान है, सौ दिन मनरेगा के अन्तर्गत काम की गारंटी देने वाली सरकार को पता नहीं कि देश में 100 लीटर पानी के लिये चालीस रूपये वसूले जाते है, जी....जनाब, मिनरल नहीं सादा पानी यानी इन्हें पी लें तो तमाम बीमारियां आमंत्रित हो चलें, मसलन पीलिया, पेचिस एवं अन्य। जी, पी कर मत देखियेगा? बीमार हो जायेगें भ्रष्टाचार महंगाई और लापरवाही से कराहते सत्ता की तरह?मुख्यमंत्री शिवराज सिंह किसानों की पीड़ा समझते हैं, वह किसान जो है, वह छात्र नहीं है, वह आम नागरिक नहीं है, वह चाकरी भी नहीं करते है तो फिर ऐसे में सुरक्षा घेरे के बीच उनकी इस समाज सेवा के हुनर को समझना मुश्किल है। वह किसान होते हुये भी किसानों के मर्म को तो शब्दों में बयां करते हैं, लेकिन केन्द्र के आसरे बैठ वह ठोस कुछ करते नहीं है। छात्र, आमजनता और चाकरी करने वालों को तो छोडिय़े ही?शिवराज सिंह का मध्यप्रदेश सुन्दर लगे, अच्छा दिखे इसके लिये चौड़ी सड़के बनें, राष्ट्र का मन और आत्मा के भी बाजार हो चले इस दौर में अय्याशी का हर सामान आसानी से मुहैया हो इस की चिन्ता भी करनी है और उन्हें ही इसको पनाह भी देना है, चाहे इसके लिए किसी का रोजगार छिन लिया जाये तो कोई बात नहीं, जी बाजार है यह? महंगाई के दौर में लोगों को अन्न न मिले, लेकिन भ्रष्टाचार ऐसा की जांच ऐजेन्सिया सरकारी गोदामों में अनाज के बहाने हुये भ्रष्टाचार के खेल को तलाशती फिरें, क्या कहियेगा ऐसी समाज सेवा को?यह मध्यप्रदेश है, कभी डम्फर के बहाने भ्रष्टाचार की जिस गली में शिवराज सिंह टहलते मिले या कह लें दिखलाई दिये थे, माननीय न्यायालय ने उन्हें जम्मू कश्मीर सीमा में घुसने के प्रयास में सुषमा जेटली की तरह बाहर कर दिया। लेकिन डम्फर आज भी लोगों को रौंदते है? रेत के बहाने जिस विकास का स्वप्न हमें दिखलाया जा रहा है, उन्हें रेत के टिले की तरह भरभराकर गिरते भी हम ही देखते रहे है?जी... यही गणतंत्र है, तंत्र पर गण नहीं अब गण पर तंत्र हावी हो चला है? गणतंत्र के इस 61 वें जश्न पर काला-धन को लेकर खूब चर्चा-परिचर्चा करें, रायशुमारी जुटाये? लेकिन जनाब जब हम सबकी आत्मा ही काली हो चली तब ऐसे में काला-धन देश में आ भी जाये तो क्या विश्वास किया जाये कि देश की सत्तर फीसदी आबादीतक यह काला-धन रोटी की शक्ल अख्तियार कर चूल्हे तक पहुंचेगा? बहुत मुश्किल है, काला-धन देश के काली आत्माओं वाले राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों की ही जेब में आकर ठिठकेगा, ठीक उस तरह जिस तरह किसी मौसी के कोठे पर आबरु तार-तार करवाती कोई नवयौवना किसी पुलिसिया कार्यवाही में मुक्त होने के बाद फिर किसी दूसरे कोठे की मौसी की ठसक का सबब बन जाती है? जी... यह गणतंत्र है, कोई लाल मैदान में रहना नहीं चाहता है तो कोई लालचौक पर तिरंगा फहराने देना नहीं चाहता है? आइये शहीदों को नमन् कर अपने मन के भीतर भी मन से एक तिरंगा फहराकर मुट्ठी भर इस आजादी के एहसास का जश्न तो मना ही लें?
I needed to write you that little word so as to say thank you over again for these amazing ideas you have provided here. This is quite remarkably open-handed with you to allow publicly just what many people would've offered for an electronic book in making some profit for themselves, notably considering that you could possibly have done it if you ever desired. Those tactics likewise acted to be a good way to be sure that other people have a similar keenness like mine to learn a whole lot more in terms of this issue. I believe there are a lot more enjoyable periods up front for many who see your website.
ReplyDelete.ख़बरों के खुलासा से आपकी यह रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति भी आज के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
ReplyDeleteआज (28/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com