...एक भोंपू जो कभी जमकर बजा करता था ... न केवल बजा करता था बल्कि इससे निकलने वाली हर आवाज़ लोगों को एक हद तक दीवाना भी बना दिया करती थी ... भोंपू को शायद इस बात का घमंड सा हो गया ... फिर क्या था ... भोंपू ने अपनी हर तान को फरमान का जामा पहनना शुरू कर दिया ... हालात ये बने की अब भोंपू से निकलने वाली आवाज़ अवाम की आवाज़ कम बल्कि लोगो के लिए चुनौतियाँ ज्यादा साबित होने लगीं... भोंपू इन सब बातों से बेफिक्र अपनी धुन में मस्त रहा ... अब भोंपू द्वारा लोगों को दी जा चुकी चुनौतियों की फेहरिश्त इतनी लम्बी हो चली थी की उसे याद रख पाना मुनासिब न रहा ... ऐसे में अपनी आत्ममुग्धता से सराबोर भोंपू ने कुछ नया हंगामा करने की फ़िराक में यह चुनौती दे डाली कि यदि कोई भोंपू उससे ज्यादा तेज बजता है तो वह आज के बाद से सरकारी मंच पर बजना छोड़ देगा ... अब बेचारे भोपू को क्या पता था कि एक वैरागन कोयल कि कूक उसकी दहाड़ती बुलंद आवाज़ पर इतनी भरी पड़ेगी कि उसे ना चाहते हुए भी वैरागी होना पड़ेगा ... एक तब का दिन था कि भोंपू खुद ही अपनी आवाज़ से डरने लगा था ... कुछ बोलना तो दूर बोलने का जिक्र आने पर ही उसे तेज बुखार चढने लगता था ... लेकिन आदत भी तो कोई चीज़ होती है ... जो भोंपू लगातार कई वर्षों तक बजता रहा हो आखिर उसे अपनी यह ख़ामोशी कैसे बर्दाश्त हो ... सो भोंपू ने पहले तो छुप छुप कर बोलने का खूब रियाज़ किया और बाद में ज़रा आत्मविश्वास पैदा होने पर अपने आकाओं को विश्वास दिलाया कि आज भी वह पहले कि तरह सुरीला तो नहीं लेकिन बोल जरूर सकता है ... आकाओं कि सख्त नसीहत पर भोंपू ने संकल्प लिया कि वह सिर्फ वही बोलेगा जो उससे बोलने के लिए कहा जायेगा ...हालाँकि आकाओं ने भोंपू को यह बात अपने अंदाज में कहने कि छूट दे दी ... फिर क्या था भोपू लगा बजने ... भोंपू ने इस बार अपनी गाल बजाई से आकाओं का भी दिल जीत लिया ... यही वजह रही कि आकाओं ने खुश होकर उसे कुछ अपने मन से भी बजने की छूट दे दी ... हालत ये हो चले कि अब देश दुनिया में किसी के मुंह से कोई बात निकली की नहीं कि भोंपू लगा बजने... भोंपू की इस आदत को कोई उम्र का दोष बताता है तो कोई इसे इतने वर्षो कि मंचहीन त्रासदी का आफ्टर शाक करार देता है... मगर भोंपू आज भी पहले की ही तरह बेपरवाह है उसे तो बस इस बात कि खुशी है कि वह फिर से बजने लगा है ... कई बार ऐसे मौके भी आयें जब इस भोंपू के आकाओं ने उसकी आवाज़ को पहचानने ने इंकार तक कर दिया ... मगरस्वामी भक्त भोंपू लगातार बजता ही रहा ... चाहे मंदिर के घड़ियाल हो या मस्जिद कि अजान भोपू ने हर मौके पर अपना गाल बजाना जरी रखा ... ये बात अलग है कि इस भोपू को मंदिर के घडियालों से जुगलबंदी कुछ ज्यादा ही भाती है... बेचारा भोंपू आज अपनी उसी आवाज़ पर लोगों कि हसी का पत्र बन चुका है जिस आवाज़ पर उसे कभी गर्व हुआ करता था ...
...संजय उपाध्याय...
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