30.1.11

गांधी की प्रासंगिकता

गांधी की प्रासंगिकता
दिनांक – 30 जनवरी 2011
आदरणीय शशि शेखर जी नमस्कार,
भले ही आज हम गांधी जी को भूल गए हैं लेकिन आज दिनांक – 30 जनवरी 2011 को रविवासरीय हिन्दुस्तान के मंथन पृष्ठ संख्या-18 पर “गांधी की प्रासंगिकता पर इतनी बहस क्यों” नाम से प्रकाशित आपका लेख पढ़ कर हमें गांधी जी की याद दिलाता है। इस लेख के संम्बध में आपसे यह कहना है कि लेख की शुरुआत आपने इस पंक्ति से किया है कि “ चालीस साल पहले। बापू को गए हुए तब दो दशक भी नहीं हुए थे। हमारी पीढ़ी के लोग.................। ” आपका लेख पढ़ कर हमें यह मालूम पड़ता है, कि गांधी जी मृत्यु के साठ बर्ष होने को हैं। उसी समाचार पत्र के प्रथम पृष्ठ पर “ बापू का अंतिम दिन ” के शिर्षक जीवन झांकी की के कुछ चित्रों के उपर तीन पंक्तियों में से शुरुआत की पंक्ति में “ गांधी को गुजरे आज 63 बरस हो गए। ” लिखा है। जो कि स्पष्ट है। इतने बड़े समाचार पत्र में छपा संम्पादीक पृष्ठ मंथन पृष्ठ की विश्वनियता पर कुठारा घात के समान है यह दोनों वक्तव्यों में सही किसको माना जाए। इस प्रकार की संसय पूर्ण जानकारीयों से हमारी आने वाली पीढ़ीयाँ गांधी जी की मृत्यु दिवस और जन्म दिवस के वारे में दिग्भ्रमित अवश्य हो जायेगी।

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