2.2.11

हम हैं भ्रष्टाचारी ।


किसने कितना पैसा खाया या किसने कितना कमाया उससे देश को क्या मतलब । इसमें देश का अर्थ हम सभी आम  जनता है । हम लोगों को अपनी दाल रोटी कमाने के बाद इतनी फुर्सत नही रहती कि देश के नेता, अधिकारी और अफसरशाही देश का पैसा जो हमारे इलाज में, शिक्षा में और हमारे बच्चों के रोजगार में काम आना चाहिये कैसे अपने बाप का माल समझ कर अपनी जेब में डाले जा रहे हैं । इसमें दोषी कौन है ?  दोषी वो लोग नही हैं जो हमारा पैसा डकारे जा रहे हैं बल्कि हम लोग हैं जो सब कुछ देखने के बाद भी दुसरे की पहल का इंतजार करते रहते हैं । जरा सोच कर देखें कि अगर कोई आपसे कहे कि फलां विभाग का कर्मचारी मुझसे इस काम के लिये दस हजार मांग रहा है तो आपका जवाब क्या होता है ? ........... ?  आपकी पहली प्रतिक्रिया यह होती है कि क्या करोगे भाई बिना लिये दिये कुछ नही होता ।।।।
                             लेकिन अब  आप दुसरा पक्ष देखें मुझसे मेरे मित्र नें कहा कि इस विभाग का अधिकारी मुझसे इस काम का 5000 रूपये मांग रहा है समझ में नही आ रहा मैं क्या करूं ... लेकिन मुझसे कहने के बाद उसे कुछ भी करने की जरूरत नही पडी हम लोगों नें उस अधिकारी की वो गत कर दिये कि उसके दफ्तर की सारी लंबित फाइलें चार दिनों में निपट गईं । क्या हम लोग एक दुसरे से भिन्न हैं ... नही ... हम सब एक जैसे ही हैं ईश्वर नें हम लोगों को जब मानव शरीर में भेजे हैं तो ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपने साथ साथ दुसरे की मदद को भी तत्पर रहें । मैं अकेला तब तक था जब तक केवल अपने लिये जी रहा था , लेकिन जैसे ही दुसरों की सहायता के लिये घर से बाहर निकला मेरा दायरा विस्तृत हो गया । आज हम लोग अकेले ना होकर 200 से ज्यादा लोगों के साथ संगठक के रूप में कार्य़ कर रहे हैं । खैर... अब तक चाहे देश जैसा चल रहा हो ये अलग बात है अब हमारा फर्ज है देश के प्रति जवाबदारी दिखाने का वरना तैय्यार रहें अपने बच्चों को रोजगार ना दिला पाने के गम को पाने का ..... जब आपके बुढापे में याद आए कि मैने क्या नही किया तब इस पाठ को याद रखियेगा कि आपने अपना संगठन ना बना पाने के कारण और चलती का नाम गाडी के बहाने जो गल्ती किये उसका खामियाजा बुढापे में भुगत रहें हैं .... जवान बच्चों को बेरोजगार घर में बैठे देखते हुए औऱ अपनी किस्मत को रोते हुए ।
                                      

1 comment:

  1. bhrashtachar ko isi tarah hataya ja sakta hai ye to ab samajh lena hi hoga har bhartiy ko .

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