‘’ मम्मी पापा की लाडली
सखी सहेलियों की प्यारी,
नाम मेरा है देवी
बनकर आई मैं नन्ही परी।‘’
मेरी बेटी पिछले कुछ दिनों से बहुत उत्साहित थी। के जी 1 में पढने वाली मेरी बेटी की खुशी का कारण था, उसे उसके मनपसंद किरदार में ढलने का मौका मिलना। दरअसल, सोमवार यानि कि आज उसके स्कूल में फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता का आयोजन था और इसके लिए उसकी मैडम ने उसे विषय पूछा था, उसने खुद से स्कूल में लिखा दिया, ‘परी’।
परी के भेष में देवी |
अब उसकी जिद थी, कि परी की तरह उसे सजाया जाए और उसके लिए कोई ‘पोयम’ यानि कि कविता भी लिखकर दी जाए। सजाने का काम उसकी मम्मी ने किया और कविता लिखने का काम मेरे जिम्मे आया। मुझे रविवार की दोपहर तक अपने काम से फुर्सत नहीं मिली तो मैंने रात में ही लिखने की कोशिश की। अब दिक्कत यह थी कि यदि कोई बडी और कठिन सी कविता लिख दूं तो चंद घंटों में वह ‘नन्ही परी’ उसे याद कैसे करेगी? ... और परियों को लेकर कुछ प्रचलित कविताओं से परे हटकर कुछ नया लिखने की भी सोच थी ताकि मेरी बेटी जब पहली बार अपने स्कूल के मंच पर जाए तो कुछ मौलिक बोले। सो फपर लिखी चार लाईनें जेहन में आईं जो छोटी भी थी और सरल भी। स्कूल के मंच पर उसे देवी से सुनाया भी पूरे मन से। तालियां भी बटोरी।
इतने से ही यह पोस्ट लिखने का मन नहीं किया। यह पोस्ट लिखा मैंने फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता के आयोजन में मौजूद रहने के दौरान मेरी बेटी की स्कूल की प्रशासिका के विचार को सुनने के बाद। श्रीमती वसुंधरा पांडे। राजनांदगांव में शिक्षा के क्षेत्र में काफी चर्चित और सम्मान की हकदार महिला का नाम है श्रीमती वसुंधरा पांडे। वे अनुशासन और कडक मिजाज के नाम से जानी जाती हैं लेकिन आज उनका एक और रूप देखने मिला। उन्होंने बडी खूबसूरती से प्रतियोगिता को बच्चों के प्रस्तुतिकरण के मंच में तब्दील कर दिया। उनके इन विचारों ने मुझे प्रभावित किया कि स्कूल में आयोजित फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में प्रथम, व्दितीय और तृतीय तीन स्थान पर बच्चे आएंगे लेकिन जो बच्चे अंक नहीं हासिल कर पाएंगे, उन्हें दुख होगा। बच्चों से ज्यादा उनके अभिभावकों को दुख होगा, यह सोचकर कि उन्होंने कडी मेहनत से अपने बच्चों को इस प्रतियोगिता के लिए तैयार किया और वे नंबर नहीं हासिल कर पाए। इसलिए उन्होंने प्रतियोगिता न करने का फैसला लिया है और इस आयोजन को इस तरह लिया जाए कि नर्सरी से लेकर के जी 2 तक के बच्चों को मंच में लोगों का सामना करने का अभ्यास कराया जा रहा है।
प्रशासिका महोदया ने भले ही जो समझ कर इस प्रतियोगिता को प्रस्तुतिकरण का रूप दे दिया लेकिन इस बात को तकरीबन सभी अभिभावकों ने पसंद किया कि प्रतियोगिता होने की स्थिति में किसी एक को इनाम मिलता। यहां सभी बच्चों ने अच्छी प्रस्तुति दी और सभी को आखिर में इनाम भी मिला। सभी को स्कूल की ओर से एक एक शिक्षाप्रद किताबें दी गईं, जिसे बच्चों ने अपने पहले पुरस्कार के रूप में लिया।
और सच में सभी बच्चों ने मंच में अच्छी प्रस्तुति दी। कई बच्चे ‘कृष्ण’ बनकर आए तो कुछ ने ‘भीम’ की ताकत दिखाई। कई बच्चियों ने ‘दुल्हन’ के रूप में लोगों के सामने प्रस्तुत होकर तालियां बंटोरी तो कुछ बच्चियां ‘झांसी की रानी’ बनीं। ‘मां दुर्गा’, ‘भारत माता’, भी बनीं। राधा बनीं एक बच्ची तो एक बच्ची ने ‘एप्पल’ का रूप धर उसके गुणों से रूबरू कराया। लडके पुलिस वाले बने और देश के लिए जान न्यौछावर करने की बात करते रहे तो एक ने ‘दबंग’ के अंदाज में कमर हिलाया। कोई ‘पेड’ बनकर हरियाली का संदेश लेकर आया तो किसी ने ‘जेब्रा’ का रूप धर मन मोहा।
सबसे ज्यादा रूप धरा गया ‘परी’ का। इनमें मेरी बेटी भी थी। मेरी बेटी पहली बार मंच पर थी इसलिए मुझे इसकी खुशी ज्यादा थी लेकिन ऐसा अकेले मेरे साथ ही नहीं था। तकरीबन हर अभिभावक के चेहरे में मुस्कान थी जब उनके बच्चे मंच पर थे। इस आयोजन को लेकर अपने बच्चे की तस्वीर पोस्ट के रूप में डालने की इच्छा थी, लेकिन प्रतियोगिता को लेकर पांडे मैडम के विचारों को सुनने के बाद यह पूरी की पूरी पोस्ट लिख बैठा।
सुन्दर रचनात्मक पोस्ट .बधाई
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