कब सुधरेंगे.......... पत्रकारों की दशा
दिहाढ़ी मजदूरों से भी बद्दतर है, बिहार में पत्रकारों की दशा प्रखंडो में ! काम चौबीसों घंटे और मिले 1000 -2000 रूपये से भी कम ! दूसरों के दुःख-तकलीफ और उनकी समस्याओं को सुर्खियाँ बनाकर अख़बार के पन्नों पर सजाने वाले आज खुद ही दाने-दाने के मोहताज़ है. यह अपना दुखड़ा किससे कहें , कहाँ छापे ? यहाँ अख़बार के बड़े रिपोटर तो बड़ा बेतन पाते है , उन्हें सब सुविधा भी मिल रहे है , पर ये भूल जाते है क़ि इन्ही के नीचे के रिपोटर द्वारा भेजी रिपोट, इनके अखबारों को चार चाँद लगाते है . बिहार के दो अग्रणी अख़बार हिंदुस्तान और दैनिक जागरण के प्रखंड और अनुमंडल रिपोटर बताते है क़ि प्रखंड क़ी हर छोटी बड़ी घटनाओं पर ध्यान देकर रिपोट जुटानी पढ़ती है घटना या कार्यक्रम में जाना पढ़ता है . फिर खबर बटोर कर उन्हें लिपिबध्ह कर फैक्स करना पढ़ता है. कुल खर्च महीने का 1200 रूपये से अधिक आता है. अगर खबर छुट जाये तो डाट भी पढ़ती है. खबर पर अलग-अलग दर है, सिंगल कालम-5 रुपया, डबल कालम- 10 रुपया, ट्रिपल कालम- 15 रुपया तथा फैक्स का 15 रुपया पर पेज . खबर नहीं छपा तो हुआ खर्च घर से भी गया. कुल मिला कर महीने में 25 से 50 खबर ही छप पाते है. इन सब को जोड़िए तो बिल 1500 से 2000 रुपया ही बन पाता है. देखा जाय तो पढ़े युवा ही काफी है, इनमे . जिनका अख़बार जम कर शोषण कर रहा है. इन्हे इनका हक कौन देगा? इन पत्रकारों को भगवान ने क्या पेट देकर नही भेजा है ?,क्या इन्हे भूख नही लगती hai ? या इनके बाल बच्चे नही है, या इन पत्रकारों को महंगाई का असर नही पढ़ता ! दूसरी ओर अख़बार के मालिक इन्ही पत्रकारों क़ी मेहनत क़ी कमाई से करोढ़ो क़ी आय अर्जित कर रहे है !
मो.तस्लीम उल हक , बिहार
दिहाढ़ी मजदूरों से भी बद्दतर है, बिहार में पत्रकारों की दशा प्रखंडो में ! काम चौबीसों घंटे और मिले 1000 -2000 रूपये से भी कम ! दूसरों के दुःख-तकलीफ और उनकी समस्याओं को सुर्खियाँ बनाकर अख़बार के पन्नों पर सजाने वाले आज खुद ही दाने-दाने के मोहताज़ है. यह अपना दुखड़ा किससे कहें , कहाँ छापे ? यहाँ अख़बार के बड़े रिपोटर तो बड़ा बेतन पाते है , उन्हें सब सुविधा भी मिल रहे है , पर ये भूल जाते है क़ि इन्ही के नीचे के रिपोटर द्वारा भेजी रिपोट, इनके अखबारों को चार चाँद लगाते है . बिहार के दो अग्रणी अख़बार हिंदुस्तान और दैनिक जागरण के प्रखंड और अनुमंडल रिपोटर बताते है क़ि प्रखंड क़ी हर छोटी बड़ी घटनाओं पर ध्यान देकर रिपोट जुटानी पढ़ती है घटना या कार्यक्रम में जाना पढ़ता है . फिर खबर बटोर कर उन्हें लिपिबध्ह कर फैक्स करना पढ़ता है. कुल खर्च महीने का 1200 रूपये से अधिक आता है. अगर खबर छुट जाये तो डाट भी पढ़ती है. खबर पर अलग-अलग दर है, सिंगल कालम-5 रुपया, डबल कालम- 10 रुपया, ट्रिपल कालम- 15 रुपया तथा फैक्स का 15 रुपया पर पेज . खबर नहीं छपा तो हुआ खर्च घर से भी गया. कुल मिला कर महीने में 25 से 50 खबर ही छप पाते है. इन सब को जोड़िए तो बिल 1500 से 2000 रुपया ही बन पाता है. देखा जाय तो पढ़े युवा ही काफी है, इनमे . जिनका अख़बार जम कर शोषण कर रहा है. इन्हे इनका हक कौन देगा? इन पत्रकारों को भगवान ने क्या पेट देकर नही भेजा है ?,क्या इन्हे भूख नही लगती hai ? या इनके बाल बच्चे नही है, या इन पत्रकारों को महंगाई का असर नही पढ़ता ! दूसरी ओर अख़बार के मालिक इन्ही पत्रकारों क़ी मेहनत क़ी कमाई से करोढ़ो क़ी आय अर्जित कर रहे है !
मो.तस्लीम उल हक , बिहार
Taslim sahab bihar ke hi patrakar kyon ? Uttar pradesh ke prakar bhi isi bimari main mubtala hain ,balki unse bhi bura hal hai. Aapki aawaz kabiletarif hai. By md. Shaukat khan
ReplyDeleteAAPKA BHUT SUKRIA,MAI SOCH RHA HU ESKA HL KAISE NIKALA JAY.PADHNE WALE BHAI AAPNI-AAPNI RAY JARUR DE.
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