कालिदास जैसा अपने को महान बनाने के लिए 'मूर्ख' होना कोई आर्हता नही है , और ना ही ये आवश्यक है की उसके लिए मूर्खों सा अपने ही घर के आँगन में लगे फलदायी वृक्षो की शाखाएं या उससे भी भी अधिक मूर्खता करते हुए समूचे वृक्ष को ही कटाने पर जुटे रहें ।
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अफसोसजनक विडम्बना यह है की आज भी कुछ मूर्ख अपने को कालिदास साबित करने हेतु पूर्णतया विचार करके योजनाबद्ध तरीके से पेड़ की उन्ही शाखों को जिस पर आज वो बैठे हुए है , इस आस में कटाने में लगे है कि किसी ना किसी दिन उस पेड़ के नीचे सुसताते पथिक और पेड़ के ऊपर बसेरा करने वाले पंछी भयवस ही सही उन्हें कालिदास के नाम से संबोधित करेंगें ।
वर्तमान का यही सत्य है।
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